यमदूत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे कंडम वाहन

जिले में कंडम वाहनों के चलते हादसे हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2020 07:12 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 02:01 AM (IST)
यमदूत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे कंडम वाहन
यमदूत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे कंडम वाहन

नरेश कद, कपूरथला : जिले में दिन प्रतिदिन वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। इन वाहनों में बड़ी संख्या में पुराने वाहन भी शामिल हैं, जो कंडम हो चुके हैं। ऐसे वाहनों की फिटनेस की पड़ताल के लिए ना तो ट्रैफिक पुलिस गंभीर है और ना ही परिवहन विभाग की ओर से कोई कार्रवाई की जा रही है। ट्रैफिक पुलिस का ध्यान सिर्फ कामर्शियल वाहनों पर होता है जबकि शहर की सड़कों पर चलने वाले सैकड़ों आटो, कार, बस, बाइक, स्कूटर कंडम हो चुकें है। ऐसे वाहनों के कारण लोगों का जीवन हमेशा जोखिम में रहता है। जिले में वाहनों की फिटनेस जांचने के लिए कोई इंतजाम ही नहीं है। मशीनों का काम अफसरों की आंखें कर रही हैं। एक सरसरी निगाह दौड़ाने में भी अफसरों को संकोच है तभी तो बिना बैक लाइट और इंडीकेटर के वाहन सड़क पर फर्राटा भरते नजर आते हैं। फाग लाइट और रिफलेक्टर तो अभी काफी दूर की कड़ी हैं। कंडम वाहन जब सड़क पर दौड़ते हैं, तो यह यमराज से कम साबित नहीं होते।

बिना फिटनेस जांच के जारी किए जाते हैं प्रमाणपत्र

नियम तो यह है कि नए व्यावसायिक वाहन की फिटनेस दो साल पर और इसके बाद हर साल फिटनेस की जांच कर प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। प्रमाण पत्र जारी तो होता है, लेकिन बिना हकीकत देखे। बिना हेडलाइट, बैक लाइट, इंडीकेटर के वाहन सड़क पर फर्राटा भरते हैं। ट्रैक्टर ट्राली तो कृषि कार्य के लिए है। लेकिन इससे गांव की सवारियां को भी लेकर जाया जाता है। सड़क पर इस वाहन को नियंत्रित करना आसान नहीं। यही कारण है कि कई बार ट्रैक्टर ट्राली के नियंत्रण खो देने से बड़े हादसे हो जाते हैं। प्रशासन के पास ऐसे वाहनों को सड़क पर उतरने से रोकने के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं है और न ही किसी को इनकी परवाह है। ऐसे ही वाहनों के कारण शहर की आबोहवा खराब हो रही है।

बिना फिटनेस के हजारों वाहन जिले की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जिले में कई वाहन 10 से 15 साल से भी अधिक पुराने हैं। इस प्रकार के वाहन किसी भी समय दुर्घटना का कारण बन सकते हैं। हजारों ऐसे वाहनों को देखा जा सकता है जो जिनमें फाग लाइट, हेड लाइट, बैक लाइट, पार्किग लाइट, कलर रिफ्लेक्टर जैसी सुविधाएं काफी औसत दर्जे की होती हैं, जिससे यह दुर्घटनाओं के वाहन बनते रहते हैं। इन्हें चलाने वाले अधिकतर लोगों के पास ड्राइविग लाइसेंस और कागजात तक नहीं होते। बड़े व्यावसायिक वाहनों के अलावा कार, साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, तांगा, बग्गी, रिक्शा आदि छोटे वाहनों की फिटनेस भी राम भरोसे ही रहती है।

सड़क के किनारे खड़े वाहनों से भी हादसा होने का डर

सर्दी व धुंध के मौसम में सड़क पर खड़े ऐसे वाहन मौत को दावत देने का काम करते हैं। बिना फाग लाइट, बैंक लाइट व रिफलेक्टर के पीछे से आने वालों को दिखाई नही देते।

ट्रैफिक पुलिस सड़कों पर नाका लगा कर वाहनों के दस्तावेज की जांच कर चालान चलान काटती है। कम ट्रैफिक कर्मियों के चलते वाहनों का फिटनेस जांच नहीं हो पाता है। जिला ट्रैफिक पुलिस के पास ना स्पीड मीटर, ना ही कोई रिकवरी वैन है। सिर्फ एलको मीटर है। वाहनों की फिटनेस जांचने की ट्रैफिक पुलिस पास कोई व्यवस्था नही है बल्कि यह कार्य परिवहन विभाग का है। जिले में डीटीओ दफ्तर का कामकाज खत्म कर दिया गया है। अब तमाम कार्य आरटीओ दफ्तर जालंधर के दिशा निर्देश में होता है। लेकिन चार जिलों का कामकाज देख रहे आरटीए दफ्तर के पास कपूरथला जिले के लिए टाइम कहा है। वाहनों की फिटनेस जांचने के लिए कर्मचारियों को वक्त ही नहीं मिलता।

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