World Suicide Prevention Day: जालंधर में 71 दिन में 44 सुसाइड, समय पर काउंसलिंग बचा सकती है कीमती जीवन
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार विश्व होने वाली आत्माहत्याओं में दस फीसद भारत में होती हैं। जालंधर में पिछले 71 दिन में आत्महत्या के 44 मामले सामने आए हैं। इनमें आठ महिलाएं और 36 पुरुष हैं। जान देने वालों में ज्यादातर युवा और अधेड़ हैं।
जगदीश कुमार, जालंधर। बढ़ती बेरोजगारी, रातों रात अमीर बनने के सपने टूटना, प्रतिष्ठा पर दाग लगना, पारिवारिक समस्याएं, कामयाबी की सीढ़ी से फिसलना, शिक्षा या प्रेम में असफलता, यही कुछ बातें हैं जिनसे परेशान होकर लोग आत्महत्या करते हैं। कोरोना काल में कारोबार मंदी से परेशान होकर भी लोगों ने जान दी है।जिंदगी की दौड़ में पिछड़ने पर लोग मानसिक दबाव में जाने देने जैसा खतरनाक निर्णिय ले लेते हैं। आत्म हत्या करने वालों में दो तिहाई लोगों में इसका कारण डिप्रेशन माना गया है। आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो इसमें महिलाओं के मुकाबले पुरुष आगे हैं।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार विश्व होने वाली आत्माहत्याओं में दस फीसद भारत में होती हैं। जालंधर में पिछले 71 दिन में आत्महत्या के 44 मामले सामने आए हैं। इनमें आठ महिलाएं और 36 पुरुष हैं। जान देने वालों में ज्यादातर युवा और अधेड़ हैं। सिविल अस्पताल के रिकार्ड के मुताबिक एक जुलाई से 9 सितबंर तक कुल 44 आत्महत्या करने वाले लोगों के शव पहुंचे। इनमें आठ महिलाएं और 36 पुरुष हैं। मरने वालों में 20-30 साल आयु वर्ग के पांच, 30-40 साल आयु वर्ग के 16, 40-50 साल आयु वर्ग में 19 तथा 50 साल से अधिक आयु के चार लोग शामिल हैं।
समझबूझ से आत्महत्याएं रोकना संभव
एनएचएस अस्पताल के मनोवैज्ञानी अतुल का मानना है कि जिंदगी की दौड़ हार चुके लोग आत्महत्या का रास्ता अख्तियार करते हैं। कुछ लोग मरना नहीं चाहते परंतु आत्महत्या का सहारा लेकर दूसरों से सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करते हैं। परिवार व समाज से अलग थलग हुआ वर्ग अपने दुखों को सबकी नजरों के सामने लाने के लिए आत्मदाह का रास्ता चुनता है। कामकाज, वित्त संकट, पारिवारिक कलह व जिंदगी से परेशान लोग अत्यंत दुखी होकर लोग जीवन खत्म करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे लोगों के पहले तेवर बदलने लगते हैं।परिवार वालों के साथ व्यवहार में बदलाव आने लगता है। ऐसी हालात में घरवालं को उनके साथ सहानुभूति दिखानी चाहिए और उनका दुख समझना चाहिए। इस तरह से उनके मन के विचार बदल सकते हैं।
गंभीर रोगों के शिकार लोगों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति
नील अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. टील चोपड़ा का कहना है कि कैंसर, किडनी रोग, एचआईवी/ एड्स जैसे घातक रोगों के शिकार लोगों की भी आत्महत्याओं में संख्या बढ़ रही है। एक सर्वे के मुताबिक ऐसी बीमारियों से तंग आए लोगों की आत्महत्या में 400 फीसद रुझान बढ़ जाता है। वह अपनी बीमारी से तंग आ जाते हैं और खुद को दूसरों पर बोझ समझते हैं। ऐसे लोगों की समय-समय पर काउंसलिंग करवानी जरूरी है।
जिंदगी के तूफानों का मजबूत मनोबल से करें सामना
माडल नशा छुड़ाओ केंद्र के मनोचिकित्सक डा. अमन सूद कहते हैं कि आत्महत्या करने वाले ज्यादातर लोग समस्या का जिक्र किसी न किसी से जरूर करते हैं। उनको आशा की किरण दिखाई न देने की वजह से आत्महत्या ही एक मात्र लक्ष्य बन जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जिंदगी में आने वाले तूफानों का सामना करने के लिए मजबूत मनोबल को हथियार बनाएं न कि आत्महत्या करें।