कर्म और विचार दोनो श्रेष्ठ करें : डॉ. राजेंद्र मुनि

एस एस जैन स्थानक किचलू नगर में प्रवर्तक डा. राजेंद्र मुनि व शिष्य साहित्य रत्न सुरेंद्र मुनि महाराज विराजमान है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 01:15 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 01:15 AM (IST)
कर्म और विचार दोनो श्रेष्ठ करें : डॉ. राजेंद्र मुनि
कर्म और विचार दोनो श्रेष्ठ करें : डॉ. राजेंद्र मुनि

संस, लुधियाना

एस एस जैन स्थानक किचलू नगर में प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि व शिष्य साहित्य रत्न सुरेंद्र मुनि महाराज विराजमान है। मंगलवार की सभा में सर्वप्रथम नवकार मंत्र का उच्चारण हुआ। प्रार्थना सभा में डॉ. राजेंद्र मुनि ने कहा कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ करता करता है। या तो वह शारीरिक श्रम करता है या मानसिक श्रम। अर्थात अगर वह शरीर से श्रम नहीं करेगा तो खाली बैठा हुआ अनेक प्रकार के विचार ही करता रहेगा। इसलिए हमें चाहिए कि मन में विचारों के ताने बाने बुने। वे सब ऐसे हो जो अपना उत्तम फल ही प्रदान करें, निकृष्ट नहीं। इस प्रकार अगर विचार करना है तो हम श्रेष्ठ विचार और श्रेष्ठ कर्म। क्योंकि श्रेष्ठ कर्म करने वाला व्यक्ति अपने कर्म से सदा संतुष्ट रहता है।

साहित्य शास्त्री सुरेंद्र मुनि ने कहा कि कर्म फल की आशा रखने पर यहीं होता है कि कर्म किया, कितु उसके करने पर फल की प्राप्ति ना होने से मन में क्षुब्धता, निराशा और कभी कभी तो क्रोध का भी जन्म हो जाता है। आज का मानव सदा असंतुष्ट और दुखी देखा जाता है इसका कारण यही है उसकी निगाह अपने कर्म के फल की ओर लगी रहती है।

अपनी संतति को संपत्ति नहीं, संस्कार दो : रमेश मुनि

लुधियाना : पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संयम। अपनी संतति को संपत्ति नहीं, संस्कार दो। यह बात मंगलवार को 39 सेक्टर स्थित एस एस जैन स्थानक के तत्वाधान में रमेश मुनि महाराज ने कही।उन्होंने कहा कि संस्कार और सत्य और शिक्षा ही बहुत बड़ी संपत्ति है। संस्कारवान बच्चे संपत्ति का अर्जन तो स्वत: कर जाएंगे। अगर बच्चा अच्छे संस्कारों में नहीं ढाला तो वह संपत्ति और साधन अनेकों बुराईयों को पनपाने और बढ़ाने वाला बन जाएगा। संस्कार धन से युक्त बच्चे के मां बाप अनंत उपकार ऋण से उच्चारण हो जाते है। यदि मां बाप धर्म नहीं करते, या पूर्व जन्म के कर्मोदय से शुपथ से पठित हो शेष हो गए तो अच्छे संस्कार वाला बेटा पुन: धर्म के सुपथ अपने माता पिता को स्थापित करता है। इस अवसर पर मुकेश मुनि ने कहा कि आज के अच्छे या बुरे कर्म आने वाले भविष्य के लिए पुण्य और पाप के रूप में फल देने वाले बन जाते हैं। पुण्य पाप भगवान या माता पिता नहीं देते, बल्कि जैसे हमारे भाव लेंगे और जीवन व्यतीत करने का ढंग होगा, वहीं भविष्य में हमें सुख या दुख देने वाले भाग्य या दुर्भाग्य के रुप में उपस्थित होने वाले बनेंगे। सुख दुख किसी का दिया हुआ न होकर स्वयं ही किया हुआ है।

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