सिविल अस्पताल के नशा छुड़ाओ केंद्र में 'माड़ी हालत होई पई मरीजां दी'

तीन माह के बाद भी नशा छुड़ाने वालों के इलाज के लिए नशा छुड़ाओ केंद्र खाली नहीं हुआ। पिछले दिनों कुछ लोग मरीज को भर्ती करवाने आए तो डॉक्टरों ने उन्हें स्थिति से अवगत करवा दिया।

By Vipin KumarEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 09:37 AM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 09:37 AM (IST)
सिविल अस्पताल के नशा छुड़ाओ केंद्र में 'माड़ी हालत होई पई मरीजां दी'
सिविल अस्पताल के नशा छुड़ाओ केंद्र में 'माड़ी हालत होई पई मरीजां दी'

जालंधर, जगदीश कुमार। बादल सरकार के कार्यकाल में सरकारी मेडिकल कॉलेज अमृतसर की ओर से जालंधर के सिविल अस्पताल में 50 बेड की क्षमता वाला मॉडल नशा छुड़ाओ केंद्र बनाया गया था। पहले यहां पैसे लेकर इलाज किया जाता रहा, लेकिन बाद में कैप्टन सरकार ने नशा मुक्त पंजाब के सपने को पूरा करने के लिए इलाज मुफ्त कर दिया।

इसी बीच कोरोना ने दस्तक दी और अधिकारियों को कोरोना के मरीज भर्ती करने के लिए यह वार्ड पसंद आ गया। फिर क्या था, नशा छुड़ाओ केंद्र को सरकारी नर्सिंग स्कूल के दो कमरों में शिफ्ट कर दिया गया। हालात यह है कि तीन माह के बाद भी नशा छुड़ाने वालों के इलाज के लिए नशा छुड़ाओ केंद्र खाली नहीं हुआ। पिछले दिनों कुछ लोग मरीज को भर्ती करवाने आए तो डॉक्टरों ने उन्हें स्थिति से अवगत करवा दिया। वार्ड देख लोग भी बोल पड़े, एह तां मरीजां दी बड़ी माड़ी हालत होई पई।

दवा के बाजार में दुखी दुकानदार
कोरोना वायरस से बचाव के लिए सरकार ने मार्च में कफ्र्यू लगा दिया था। इसके बाद कारोबार पूरी तरह बंद हो गया था। कुछ दिनों के लिए इनमें दवा विक्रेता भी शामिल थे। ऐसे में दवा विक्रेता एसोसिएशनों के प्रधानों ने प्रशासन के द्वार पर पहुंचकर जमकर राजनीति चमकाई। कुछ दिन के बाद दुकानें खोलने के आदेश आए व बाजार खुल गए। नियमों की धज्जियां उड़ती देख पुलिस ने वहां निगरानी बढ़ा दी।

कफ्र्यू हटने के बाद भी दिलकुशा मार्केट से पुलिस की निगरानी नहीं हटी। इस पूरे प्रकरण में पार्किंग की व्यवस्था भी बाजार के बाहर कर दी गई। हालात ये हैं कि होलसेलर तो पुलिस की निगरानी में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं, लेकिन रिटेलरों को परेशानी उठानी पड़ती है। कारण, रिटेल केमिस्टों को वाहन बाहर खड़े करके पैदल मार्केट में आना पड़ता है और हर दुकान से दवा खरीद कर बार-बार गाड़ी में रखने जाना पड़ता है।

डॉक्टर्स डे पर मायूस रहे डॉक्टर
एक जुलाई को मनाए जाने वाले डॉक्टर्स-डे पर हर साल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के डॉक्टरों के चेहरे खिले दिखते हैं। इसके उपलक्ष्य में कई जगहों पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। हालांकि इस बार ऐसा नहीं दिखा। इसके पीछे मुख्य कारण डॉक्टरों में सरकार के खिलाफ गुस्सा माना जा रहा है। डॉक्टर्स-डे पर आइएमए के डॉक्टरों का माहौल ठंडा रहा।

यही कारण था कि नीमा और जालंधर बाइकिंग क्लब की ओर से निकाली गई साइकिल रैली में भागीदारी के बावजूद आइएमए के सदस्य न के बराबर दिखे। जो पुराने सदस्य पहुंचे, उनमें भी अधिकतर बाइकिंग क्लब की टीम का हिस्सा थे। इसके अलावा कार्यक्रम को लेकर आइएमए के प्रधान डॉ. पंकज पाल भी बिल्कुल पीछे रहे। जब सदस्यों ने उन्हेंं विचार रखने के लिए कहा तो वे टाल-मटोल कर गए। हालांकि इस पूरे कार्यक्रम में नीमा के प्रधान डॉ. अनिल नागरथ अपनी टीम को साथ लेकर पहुंचे थे।

ड्यूटी लगते ही विधायक की शरण
कोरोना के मरीजों की संख्या अचानक बढऩे पर सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे अधिकारियों व मुलाजिमों पर भी काम का बोझ बढ़ गया। उधर, सिविल अस्पताल के मरीज ईएसआइ अस्पताल जाने लगे, जिसके कारण वहां भीड़ बढऩे लगी। अब जब मरीज सिविल अस्पताल से आ रहे थे तो ईएसआइ अस्पताल की एमएस डॉ. लवलीन गर्ग ने स्टाफ भी सिविल अस्पताल से भेजने की बात कही।

इस पर सिविल अस्पताल प्रशासन ने सारी बात सिविल सर्जन के पाले में डाल दी। खैर, पत्र सिविल सर्जन के टेबल पर पहुंचा तो मामले की नजाकत समझते हुए सिविल अस्पताल के कुछ स्टाफ की ड्यूटी ईएसआइ में लगा दी गई। ड्यूटी लगने के बाद स्टाफ ने ज्वाइन तो कर लिया, लेकिन उनके दर्शन सिर्फ हाजिरी रजिस्टर में ही होते थे। इसके बाद वे विधायकों की शरण में पहुंच जाते और कुछ दिनों बाद ही ड्यूटी हटाने के लेटर लेकर वापस सिविल अस्पताल आने लगे।

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