25 एकड़ में फैली पुलिस लाइन में नहीं लगा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
शहर के बीचों-बीच 25 एकड़ जमीन पर फैली पुलिस लाइन के परिसर में अभी तक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा है।
प्रियंका सिंह, जालंधर
शहर के बीचों-बीच 25 एकड़ जमीन पर फैली पुलिस लाइन के परिसर में अभी तक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया जा सका है। पुलिस विभाग की लापरवाही के चलते हर साल बारिश में पुलिस लाइन दो से तीन महीने तक बारिश के पानी से लबालब रहती है। करोड़ों लीटर पानी नालियों व सीवरेज से बह जाता है। पुलिस अपनी सामाजिक जिम्मेवारी को निभाने को लेकर कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक संबंधित विभाग से भी पुलिस ने माग नहीं की है कि यहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर प्लाट लगाया जाए। पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर कहते हैं कि जैसे ही यह मामला उनके संज्ञान में आया तो इसे लेकर संबंधित विभाग से प्लाट लगाने को कहा है। अगर समय रहते प्लाट नहीं लगता है तो पुलिस अपने स्तर से यहां प्लाट लगवाने की कवायद करेगी।
पुलिस लाइन में पुलिस मुलाजिमों के लिए करीब 400 से भी अधिक क्वार्टर बनाए गए हैं। इन क्वार्टरों में पुलिस वालों के पारिवारिक सदस्य रहते हैं। यहा पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्लाट इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि पुलिस लाइन के आसपास बसी कालोनियों में ट्यूबवेलों से सप्लाई होने वाला पानी भी जमीन से करीब 600 फीट से ज्यादा गहराई से निकाला जा रहा है। अगर यहा पर प्लाट लगा होता तो आज हालात कुछ और होते। न तो ग्राउंड वाटर का स्तर इतना नीचे जाता और न ही लोगों को गर्मियों में पानी की सप्लाई की समस्या पैदा होती। शहर के बीचों-बीच इतना बड़ा परिसर फिलहाल पुलिस लाइन के पास ही है। यहा पर पाच-छह रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्लाट आसानी से लगाए जा सकते हैं। जिला पुलिस मुख्यालय परिसर में जरूर रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्लाट कुछ साल पहले लगाया जा चुका है। उसी समय अगर पुलिस के आला अधिकारी मामले को गंभीरता से लेते तो पुलिस लाइन में भी यह व्यवस्था की जा सकती थी। सीवरेज के ओवरफ्लो से भी मिल जाती मुक्ति
हर साल बारिश के दौरान पुलिस लाइन व आसपास की कालोनियों में जलभराव के साथ-साथ सबसे बड़ी समस्या सीवरेज के पानी के ओवरफ्लो की होती है। दो से तीन महीने तक लगातार प्रेसीडेंट होटल वाली रोड पर सीवरेज का पानी ओवरफ्लो होता रहता है। इससे नागरिकों को आने जाने में परेशानी होती है। इसके साथ ही लाखों रुपये खर्च करके बनाई जाने वाली सड़कें भी पानी की वजह से जल्दी टूट जाती हैं। यही हाल बाकी की कालोनियों का है।