अब चखें क्रीम कलर के शहद का स्वाद, स्वास्थ्य के लिए गुणकारी, पंजाब का मधुमक्खी पालक कर रहा तैयार

काम करने का जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। जगराओं के नरपिंदर सिंह ने सात डिब्बों से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की थी और अब वह 700 डिब्बों में मधुमक्खी पालन करते हैं। खास बात यह है कि वह क्रीम कलर का हनी भी तैयार करते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 19 Oct 2020 02:43 PM (IST) Updated:Tue, 20 Oct 2020 10:37 AM (IST)
अब चखें क्रीम कलर के शहद का स्वाद, स्वास्थ्य के लिए गुणकारी, पंजाब का मधुमक्खी पालक कर रहा तैयार
नरपिंदर सिंह, क्रीम कलर का शहद तैयार करते हैं। जागरण

जगराओं [बिंदु उप्पल]। ब्राउन, गोल्डन व काले रंग का शहद आपने देखा होगा, लेकिन शहद की एक वेरायटी क्रीम कलर की भी है। पंजाब के जगराओं से 12 किलोमीटर दूर चूहड़चक्क गांव के मधुमक्खी पालक नरपिंदर सिंह इसे तैयार करते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है, इसलिए इसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। विदेशोंं में इसकी डिमांड ज्यादा है। 

नरपिंदर सिंह ने बताया कि गोल्डन हनी मल्टी-फ्लावर, टाहली व सफेदा और ब्लैक हनी अजवायन व बेरी पर बैठने वाली मधुमक्खियां तैयार करती हैं, जबकि सरसों के फूलों पर बैठनी वाली मधुमक्खियां देसी घी के रंग वाला क्रीम कलर का शहद तैयार करती हैैं। इसमेंं प्राकृतिक तौर पर ग्लूकोज की मात्रा अन्य शहद से अधिक होती है। क्रीम कलर का शहद पेट की बीमारियों, कमजोर व्यक्तियों व कोलस्ट्रोल स्तर को ठीक करनेे में मददगार होता है। इसकी विदेशों में खूब डिमांड है। क्रीम शहद को दूध, ब्रेड, चाय मेें डालने के साथ-साथ जैम की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है।

नरपिंदर सिंह द्वारा तैयार किया गया शहद। जागरण

क्रीम हनी विद जिंजर

नरपिंदर सिंह धालीवाल द्वारा तैयार किए जाने वाले क्रीम हनी की खासियत यह भी है कि वह इसमें अदरक (जिंजर) भी मिलाते हैं। यह गले, खांसी व जुकाम वाले मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। आयुर्वेद में हनी व जिंजर (अदरक) बीमारियों को भगाने मेंं मददगार औषधि हैैै।

नरपिंदर सिंह। जागरण

7 डिब्बों से 700 तक पहुंचे

नरपिंदर सिंह का कहना है कि उन्होंने 1997 में खेतीबाड़ी विभाग मोगा से मधुमक्खी पालन का कोर्स किया था।कोर्स करने के बाद उन्होंने सात डिब्बों से बी-कीपिंग का काम शुरू किया। अपने रोजगार में आधुनिकता व नई तकनीक को शामिल करने के लिए पीएयू के स्किल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट से एडवांस ट्रेनिंग ली और आज धालीवाल बी-कीपिंग में 700 डिब्बों में शहद इकट्ठा कर रहे हैंं। वह वर्ष में डेढ़ सौ क्विंटल शहद का उत्पादन कर रहे हैं।

मधुमक्खी के बक्सों के साथ नरपिंदर सिंह। जागरण 

उन्होंने बताया कि जितनी नमी की मात्रा कम होगी उतना ही शहद बढ़िया होता है। बी-कीपिंग के लिए वह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल में जहां-जहां संबंधित फसलों सरसों, नरमा, अजवाइन, मल्टीफ्लावर, बाजरा, लीची, टाहली, सफेदा, सूरजमुखी्, जरी, बरसीम के फूल मिलते हैंं वहां-वहां बी-कीपिंग डिब्बे रख देते हैं और शहद इकट्ठा करते हैंं। 

पराली जलने से उत्पादन प्रभावित

नरपिंदर सिंह धालीवाल का कहना है कि हर वर्ष पराली के सीजन में किसान बेधड़क अपने खेतो में पराली को आग लगाते हैंं। इसके कारण उनकेे बक्सों में रखी कई मधुमक्खियां मर जाती हैं और इसका असर शहद उत्पादन पर पड़ता है।

खुद करते है मार्केटिंग

नरपिंदर सिंह धालीवाल अपने सात लोगों की टीम के साथ मिलकर खुद ही इसकी पैकिंग व मार्केटिंग करते हैं। इसके बाद वह इसेे बाजार में पहुंचाते हैं। उनके शहद की कीमत 300 से 500 रुपये प्रति किलो है। उन्होंने चूहड़चक्क गांव में हनी प्रोसेेसिंग यूनिट लगाया हुआ है, जिसमें सरकार के द्वारा ग्रांट भी मिलती है।

मिलने वाले अवार्ड मेरे लिए चुनौती

नरपिंदर सिंह का कहना है कि उन्होंने आर्थिक तंगी में यह काम शुरू किया था, लेकिन काम को प्रोत्साहन मिला और आज उनके प्रोडक्ट को मार्केट में पहचान मिल चुकी है। उन्हें वर्ष 2014 में मोगा में जिलास्तरीय अवार्ड, 2016 में सहायक धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए खेतां सिंह तलवंडी भाई यादगारी अवार्ड मिला। इसके अलावा वर्ष 2016 मे पीएयू किसान क्लब ने बेस्ट-की-बी कीपर अवार्ड, 2018 में पीएयू से सुरजीत सिंह ढिल्लों यादगारी अवार्ड, 2018 में पूसा यूनिवर्सिटी से इनोवेटिव फार्मर अवार्ड, 2019 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय अन्त्योदय अवार्ड और वर्ष 2020 जुलाई में पंडित दीनदयाल उपाध्याय अन्त्योदय अवार्ड से सम्मानित किया गया। 

बी-पोलन का भी करते हैं काम

नरपिंदर सिंह बी-पोलन का भी काम करते हैंं। उन्होंने बताया कि बी-पोलन सुपर फूड है। जब मक्खियां फूलों से पराग लेकर आती हैंं उसे बी-पोलन कहा जाता है। इसका उपयाेग दवाइयां जिम सेंटर, निसंतान दंपत्तियों के लिए दवा के तौर पर, शूगर के मरीजों के लिए व ऊर्जा भरपूर है। बता दें, मधुमक्खियों द्वारा इकट्ठे किए गए फूलों के परागकण का ढेर उनके आहार के रूप में काम आता है। इसेे ही बी पोलन कहा जाता है। इसमें लगभग 40 प्रतिशत प्रोटीन होता है। 

परिवार देता है कदम-कदम पर सहयोग

उन्होंने बताया कि मेरी अभी की सफलता में वाहेगुरू जी का आशीर्वाद, पिता स्व.जगीर सिंह, माता सुरिंदर कौर, पत्नी रजनदीप कौर व दोनों बच्चों रवनीत कौर, जसकरण सिंह, भाई जसविंदर सिंह पूर्ण सहयोग देते हैं।

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