क्षमा, एकता और स्नेह का प्रसार करने वाला था सुभद्र मुनि का जीवन

भारत महापुरुषों का देश है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 04:00 AM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 04:00 AM (IST)
क्षमा, एकता और स्नेह का प्रसार करने वाला था सुभद्र मुनि का जीवन
क्षमा, एकता और स्नेह का प्रसार करने वाला था सुभद्र मुनि का जीवन

लुधियाना : भारत महापुरुषों का देश है। महापुरुषों की इस उज्जवल परपंरा के प्रकाश को वर्तमान तक पहुंचाने वाले तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी आचार्य प्रवर श्री सुभद्र मुनि महाराज हैं। आचार्य श्री का जीवन समन्वय, क्षमा, एकता, सरलता, सुख और स्नेह का प्रसार करने वाला है। उनका जन्म हरियाणा के रिद्राणा ग्राम में 12 अगस्त सन 1951 को हुआ। बचपन में ही वह देश के विख्यात जैन संत योगीराज श्री राम जी लाल महाराज एवं चौदह भाषाओं के विद्वान गुरुदेव श्री रामकृष्ण महाराज के चरणों में आ गए थे। हरियाणा के जींद क्षेत्र में 16 फरवरी सन 1964 को उन्होंने जैन मुनि से दीक्षा ली।

आचार्य श्री का व्यक्तित्व श्वेतांबर स्थानकवासी जैन परंपरा से जुड़ा होने पर भी दुनिया के कल्याण हेतु समर्पित है। सभी धर्मो के आधार शास्त्रों का इन्हें गहरा ज्ञान है। इन्होंने जन कल्याण के लिए सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इनकी मीठी और ज्ञान भरी वाणी सुनकर लाखों ने अपने जीवन को धर्म से जोड़ा है। भगवान महावीर ने अहिसा का जो सिद्धांत विश्व को प्रदान किया था, उसे विविध रुपों में आचार्य श्री ने साकार किया है। जप, तप की कल्याणकारी साधना से आचार्य श्री का जीवन एकाकार है। इनकी प्रेरणा पाकर अनेक साधकों ने निरंतर तप-साधनाएं सहजता के साथ संपन्न की हैं। आचार्य श्री स्वयं भी समय-समय पर उपवास, आयम्बिल आदि साधनाओं के अलावा सन 1970 से आज तक लगातार प्रत्येक सोमवार को मौन की साधना करते आए हैं। इनके द्वारा बताए गए मंत्रों का जप करते हुए अनेक श्रद्धालु अंध-विश्वासों के शिकार होने से बचे हैं और उनके जीवन से दुख का अंधकार दूर हुआ है। इनकी प्रेरणा से अनेक स्थानों पर मुफ्त चिकित्सा शिविर लगते रहे हैं। अनेक विद्यालय, पुस्तकालय, अस्पताल, औषधालय आदि संचालित होते रहे हैं। इस प्रकार अहिसा को जन-कल्याण का प्रत्यक्ष स्वरुप मिलता रहा है। ऐसे गुरुदेव के पावन जीवन को कोटि-कोटि वंदन।

प्रस्तुति - गुरुदेव रमेश मुनि

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