पंजाब के इन स्कूलों में भरा है विज्ञान, वीरता और इतिहास का खजाना, वेस्ट सामान से साइंस पार्क

पंजाब के कई स्कूल अन्य स्कूलों के लिए नजीर साबित हो रहे हैं। इन स्कूलों में बच्चों को प्रैक्टिकल ज्ञान देने के लिए माडल तैयार किए गए हैं। वेस्ट से साइंस पार्क तैयार किए गए हैं। यहां वीरता की भी झलक मिलती है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 22 Feb 2021 04:12 PM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 04:12 PM (IST)
पंजाब के इन स्कूलों में भरा है विज्ञान, वीरता और इतिहास का खजाना, वेस्ट सामान से साइंस पार्क
नकोदर के तलवंडी भरों सरकारी हाई स्कूल में लगा ग्लोब। जागरण

लुधियाना/जालंधर [राधिका कपूर/अंकित शर्मा]। पंजाब में कई ऐसे स्कूल हैं, जिनमें विज्ञान, वीरता और इतिहास का खजाना भरा हुआ है। साइंस एक ऐसा विषय जिसे बहुत से विद्यार्थी मुश्किल समझते हैं, लेकिन खेल-खेल में विज्ञान को समझने में इन स्कूलों में मदद मिलती है। आइए नजर डालते हैं पंजाब के कुछ ऐसे ही स्कूलों पर...

लुधियाना में साइंस विषय को रोचक बनाने के लिए सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्मार्ट स्कूल की साइंस मिस्ट्रेस रपविंदर कौर ने एक अनोखा प्रयास किया है। उन्होंने अपने स्कूल प्रांगण में बनी एक छोटी सी जगह को साइंस पार्क में बदल दिया है और वेस्ट सामान जैसे बिजली की तारों, लीक हुई वाटर पाइप, टूटे बेंच, पुराने पंखे, घी के डिब्बों का इस्तेमाल कर माडल तैयार किए हैं। साइंस पार्क में इस समय साउंड पाइप माडल, विंड मिल, विस्परिंग डिस्क, न्यूटन कैड्रल, टेलीस्कोप माडल, पिन होल कैमरा, डीएनए माडल प्रदर्शित किए हैं जिसे स्कूल के कक्षा छठी से दसवीं तक के विद्यार्थी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। वेस्ट सामान से साइंस पार्क तैयार करने के लिए वर्ष 2019 में नेशनल इनोवेशन अवार्ड मिल चुका है।

सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्मार्ट स्कूल लुधियाना में डायग्राम, फार्मूलों व माडल्स के साथ बनाई गई सुंदर साइंस लैब। जागरण

रपविंदर कौर ने स्कूल में बनी साइंस लैब की दीवारों को फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलाजी कांसेप्ट के डायग्राम, रुटीन में इस्तेमाल होने वाले फार्मूलों, माडल्स के साथ सुंदर बनाया है। लैब के अंदर की दीवारों को पेंट और मरम्मत कराने का करीब बीस हजार रुपये का खर्चा खुद उठाया है।

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रपविंदर कौर के निर्देशन में स्कूल के विद्यार्थी बेंगलुरु में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी में बाटल्स ब्रिक्स माडल प्रदर्शित कर चुके हैं, जिसमें बोतल कों ईंटों के तौर पर कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, बताया गया था। स्कूल के साइंस विषय के विद्यार्थी तीन बार राज्य स्तर पर भी माडल्स प्रदर्शित कर चुके हैं। साइंस विषय के अध्यापक 52 बार विभिन्न पुरस्कार जीत चुके हैं। कोविड-19 के पिछले साल रपविंदर कौर ने साइंस के कुछ विषयों को कविता के अंदाज में पेश कर यू-ट्यूब में वीडियो अपलोड किए थे, जिसका इस स्कूल के ही नहीं बल्कि अन्य स्कूलों के बच्चों ने भी फायदा उठाया था।

सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्मार्ट स्कूल लुधियाना में में वेस्ट मैटीरियल से तैयार किया गया साइंस पार्क। जागरण

रपविंदर के अनुसार 2002 में जब वह शिक्षा के प्रोफेशन से जुड़ीं तो देखा कि बच्चे साइंस विषय में कंटेट तो याद कर लेते थे, लेकिन वह कांसेप्ट उन्हेंं क्लियर नहीं होता था। बच्चे विषय को रट्टा न लगाए तो इसके लिए काम शुरू कर दिया। साइंस पार्क, लैब को फार्मेलों, माडल्स से तैयार करना इसी का नतीजा है।

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पटियाला में कार में साइंस लैब

पटियाला के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल शेखुपुरा में तैनात फिजिक्स लेक्चरर जसविंदर सिंह ने अपनी कार को ही साइंस मैथ्स लैब बना लिया है। इस कार में वे करीब 150 प्रेक्टिकल करवाते हैं और इसे गांव-गांव ले जाकर बच्चों को ज्ञान दे रहे हैं। उन्होंने अपनी चलती-फिरती प्रेक्टिकल लैब को साइंस मैथेमेटिक्स लैब ऑन व्हीलस का नाम दिया है। अब तक जसविंदर अपनी इस कार से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली समेत आठ राज्यों में 950 प्रदर्शनियां लगा चुके हैं।

यहां दिखता है सौरमंडल का नजारा

जालंधर के सरकारी मिडिल स्कूल अवतार नगर के बरामद में खड़े होकर खुले आसमान की तरफ देखें तो सौरमंडल का नजारा दिखता है। यह स्कूल महज चार मरले में बना है। इसकी सबसे निचली मंजिल में प्राइमरी, जबकि पहली और दूसरी मजिल पर मिडिल की कक्षाएं चलती हैं। तीसरी मंजिल पर साइंस शिक्षक सुमित गुप्ता ने फाइबर और सरिये की मदद से सौर मंडल का माडल बनाया है। इसके जरिए विद्यार्थी को पृथ्वी से सभी ग्रहों की दूरी, चक्र, गति आदि का ज्ञान दिया जाता है।

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देश का पहला स्कूल जहां अपने ही शहीद छात्र का बना ‘शहीदी स्मारक’

सरकारी माडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड जालंधर यूं तो यह अंग्रेजों के जमाने से यानी कि 1872 से चला आ रहा है। इतिहास के इन पन्नों के संजोए रखने के साथ-साथ इस स्कूल में देश सेवा में कुर्बान हुए अपने ही शहीद छात्र का शहीदी स्मारक बनाया हुआ है। भारतीय तिब्बतियन फोर्स में हेड कांस्टेबल लखबीर कुमार 1999 में दुश्मनों के साथ लोहा लेते हुए श्रीनगर में शहीद हो गए थे।

सरकारी माडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड जालंधर में शहीद स्मारक। जागरण

स्कूल का नाम तो शहीद लखबीर सिंह के नाम पर रख दिया गया था, मगर इसकी पहचान और शहीद की याद को सदैव ताजा रखने के साथ-साथ विद्यार्थियों में देश भक्ति जगाने के उद्देश्य से प्रिंसिपल बरिंदर कौर की तरफ से आईटीबीपी और समाज सेवी संगठनों के साथ मिलकर शहीदी स्मारक बनाया गया। अपनी इसी खासियत की वजह से यह देश का पहला स्कूल बना है, जहां अपने ही छात्र की याद में दिल्ली के अमर जवान की तर्ज पर शहीदी स्मारक बना है।

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स्कूल में लगाया विशाल रिवाल्विंग ग्लोब

नकोदर के तलवंडी भरों सरकारी हाई स्कूल में विद्यार्थियों की रूचि देश ही नहीं विश्व के मानचित्र में देशों के नाम जानें और ग्रहों की पहचान करें। इसके लिए लगभग दस फीट का माडल बनाया गया है। इसमें लगभग साढ़े तीन फीट का रिवाल्विंग ग्लोब बनाया गया है। यानी कि यहां ग्लोब घूमता भी है। इस ग्लोब के ठीक ऊपर सौर मंडल का माडल बनाया है। ताकि विद्यार्थियों को इस ग्लोब के जरिए देश व विश्व के मानचित्र को पहचानने में समझ पैदा हो और सौर मंडल के जरिए विद्यार्थियों को यह पता चल सके कि कौन सा ग्रह पृथ्वी से कितनी दूर है और कितने चक्कर कितने समय में लगा लेता है।

स्कूल के साइंस पार्क में लगा है स्केल्टन

सरकारी कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड जालंधर में मानव कंकाल देखते बच्चे। जागरण

सरकारी कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड में बनाए गए साइंस पार्क में ही छात्राओं का प्रेक्टिकल होता है। क्योंकि इस स्कूल में ह्यूमन स्केल्टन (मानव कंकाल) भी रखा है। इसके जरिए शिक्षक छात्राओं को ह्यूमन बाडी पार्ट्स आदि की जानकारी देते है। प्रिंसिपल सुनीता सहोता रंधावा कहते हैं कि साइंस पार्क में छात्राओं को छोटी-छोटी बातों के जरिए ज्ञान बांटने के उद्देश्य से ही यह स्केल्टन लगाया गया है। जिससे छात्राओं को मनुष्य के शरीर से जुड़ी जानकारियां देने के लिए प्रेक्टिकल का पीरियड लगाने के प्रयोग किए जाते हैं। जिसके बेहतर नतीजे भी सामने आए हैं।

ऐसा स्कूल जहां ज्ञान ही नहीं हर मर्ज की दवा भी मिलती है

फिल्लौर में पड़ते गांव आशापुर के सरकारी हाई स्कूल में केवल विद्यार्थियों को पढ़ाई के जरिए ज्ञान ही नहीं यहां से विद्यार्थियों ही नहीं गांव वासियों को हर मर्ज की दवा भी मिलती है। स्कूल के प्रिंसिपल तीर्थ बासी की तरफ से आयुर्वेदिक में डिग्री की हुई है। वे कहते हैं कि जब बच्चों के दाखिले बढ़ाने के लिए गांव-गांव में दौरा करते थे, तब वहां की स्थिति इतनी खराब थी कि आस-पास कोई भी क्लीनिक आदि नहीं था। ऐसे में स्कूल में ही साइंस कार्नर बना लिया। इसी से असर यह हुआ कि बच्चे भी बीमार होने पर छुट्टी नहीं करते थे, बल्कि उन्हीं से दवा लेकर पढ़ाई का क्रम जारी रखते थे। स्कूल बंद होने के बाद वे गांव के लोग भी निशुल्क सेवा के तहत आयुर्वेदिक दवाएं देते हैं।

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