जालंधर के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की साध्वी रणे भारती ने कहा- सांसारिक कर्तव्यों का वहन करते हुए करें ईश्वर की उपासना

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के सत्संग में साध्वी शशि प्रभा भारती ने प्रवचन करते हुए कहा कि आत्मा का भोजन सत्संग स्वाध्याय है। सत्संग जीवन को निर्मल और पवित्र बनाता है। यह मन के बुरे विचारों व पापों को दूर करता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 04:42 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 04:42 PM (IST)
जालंधर के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की साध्वी रणे भारती ने कहा- सांसारिक कर्तव्यों का वहन करते हुए करें ईश्वर की उपासना
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के आश्रम में रविवार को सत्संग का आयोजन किया गया। जागरण

जासं, जालंधर। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के अमृतसर बाई पास रोड स्थित आश्रम में रविवार को सत्संग का आयोजन किया गया। आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रणे भारती जी ने कहा कि मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि हम सांसारिक कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें। वास्तव में सांसारिक कर्तव्यों का वहन करते हुए ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। साध्वी रीटा भारती जी ने "मैं किंज करां बयान रहमतां तेरियां" मैं नींवीं मेरा सतगुरु उच्चा, उचया नाल मैं लाईआं" आदि भजनों से श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। 

साध्वी शशि प्रभा भारती ने प्रवचन करते हुए कहा कि आत्मा का भोजन सत्संग, स्वाध्याय है। सत्संग जीवन को निर्मल और पवित्र बनाता है। यह मन के बुरे विचारों व पापों को दूर करता है। भतृहरि ने जो लिखा है, उसका आशय है कि सत्संगति मूर्खता को हर लेती है, वाणी में सत्यता का संचार करती है। चारों दिशाओं में मान-सम्मान को बढ़ाती है, चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। सत्संगति मनुष्य का हर तरह से कल्याण करती है। जैसे चाशनी के मैल को साफ करने के लिए कुछ मात्रा में दूध डालते हैं, उसी तरह जीवन के दोषों को दूर करने के लिए सत्संग करते हैं। सुबह का भोजन शाम तक और शाम का भोजन रात भर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। ऐसे ही सुबह किया हुआ सत्संग पूरे दिन हमें अधर्म और पाप से बचाए रखता है। मानव सत्संग से सुधरता है और कुसंग से बिगड़ता है। कहा भी गया है कि जैसा होगा संग वैसा चढ़ेगा रंग। सत्संग मानसिक समस्याओं की चिकित्सा है। जब मन में काम, क्रोध रूपी वासनाओं की आंधी उठे और ज्ञान रूपी दीपक बुझने लगे, तो ऐसे में सत्संग औषधि का कार्य करता है।

उन्होंने कहा कि  विद्वानों का मानना है कि सत्संग से विवेक जाग्रत होता है। विवेक के जाग्रत होने पर ही यह जाना जा सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? क्या नैतिक है और क्या अनैतिक? सत्संग के बाद सारी संगत को प्रसाद वितरित किया गया। 

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