स्वच्छता से जुड़े प्रोजेक्ट पांच साल से कागजों में फंसे, लेटलतीफी व लापरवाही ने बिगाड़ी छवि

स्वच्छता सर्वे-2021 में आगे बढ़ते-बढ़ते अचानक लुढ़क जाने के पीछे नगर निगम की लेटलतीफी और लापरवाही जिम्मेदार है। जिन प्रोजेक्ट के दम पर स्वच्छता रैंकिग में पहले 50 स्थानों पर आने का लक्ष्य बनाया गया था उन सभी का कई साल बाद भी अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 02:01 AM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 02:01 AM (IST)
स्वच्छता से जुड़े प्रोजेक्ट पांच साल से कागजों में फंसे, लेटलतीफी व लापरवाही ने बिगाड़ी छवि
स्वच्छता से जुड़े प्रोजेक्ट पांच साल से कागजों में फंसे, लेटलतीफी व लापरवाही ने बिगाड़ी छवि

जागरण संवाददाता, जालंधर : स्वच्छता सर्वे-2021 में आगे बढ़ते-बढ़ते अचानक लुढ़क जाने के पीछे नगर निगम की लेटलतीफी और लापरवाही जिम्मेदार है। जिन प्रोजेक्ट के दम पर स्वच्छता रैंकिग में पहले 50 स्थानों पर आने का लक्ष्य बनाया गया था, उन सभी का कई साल बाद भी अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया। स्वच्छता के लिए पुराने कूड़े को खत्म करने के लिए बायो माइनिग प्रोजेक्ट, मलबा खत्म करने के लिए कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलेशन वेस्ट प्लांट, ज्यादा कूड़ा पैदा करने वाले होटलों रेस्टोरेंट्स में ही छोटे प्लांट और फूड मार्केट-छोटी इकाईयों के कूड़े को इकट्ठा और निपटारे का इंतजाम नहीं हो पाया। जालंधर में इनमें से एक भी काम अभी तक सिरे नहीं चढ़ा। यह सभी प्रोजेक्ट पांच साल पहले प्लानिग में थे लेकिन पिछले पांच साल के दौरान कागजों में तो काफी आगे बढ़े हैं लेकिन जमीनी तौर पर कोई भी प्रोजेक्ट अभी प्रोसेसिग शुरू नहीं कर पाया। वेस्ट मैनेजमेंट में तो बुरी तरह से पिछड़ ही रहे हैं लेकिन अन्य कैटेगरी भी इसकी वजह से मात मिली है। इंदौर पांचवी बार स्वच्छता रैंकिग में एक नंबर पर रहा है और जिन प्रोजेक्ट्स के कारण जालंधर पहले से भी नीचे गिरा है उन्हीं प्रोजेक्ट को बेहतर ढंग से लागू करके इंदौर स्वच्छता में सिरमौर साबित हुआ। ---------

बायो माइनिग प्रोजेक्ट जमीन पर भी नहीं आया

वरियाणा डंप पर 40 साल से जमा हुए 8 लाख क्यूबिक टन कूड़े को खत्म करने के लिए बायो माइनिग प्रोजेक्ट पर पांच साल से प्लानिग बन रही है। अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के समय में भी यही प्लान शुरू किया गया था लेकिन अब कांग्रेस सरकार का करबी पौने पांच साल का कार्यकाल भी पूरा होने को है लेकिन अभी तक प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हुआ है। एक साल में इतना जरूर हुआ है कि टेंडर प्रोसेस खत्म हो गया है और कंपनी को वर्क ऑर्डर जारी कर दिया गया है। अगर यह प्रोजेक्ट अगले 15-20 दिन में शुरू हो जाता है तो स्वच्छता रैंकिग 2022 में जरूर फायदा मिल सकता है। ----------

सीएंडडी वेस्ट प्लांट से जनवरी में राहत की उम्मीद

वायु प्रदूषण रोकने के लिए निर्माण से जुड़े मलबे के निपटारे के लिए कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलेशन वेस्ट प्लांट लगाया जाना है। यह प्रोजेक्ट अब स्मार्ट सिटी के अधीन है। इस प्रोजेक्ट पर भी पांच साल पहले प्लान बनाया गया था लेकिन अभी तक ग्राउंड लेवल पर नतीजे नहीं आए हैं। अगले दो से तीन महीने में इस पर प्रोसेसिग शुरू होने की उम्मीद है। इससे नगर निगम को राहत मिल सकती है।

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आधे बल्क जेनरेटर ही कूड़े को खाद मे बदल रहे

नगर निगम बल्क जनरेटर के यूनिटों में अभी तक कूड़े से खाद बनाने का काम पूरी तरह से शुरू नहीं करवा पाया है। शहर की हद में नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक 54 बल्क वेस्ट जनरेटर हैं। इन संस्थानों में रोजाना 50 किलो से अधिक कूड़ा निकलता है। इसके लिए जरूरी है कि यह संस्थान अपने परिसर में ही कूड़े को खाद में बदलने की प्रक्रिया अपनाएं। इसके लिए छोटे प्लांट भी लगाए जा सकते हैं और मैनुअल प्रक्रिया भी अपनाई जा सकती है। अभी तक सिर्फ 26 यूनिट में ही यह प्लांट लगा है।

--------- फूड मार्केट का कूड़ा प्रोसेस नहीं हो रहा

नगर निगम कमर्शियल यूनिट से कूड़ा इकट्ठा करके डंप पर भेजता था लेकिन अब यह काम बंद हो गया है। छोटे ढाबों, रेस्टोरेंट, फूड स्ट्रीट अपना कूड़ा डंप पर ही फेंकते हैं। कई बार रेहड़ी वाले इसे बिना मंजूरी बने डंप पर डाल आते हैं जिससे शहर में गंदगी बढ़ती है। इन पर नगर निगम की कार्रवाई भी नहीं हो रही। शहर में कई जगह फूड मार्केट बन गई है लेकिन इन्हें निगम संगठित नहीं कर पा रहा। हालांकि नगर निगम दावा करता है कि आने वाले दिनों में इस पर बड़े स्तर पर काम होगा। ----------------------------------------

ये हैं स्वच्छता के प्रहरी

पटवारी ढाबे पर रोजाना बन रही खाद, लोगों का निशुल्क मिल रही

जीटी रोड पर परागपुर के पास पटवारी ढाबा वेस्ट मैनेजमेंट में अपनी जिम्मेवारी पूरी तरह से निभा रहा है। ढाबा मालिक राजकुमार ने करीब ढाई लाख की मशीन लगाई है। इस इलेक्ट्रिक मशीन से फूड वेस्ट को खाद में बदला जा रहा है। नगर निगम के नियमों की पालना हो रही है और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम किया जा रहा है। रोजाना निकलने वाली खाद को बेचने के बजाय लोगों को बांट दिया जाता है। खाद की क्वालिटी काफी अच्छी है और छोटे किसान, घरों में बगीचों के लिए लोग खाद लेकर जाते हैं।

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