बहीखाताः मय के दीवानों की कटेगी जेब, सरकार और ठेकेदारों ने खेला ऐसा खेल
सरकार ने पेंडिंग पड़े ग्रुप अलॉट कर करोड़ों कमा लिए और ठेकेदारों ने कंपनी बनाकर अपना रास्ता साफ कर लिया।
जालंधर, जेएनएन। आखिरकार जाम से खजाना भरने का फार्मूला सरकार और ठेकेदारों को रास आ ही गया। सरकार ने पेंडिंग पड़े ग्रुप अलॉट कर करोड़ों कमा लिए और ठेकेदारों ने कंपनी बनाकर अपना रास्ता साफ कर लिया। रही कसर शराब की बिक्री पर लगने वाले कोविड सेस से निकल जाएगी। ठेकेदारों ने कंपनी बनाकर शराब के ठेके खरीदे तो यह भी तय हो गया कि इसके दाम भी कंपनी अपनी मर्जी के अनुसार तय करेगी। इसका असर सीधे तौर पर शराब खरीदने वालों पर पड़ेगा। उन्हें मजबूरन कंपनी की मनमर्जी वाले दामों पर शराब खरीदकर लूट का शिकार होना पड़ेगा। पहले तो ठेकेदार इस बात का रोना रो रहे थे कि बिक्री ही नहीं है। लेकिन अब जब बिक्री होगी तो महंगे दाम पर शराब बेच कर वे अब आम जनता की जेबों को काटकर अपनी खाली जेबें भरेंगे।
सरकार से रोडवेज किराया कैसे मांगे
कोविड-19 के चलते राज्य की सरकारी बस सेवा ही सारथी बनी हुई नजर आ रही है। हजूर साहिब हो अथवा राजस्थान। श्रमिकों को स्टेशन छोड़ना हो या विदेशों से आने वाले एनआरआइ को घर लाना हो। हर जगह हाजिर है पंजाब रोडवेज। इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि यात्रियों को लाने के लिए इन बसों में जो डीजल डाला जा रहा है उसका खर्च कौन देगा। बस चाहे सरकारी थी, डीजल तो जरूरी था। हालात ऐसे हो गए हैं कि पहले पैसे लेकर टिकट काटने वाली रोडवेज अब सफर खत्म हो जाने के बावजूद भी अपना किराया वसूल नहीं कर पा रही है। बिल बना कर सरकार को भिजवा दिए गए हैं और अधिकारी अब पेमेंट की विनती कर रहे हैं। सबसे बड़ी परेशानी विभाग के पास यह खड़ी हो गई है कि अगर जल्द पैसे नहीं मिले तो फिर मसला डीजल भरवाने का खड़ा हो जाएगा।
जनप्रतिनिधियों को जन से ही चुनौती
कोविड महामारी ने कुछ ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि जनप्रतिनिधियों को लोगों को यह बता पाने में ही चुनौती खड़ी हो गई कि जनता जनार्दन के लिए आखिर वह कर क्या रहे हैं। परिस्थितियां कुछ इस तरह से गंभीर हुई हैं कि जनप्रतिनिधि तो जन से मिल नहीं पाए और उनकी समस्याओं का प्रतिनिधित्व भी कर नहीं पाए। अफसरशाही ही फोकस में रही और जनता भी पूरी तरह से सरकारी तंत्र पर ही निर्भर हो गई। सबसे बड़ी समस्या यह बन गई कि जनप्रतिनिधियों के लिए फोटो खिंचवाना भी संभव ना रहा। हालात ऐसे बन गए हैं कि जनता को अब सरकारी तंत्र से संवाद का तरीका पता चल गया है, जिसमें जनप्रतिनिधि कहीं शामिल ही नहीं हैं। वक्त तो मात्र डेढ़ वर्ष का ही बचा है। चिंता तो इस बात की है कि जब मिलने गए तो कोई यह न पूछ ले कि हुजूर आप आए कहां से?
सवारियां होणगियां तां ही उड़ांगे
थ्री व्हीलर चालक तब तक आगे नहीं बढ़ता, जब तक यात्री पूरे नहीं हो जाते। इन दिनों हालात कुछ ऐसे बने हैं कि विमान भी तब ही रवाना किया जाता है, जब यात्री पूरे हो जाते हैं। लगभग सवा दो महीने के लंबे इंतजार के बाद आदमपुर-दिल्ली फ्लाइट शुरू की गई। यूं तो फ्लाइट बीते मंगलवार से शुरू करने की घोषणा की गई, लेकिन सप्ताह में मात्र दो दिन ही संचालन संभव हो सका। यात्रियों को तो फ्लाइट कैंसिल होने की वजह टेक्निकल बताई गई, लेकिन चर्चा यही है कि पर्याप्त संख्या में यात्री न होने के चलते ही ऐसा हो रहा है। पहले ही भारी-भरकम आॢथक मंदी झेल रही एयरलाइन अब कुछेक यात्रियों के साथ फ्लाइट का संचालन कर अपने घाटे को और बढ़ाने के हक में नहीं हैं। इस सबके बीच वही यात्री परेशान हैं, जिन्हें टिकट बुक करवाने के बाद भी फ्लाइट नसीब नहीं हो रही।