Nihang Singh : मुगलों से लड़ने के लिए श्री गुरु गोबिंद सिंह ने बनाया था निहंग सिंहों का दस्ता, जानिए क्या है इनका इतिहास

Nihang Singh पटियाला में पंजाब पुलिस के एएसआइ हरजीत सिंह का हाथ काटने की घटना के बाद चर्चा में आए निहंग सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सिंघु बार्डर पर हुई निर्ममता हत्या के बाद हर कोई जानना चाहता है कि आखिर ये निहंग कौन हैं।

By Vinay KumarEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 01:12 PM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 03:37 PM (IST)
Nihang Singh : मुगलों से लड़ने के लिए श्री गुरु गोबिंद सिंह ने बनाया था निहंग सिंहों का दस्ता, जानिए क्या है इनका इतिहास
Nihang Singh श्री गुरु गोबिंदर सिंह ने मुगलों से लड़ने के लिए निहंग सिंहों का दस्ता तैयार किया था।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: Nihang Singh  कोरोना काल के दौरान पटियाला में पंजाब पुलिस के एएसआइ हरजीत सिंह का हाथ काटने की घटना के बाद चर्चा में आए निहंग सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सिंघु बार्डर पर अनुसूचित जाति से संबंधित 34 वर्षीय युवक लखबीर सिंह की जिस निर्ममता से हत्या कर उसके शव को बैरिकेड से लटकाया गया, उससे हर कोई स्तब्ध है। हत्या के बाद जारी वीडियो में निहंग सिंहों ने कहा कि लखबीर सिंह श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने आया था। उन्होंने हत्या की जिम्मेदारी भी ली।

इस नृशंस हत्या के बाद हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर ये निहंग कौन हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के प्रो. गुरदर्शन सिंह ढिल्लों जो खुद भी एक बड़े सिख इतिहासकार हैं, उन्होंने दैनिक जागरण को बताया कि मुगलकाल में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों से लड़ने के लिए निहंग सिंहों का दस्ता बनाया था। इन्हें आदेश था कि वह खास पहरावे में हर समय तैयार रहें।

इन्हें आम लोगों की तरह जीवन निर्वाह करने की मनाही है, इसलिए ये छावनी बनाकर रहते हैं। वहीं पर गुरुद्वारा साहिब भी बना लेते हैं। नीला चोला इनकी पहचान है। सिर पर नीले रंग का दुमाला (गोल पगड़ी) पहनते हैं, जिस पर लोहे का बड़ा कड़ा भी लगाया जाता है। इसके अलावा भाला, तलवार आदि इनके प्रमुख हथियार हैं। यह आमतौर पर घोड़ों पर ही सवार होकर चलते हैं। इतिहासकार रतन सिंह निहंग शब्द का व्याख्यान इस तरह करते हैं, 'दर्द और आराम से अप्रभावित। ध्यान, तपस्या और दान के लिए दिया गया' और 'पूर्ण योद्धा'।

प्रो. ढिल्लों का कहना है कि आम लोग इनके घोड़ों और अन्य पशुओं के लिए चारा मुहैया करवाते हैं। पंजाब में बहुत से इलाकों में इनकी छावनियां व गुरुद्वारे हैं। इनकी अपनी शब्दावली भी है। आमतौर पर प्रयुक्त होना वाला शब्द 'चढ़दी कला' भी इनकी शब्दावली से निकला है। डा. गुरदर्शन ढिल्लों का कहना है कि गुरु साहिब ने इन्हें हर समय लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा था, क्योंकि उस समय मुगलों के आए दिन होने वाले हमलों से बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

पंजाब में लगने वाले मेलों जैसे श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला और बैसाखी पर तख्त श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो में लगने वाला मेलों में अंतिम दिन निहंग घोड़ों पर अपने करतब दिखाते हैं। इसी दौरान उनकी ओर से तैयार किया शरदाई शरबत (ठंडई) बांटा जाता है। सिख इतिहासकार बताते हैं कि पहले सिख शासन (1710-15) के पतन के बाद जब मुगल शासक सिखों को मार रहे थे और अफगान हमलावर अहमद शाह दुर्रानी (1748-65) हमले कर रहा था, तब सिख पंथ की रक्षा करने में निहंगों की प्रमुख भूमिका थी। 1734 में खालसाई सेना को पांच बटालियनों में विभाजित किया गया था, तब एक निहंग बटालियन का नेतृत्व बाबा दीप सिंह ने किया था।

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