जैन धर्म का महातीर्थ है अयोध्या नगरी

विश्व भर चर्चित राम जन्म भूमि अयोध्या नगरी में भगवान राम मंदिर का भव्य शिलान्यास उत्सव संपन्न हुआ।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Aug 2020 05:33 AM (IST) Updated:Fri, 14 Aug 2020 05:33 AM (IST)
जैन धर्म का महातीर्थ है अयोध्या नगरी
जैन धर्म का महातीर्थ है अयोध्या नगरी

विश्व में चर्चित श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या नगरी में भगवान राम मंदिर का भव्य शिलान्यास उत्सव संपन्न हुआ। मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारत के धार्मिक इतिहास में सर्वमान्य सेवनायक, मर्यादा और सैद्धांतिक महापुरुष के रूप में अवतरित हो मोक्षगामी परमात्मा बने। अत: उनकी जन्म स्थली अयोध्या आज पवित्र तीर्थ के रूप में मानी जाती है।

निश्चित ही अयोध्या नगरी का प्राचीन काल से ही धार्मिक इतिहास रहा है। पूर्णतया निभीर्ति मार्गीय जैन धर्म की वर्तमान 24वें का आरंभ भी इसी धरा से हुआ। इसी धरा पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव का जन्म भी अयोध्या में हुआ। जैन धर्म के संस्थापक प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव का ऋग्वेद, अर्थववेद, मनुस्मृति एवं भागवत आदि अनेक ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

शिव पुराण में ऋषभ देव को शिव के 28 योग अवतारों में गिना गया है। राजा नाभि व माता मधु देवी के घर उनका जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में हुआ। उस समय अयोध्या को विनीता नगरी भी कहा जाता था। ईक्ष्वाकु वंश की स्थापना भी भगवान ऋषभ के समय में हुई। उस समय की प्रथा के अनुसार ऋषभ कुमार का विवाह सहजन्मा सुनंदा से अथवा एक विवाह सुमंगला नामक अनाथ लड़की के साथ हुआ। इनके 100 पुत्र व 2 पुत्री पैदा हुई। राजगद्दी पर विराजित होने के बाद ऋषभ देव ने अपनी प्रजा को असि, मशी, शिल्प, वाणिज्य, विद्या, कृषि आदि जीवन यापन करना सिखाया। इसलिए इन्हें प्रजापति भी कहा जाता है। इनके पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। भारतीय समाज में उपलब्ध चार वर्णनों में से तीन वर्णनों की रचना ऋषभ देव ने की। उन्होंने ही विवाह प्रथा आरंभ की व बहन के साथ विवाह करना, वर्जित कर दिया। सामूहिक जीवन का महत्व समझते हुए ऋषभ देव ने ग्राम व्यवस्था प्रारंभ की। अपराध वृति को रोकने के लिए उन्होंने दंड व्यवस्था आरंभ की। उन्होंने अपना जीवन सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों पर व्यतीत किया। भगवान ऋषभ देव की आयु 84 लाख पूर्व वर्ष की थी। उन्होंने 83 लाख वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद साधु जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया।

एक हजार वर्ष तक वे साधनारत रहे। एक वर्ष तप करने के बाद पुरी मितालपुर में उनको वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और वह सर्वज्ञा बने। अपने जीवन का अवसान निकट जान कर वो 10 हजार साधुओं के साथ कैलाश पर्वत के पास पहुंचे। तथा छह दिनों की निट-आहार तप के बाद उन्होंने निर्वाण पद प्राप्त किया। उनके बाद अयोध्या नगरी में जैन धर्म के अन्य कई तीर्थंकरों का जन्म भी में हुआ। अत: अयोध्या नगरी जैन धर्म के लिए एक महातीर्थ के रूप में मान्य व अधिकृत है।

-- प्रस्तुति सिकंदर लाल जैन, लुधियाना।

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