मेहनत के पसीने से 72 साल की नवरूप ने खेतों की मिट्टी को बना दिया सोना Jalandhar News

नवरूप का कहना है कि खेतों में काम करने के लिए उन्होंने कभी महसूस नहीं किया की वह एक महिला है। गांव व आसपास गांव के लोग उन्हें पूर्ण सहयोग देते हैं।

By Sat PaulEdited By: Publish:Tue, 22 Oct 2019 12:40 PM (IST) Updated:Tue, 22 Oct 2019 05:25 PM (IST)
मेहनत के पसीने से 72 साल की नवरूप ने खेतों की मिट्टी को बना दिया सोना Jalandhar News
मेहनत के पसीने से 72 साल की नवरूप ने खेतों की मिट्टी को बना दिया सोना Jalandhar News

जालंधर, [जगदीश कुमार]। आइटी युग में महिलाएं हर फील्ड में मुकाम हासिल कर रही हैं। वहीं कृषि प्रधान प्रदेश में खेत में पसीना बहाने में भी पीछे नहीं हैं। 72 साल की नवरूप ने खेती को अपनाकर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नारा ‘जय जवान, जय किसान‘ में ‘जय किसान’ पंक्ति को सार्थक किया है, तो इनके पिता और भाई ने सेना में सेवाएं देकर ‘जय जवान’ पंक्ति का सार्थक किया।

जालंधर जिला के ब्लॉक रूड़का कला के गांव नवां पिंड नेयचा की रहने वाली 72 साल की नवरूप ने खेतों में पसीना बहाकर जय किसान के नारे को जीवन में अपनाकर दिखाया है। वहीं पिता स्व. जोगिंदर सिंह व भाई सेवानिवृत्त कर्नल अमलदेव सेना में सेवाएं दे चुके हैं। नवरूप का कहना है कि खेतों में काम करने के लिए उन्होंने कभी महसूस नहीं किया की वह एक महिला है। गांव व आसपास गांव के लोग उन्हें पूर्ण सहयोग देते हैं। कई किसान खेती को लेकर उनसे सलाह लेने आते हैं। फसल के बीज खरीदने से लेकर फसल को मंडी में बेचने तक की प्रक्रिया में वह पूरी तरह से निपुण हो चुकी है।

शादी नहीं की, खेती को बनाया जीवन

पिता जोगिंदर सिंह का 1999 में सड़क हादसा हो गया था। 2005 में उनका निधन हो गया। पिता ने फौज में सेवाएं दीं, इस कारण परिवार में भी अनुशासन का माहौल रहा। चचेरे भाईयों ने भी खेती शुरू की, परंतु प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाएं और निराश हो कर विदेश चले गए। नवरूप कहती हैं कि उन्होंने शादी नहीं की। पिता के बाद खुद खेतों में पसीना बहाने लगी। वर्तमान में सात एकड़ में सब्जियां व 24 एकड़ में धान व गेहूं की खेती कर रही हैं। सब्जियों की खेती में मुनाफा कम होने से निराशा हुई, इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी और इसका 5 से 7 एकड़ रकबा कर दिया। इसमें खीरे की खेती को प्रमुखता दी जा रही है।

पिता को देखती थी खेतों में काम करते

बचपन से ही नवरूप को खेतों में काम करने का शौकीन था। नवरूप ने अपने ही नही रिश्तेदारों के खेतों को भी एक नया रूप देने में कामयाबी हासिल की है। नवरूप का कहना है कि पिता के साथ खेतों में जाना और कामकाज देखना जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। उन्होंने एमए बीएड की है। इससे पहले गांव में एक छोटा सा स्कूल खोला था। 1977 में नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक का स्कूल चलाया। बच्चों को स्कूल लेकर आने के लिए पहले जीप और उसके बाद मिनी बस रखी थी, जिसे वह खुद चलाती थी। इसके अलावा पिता के साथ खेतों में ट्रैक्टर से भी खेतों में जुताई करती थी। 11 साल तक स्कूल चलाया।

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