Punjab Conress Crisis: कांग्रेस की प्रयोगशाला बना पंजाब, विधानसभा चुनाव से पहले सीएम का तख्ता पलट
त्वरित टिप्पणी पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह कांग्रेस ने अपने ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का तख्ता पलट किया है उससे कई सवाल उठते हैं। पूरे प्रकरण में लगता है कि पंजाब दरअसल कांग्रेस की प्रयोगशाला बन गया है।
जालंधर, [विजय गुप्ता]। त्वरित टिप्पणी: विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का तख्ता पलट! प्राय: इतने जोखिम लेने का साहस न रखने वाले कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में यह प्रयोग तो किया है लेकिन इसका प्रतिफल उसकी अपेक्षा के अनुरूप रहेगा, यह कहना मुश्किल है। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड, गुजरात व कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदल कर सबको चौंकाया था। कांग्रेस ने भी पंजाब में ऐसा ही कदम उठाया है। बेशक यह चौंकाने वाला कदम नहीं है क्योंकि इसकी भूमिका काफी पहले से तैयार हो रही थी और यह संकेत मिल रहे थे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की कुर्सी छीनी जा सकती है, लेकिन कैप्टन जैसे बड़े नेता की छुट्टी करने का साहस हाईकमान ने जुटाकर जोखिम जरूर उठाया है।
हालांकि राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस में ऐसा ही असंतोष है जैसा कांग्रेस के कुछ नेताओं में पंजाब में था लेकिन चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्री को बदलने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब को प्रयोगशाला बनाया है। कांग्रेस में ऐसा बहुत कम होता रहा है। इसकी वजह स्पष्ट है कि ऐसे बदलाव के बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति को संभालने का आत्मविश्वास शायद पार्टी में नहीं रहा है।
भारतीय जनता पार्टी की बात अलग है क्योंकि उसमें ऐसे बदलाव के बाद भी किसी बड़े विद्रोह की संभावना नहीं रहती। इसका कारण यही है कि नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा का पार्टी पर पूरा नियंत्रण है। गणित ऐसा होता है कि उनके द्वारा जिसे कमान दी जाती है, वे जो नया चेहरा सामने लाते हैं, उसके खिलाफ किसी को आवाज उठाने की गुंजाइश नहीं रहती। इसलिए भाजपा एक के बाद एक ऐसे प्रयोग करती जा रही है।
कांग्रेस ने पंजाब में ऐसा किया तो है लेकिन क्या हाईकमान अब यहां घमासान को शांत कर पाएगा, यह बड़ा सवाल है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ-साथ राहुल गांधी ही नहीं, पंजाब के मामलों में प्रियंका गांधी वाड्रा का भी दखल रहा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि शुरुआत में कैप्टन अमरिंदर सिंह राहुल गांधी को ज्यादा तरजीह नहीं देते रहे हैं। कहीं न कहीं राहुल गांधी तभी से कुछ युवा नेताओं को थपकी देते रहे हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू उनमें सबसे प्रमुख रहे और समय आने पर उन्हीं को कैप्टन के विकल्प के रूप में पार्टी ने प्रस्तुत कर दिया। करीब छह माह से जो चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा था, वह यहीं समाप्त होने वाला नहीं है। नया मुख्यमंत्री कौन होगा, नजरें इससे ज्यादा अब इस पर हैं कि क्या सिद्धू के सहारे हाईकमान पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने में कामयाब हो पाएगा? इस सवाल का जवाब ही कांग्रस के इस प्रयोग की सफलता, असफलता का पैमाना होगा।
(लेखक दैनिक जागरण के पंजाब के वरिष्ठ समाचार संपादक हैं।)