वस्त्र नहीं व्यक्ति का चरित्र उसे सभ्य बनाता है : अरुण मुनि

एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में अरुण मुनि ठाणा-6 सुखसाता विराजमान हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 03:30 AM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 03:30 AM (IST)
वस्त्र नहीं व्यक्ति का चरित्र उसे सभ्य बनाता है : अरुण मुनि
वस्त्र नहीं व्यक्ति का चरित्र उसे सभ्य बनाता है : अरुण मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में अरुण मुनि ठाणा-6 सुखसाता विराजमान हैं। गुरुदेव अरुण मुनि ने कहा कि सब कुछ होते हुए भी कर्जा नहीं उतारे व दान न दें तो विनाश का लक्षण है। बेटा अगर बाप की व चेला अगर गुरु की अवमानना करता है तो विनाश का कारण है।

उन्होंने कहा कि एक बार एक विदेशी ने संत से कहा कि आप अच्छे वस्त्र नहीं पहनते, तो आप कभी भी सभ्य नहीं बन सकते। इस पर संत ने कहा कि आपकी संस्कृति में वस्त्र व्यक्ति को सभ्य बनाते है, पर हमारी संस्कृति व्यक्ति का चरित्र उसे सभ्य बनाता है। अगर आप गृहस्थ हैं। शादीशुदा हैं तो आपके घर एक लड़की तो होनी ही चाहिए। लड़का न भी हो तो चलेगा। क्योंकि जिसके पास लड़की नहीं होती, उसके पास दिल नहीं होता। किसी को अपमान नहीं, अपनापन दो। श्री कृष्ण म. की द्वारिका नगरी के विनाश का भी सबसे बड़ा कारण संत का अपमान था। क्योंकि जहां पर संत सती का अपमान होता है, वो व्यक्ति, वो स्थान कभी भी फल-फूल नहीं सकता। अरे तुम एक परदेसी हो एक दिन तुम्हें अपने देश वापस लौटना है। अभी तुम जहां पर्यटन पर आए हुए हो। पर्यटन संभल-संभल कर रहता है। वह किसी से झगड़ता नहीं है। सब की मीठी यादें साथ रखता है, क्योंकि उसे पता है कि उसे वापस जाना है।

गांठ निकलने पर ही मन को शान्ति और चैन मिलता है : रमेश मुनि संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में रमेश मुनि, मुकेश मुनि व मुदित मुनि सुखसाता विराजमान हैं। गुरुदेव रमेश मुनि महाराज ने कहा क्षमा दान का आध्यात्मिक जीवन में तो बहुत अधिक महत्व है। व्यावहारिक जीवन में भी बहुत महत्व है। जब तक क्षमा दान नहीं दिया जाता, ह्दय की गांठ नहीं खुलती और ह्दय की गांठ वाला मनुष्य संसार में कहीं भी आदर नहीं पा सकता। गांठ वाली लकड़ी का न तो कोई फर्नीचर बन सकता है न बांसुरी और न ही अच्छी वस्तु। जिस चीज में गांठ होती है उसे अशुभ मानते है। शरीर में अगर गांठ होती है। डॉक्टर उसे रसोली कहते हैं और ऑपरेशन द्वारा निकाल देते हैं। शरीर की गांठ निकलने पर ही मन को शान्ति और चैन मिलता है तो जब शरीर की गांठ का ही यही हाल है तो मन की गांठ का वो और भी कष्ट होगा। मन और आत्मा में जब तक गांठ लगी है तब तक धर्म का संचार नहीं हो सकता।

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