जाली आइएसआइ मार्क के साथ बिक रहा पाइप फिटिग का सामान
शहर में जाली आइएसआइ मार्क के साथ बिक रहा पाइप फिटिग का सामान बीआइएस धारक मैन्युफैक्चरर्स के लिए आर्थिक संकट की वजह बन गया है।
जागरण संवाददाता, जालंधर
शहर में जाली आइएसआइ मार्क के साथ बिक रहा पाइप फिटिग का सामान ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआइएस) सर्टिफिकेट धारक मैन्युफैक्चरर्स के लिए आर्थिक संकट की वजह बन बैठा है। बीआइएस धारक मैन्युफैक्चरर्स को सरकार की तरफ से क्वालिटी कंट्रोल के लिए निर्धारित किए गए तमाम मानदंडों का पालन करना पड़ता है, जिस वजह से लागत बढ़ जाती है। वहीं जाली आइएसआइ मार्क लगाने वाले लोग क्वालिटी एवं लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते हैं। ये न केवल पाइप फिटिग मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि सरकारी खजाने को भी चपत लग रहे हैं।
पाइप फिटिग मैन्युफैक्चरर का दावा है कि जाली आइएसआइ मार्क लगा कर माल तैयार करने वाले लोग गलियों में छुपकर समान तैयार करवाते हैं और सस्ते मूल्य पर बेच देते हैं। हैरानीजनक यह है कि जाली आइएसआइ मार्क लगाने वाले लोग सरकार तक को माल सप्लाई कर रहे हैं। ये लोग कास्टिंग बाजार से करवा लेते हैं और उसके ऊपर कोल्ड जिक की परत चढ़ा देते हैं। पाइप फिटिग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन जालंधर के महासचिव कृष्ण कुमार पासी ने कहा कि कोल्ड जिक की परत चढ़ाने पर महज पांच रुपये प्रति किलो का खर्च आता है, जबकि हॉट जिक 25 रुपये प्रति किलो पर संभव हो पाती है। कोल्ड जिक लोगों की सेहत के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि यह तुरंत पानी में घुल जाती है और लोगों के अंदर जाकर नुकसान पहुंचाती है। कृष्ण कुमार पासी ने कहा कि बीआइएस सर्टिफिकेट लेने के लिए तमाम शर्ते पूरी की जाती हैं, जिसके ऊपर लाखों रुपये का खर्च आता है। इसमें मैटीरियल की टेस्ट रिपोर्ट साथ लगती हैं। उसके बाद प्रतिवर्ष फीस देनी पड़ती है। एक इंजीनियर नियुक्त करना पड़ता है और प्रतिमाह सैंपल लेकर उसका सारा रिकार्ड भी रखना पड़ता है, लेकिन जाली आइएसआइ मार्क लगाने वाले मात्र जाली स्टंपिग कर माल सस्ते मूल्य पर बेच डालते हैं, जबकि उनका माल बिक ही नहीं पाता।