जालंधर कैंट का 120 साल पुराना डेयरी फार्म होगा बंद, मात्र एक हजार रुपये की दर से बेचे 2500 पशु

डेयरी फार्म बंद होने से जहां एक ओर सेना के जवानों को अब पैकेट का दूध पीना पड़ेगा, वहीं 200 परिवारों को रोटी का लाले पड़ जाएंगे, जो काफी समय से कच्चे तौर पर काम कर रहे थे।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Sun, 17 Feb 2019 11:21 AM (IST) Updated:Sun, 17 Feb 2019 11:21 AM (IST)
जालंधर कैंट का 120 साल पुराना डेयरी फार्म होगा बंद, मात्र एक हजार रुपये की दर से बेचे 2500 पशु
जालंधर कैंट का 120 साल पुराना डेयरी फार्म होगा बंद, मात्र एक हजार रुपये की दर से बेचे 2500 पशु

जालंधर छावनी [बृज गुप्ता]। अंग्रेजों के समय से गाय का ताजा दूध पी रहे सेना के जवानों को अब इसके लिए तरसना पड़ेगा। कारण, मोदी सरकार के आदेश पर अब देश की वे तमाम डायरियां बंद हो रही हैं जो सेना के क्षेत्र में आती थीं। इसी क्रम में 120 वर्षों से जालंधर कैंट में चल रहा डेयरी फार्म 31 मार्च से बंद हो रहा है। डेयरी फार्म बंद होने से जहां एक ओर सेना के जवानों को अब पैकेट का दूध पीना पड़ेगा, वहीं 200 परिवारों को रोटी का लाले पड़ जाएंगे, जो काफी समय से कच्चे तौर पर काम कर रहे थे।
 

300 एकड़ में फैले डेयरी फॉर्म में करीब 2500 पशु थे। उन्हें सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार के हवाले कर दिया। यह डेयरी फार्म अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सन 1889 में खोला था ताकि उन्हें व उनके परिवार को गाय का शुद्ध दूध व मक्खन मिल सके। उस समय भी इन फार्मों में भारतीय लोग ही काम करते थे, जबकि मुख्य अधिकारी अंग्रेजी शासन का होता था। अंग्रेजी शासन के बाद यह डेयरियां आज तक यथावत चल रही थीं। पूरे देश में 80 डेयरी फॉर्म थे, जिनमें 39 डेयरी फार्म को वाजपेयी सरकार के समय बंद कर दिया गया, जबकि शेष डेयरियों को अब पूर्ण रूप से बंद किया जा रहा है। दूध सप्लाई करने का जिम्मा अब सरकारी कोऑपरेटिव डेयरियों के हवाले कर दिया गया है।


160 कच्चे कर्मचारी हुए बेघर, सरकार से लगाई आस

कैंट के डेयरी फार्म में 40 कर्मचारी पक्के तौर पर थे जबकि लगभग 160 कच्चे तौर पर काम कर रहे थे। इनमें पक्के कर्मचारियों को तो अब अन्य स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि 160 कर्मचारियोंं को निकाल दिया गया है। बेघर हुए कच्चे मुलाजिम अब रोजी रोटी कमाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो गए हैं। सरकार ने कच्चे व पक्के तौर पर रहने वाले कर्मचारियों को रहने के लिए डेयरी फार्म के भीतर ही निवास दे रखा था। वे काफी समय से डेयरी फार्म ही कार्यरत थे जिन्हें अब घर से भी निकाल दिया गया है। सभी अब भी सरकार से आस लगाए बैठे हैं कि शायद उन्हें कहीं और जगह स्थानांतरित कर दिया जाएगा, परंतु यह असंभव है।

कच्चे तौर पर काम करने वाले विजय कुमार, राकेश कुमार, हंसराज, बाबूलाल का कहना है कि सरकार को चाहिए की उनका और स्थान पर प्रबंध करे। सरकार ने केवल अपना सोचा, काम करने वाले कच्चे मुलाजिमों की तरफ ध्यान नहीं दिया। उन्होंने मोदी सरकार से मांग की है कि बेशक व डेयरी फार्म बंद कर रहे हैं परंतु कच्चे मुलाजिमों की नौकरी का भी प्रबंध डेरी फार्म में किया जाए।
 

1.28 लाख की कीमत का एक-एक पशु सिर्फ 1000 रुपये में बेचा

केंद्र सरकार ने कैंट में 2500 पशु मात्र 1000 रुपये प्रति पशु की दर से बेचे हैं, जबकि एक पशु की कीमत 1,28,000 रुपये आंकी गई थी। इस डेयरी फार्म में ऐसे भी पशु थे जो 1 दिन में 40 किलो तक दूध देते थे। इतनी कम कीमत पर पशु बेचने बाबत कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है। दबी जुबान में इतना जरूर कहा गया है कि यह कीमत वह कीमत है जो मरे हुए पशुओं को उठाने के लिए दी जाती है। यदि सरकार इन पशुओं की बोली खुले रूप से जनता के बीच में लगाती तो प्रत्येक पशु की कीमत 40 से 50 हजार रुपये आसानी से मिल जाती। 1000 प्रति पशु के दर से पशुओं को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के हवाले करने की बात न तो जनता को समझ आ रही है और न ही डेयरी फार्म के अधिकारियों को।

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