कोरोना इफेक्ट: पंजाब में मेडिकल कालेज के डाक्टरों की बिगड़ रही मानसिक सेहत, 67 फीसद में एंजाइटी

कोरोना का पंजाब में डाक्टरों पर विपरीत असर पड़ा है। पंजाब के नौ मेडिकल कालेजाें के जूनियर डाक्टरों पर हुई स्टडी के मुताबिक कोविड वार्डों व इमरजेंसी में लंबी डयूटी की वजह से डाक्टर मानसिक तनाव झेल रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 11:52 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 01:26 PM (IST)
कोरोना इफेक्ट: पंजाब में मेडिकल कालेज के डाक्टरों की बिगड़ रही मानसिक सेहत, 67 फीसद में एंजाइटी
लंबी ड्यूटी से मानसिक तनाव में जूनियर डाक्टर। सांकेतिक फोटो

लुधियाना [आशा मेहता]। कोरोना की सुनामी में न सिर्फ बड़ी संख्या में मरीजों की जान चली गई, बल्कि वायरस की वजह से डाक्टरों की मानसिक सेहत को भी बड़ा झटका लगा है। दयानंद मेडिकल कालेज एंड अस्पताल के डिपार्टमेंट आफ साइकेट्री की स्टडी में पता चला कि कोरोनाकाल में 67 फीसद जूनियर डाक्टर एंजायटी और 60 फीसद डिप्रेशन के शिकार हैं।

डिपाटमेंट की ओर से पंजाब के नौ मेडिकल कालेजों के 260 रेजीडेंट और पीजी छात्रों साथ आनलाइन स्टडी की गई। इसमें 170 महिला व अन्य सब पुरूष डाक्टर थे। डिपार्टमेंट के हेड व प्रो. रंजीव महाजन ने बताया कि मेडिकल कालेजों के रेजीडेंट और पीजी छात्रों में एंजाइटी खतरनाक रूप से बढ़ी है। जबकि कोविड से पहले जब हमने पंजाब के मेडिकल कालेजों में यंग डाक्टरों में स्ट्रेस को लेकर स्टडी की थी, तब केवल 17 प्रतिशत रेजीडेंट व पीजी स्टूडेंट में एंजाइटी और 11 प्रतिशत डाक्टरों में थी।

उन्होंने कहा कि मेडिकल छात्र लंबी डयूटी और अस्पतालों में मचे हाहाकार को लेकर तनाव में आ गए हैं। ये डाक्टर आइसीयू और आइसोलेशन के मरीजों के काफी नजदीक होते हैं, इसीलिए संक्रमण के भयावह हालात से मानसिक सेहत पर असर पड़ा। उनकी लगातार डयूटी के साथ ही परीक्षाएं नहीं हो रही हैं। डयूटी के दौरान रोजाना दर्जनों मरीजों की मौत हुई, जिसे इतनी कम उम्र में डाक्टरों ने पहली बार देखा।

मरीजों के परिजनों का रिएक्शन भी कारण

डा. रंजीव महाजन कहते हैं कि स्टडी में हमने पाया कि जूनियर डाक्टरों में एंजाइटी व डिप्रेशन की एक वजह मरीजों के परिजनों का रिएक्शन है। इलाज के दौरान मरीज की मौत के बाद परिजनों का रिएक्शन काफी खतरनाक होता है। कई बार परिजन मरीजों के ठीक होने पर श्रेय भगवान को देते हैं, लेकिन मौत होने पर दोष डाक्टराें पर मढ़ देते हैं, जिसका दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। इसके अलावा लाकडाउन से डाक्टराें का कंप्यूटर, लैपटाप व फोन पर स्क्रीन टाइम बढ़ गया, जिससे उदासी, बेचैनी, चिड़चिड़ापन और अवसाद मिला।

विदेशों में डाक्टरों में एंजाइटी व डिप्रेशन के मामले हम से कम

डा. महाजन ने विदेशों में हुई स्टडी का भी हवाला दिया। बताया कि चीन में स्ट्रेस व एंजाइटी 22 प्रतिशत में मिली थी, जबकि 35 प्रतिशत मेडिकल छात्र डिप्रेशन में थे। यह संख्या भारत से कम है। बाकी दूसरे देशों में भी हमसे कम हैं।

स्ट्रेस कम करने के लिए क्या करें डाक्टर

नियमित एक्सरसाइज करें। मानसिक सेहत का खासतौर पर ख्याल रखें। सामाजिक रूप से संपर्क में रहें। नकारात्मक समाचारों से दूर रहें। नालेज अपडेट करने के लिए लिमिट में न्यूज चैनल देखें, लिमिट में पेपर पढ़े। जब भी किसी को अपने आप में बदलाव महसूस हो तो तुरंत ट्रीटमेंट लें। लक्षणों को अनदेखा न करें।

पेशेंट की मौत पर हमें भी दुख होता है

डा. रंजीव महाजन ने कहा कि परिजनों को लगता है कि पेशेंट को कुछ हाेता है, तो डाक्टरों को फर्क नहीं पड़ता। जबकि, जब पेशेंट चला जाता है, तो हमें भी उतना ही दुख होता है, जितना परिवार के मैंबरों को होता है। हमें नींद नहीं आती। क्योंकि हमने कई दिनों तक पेशेंट को देखा होता है। रोजाना हम इमरजेंसी, वार्ड, आइसीयू में जाकर पेशेंट से मिलते हैं। उनके क्लोज कंटेक्ट में रहते हैं। इस दौरान उनके साथ हमारा भी भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है। परिजनों को समझना चाहिए कि डाक्टर भी उनके दुख का हिस्सा है। 

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