गल्ल थोड़ी पर्सनलः जालंधर के बेस्ट ईएनटी सर्जन ही नहीं, चैंपियन स्वीमर व शायर भी हैं डा. शारदा
52 साल से स्वीमिंग कर रहे डा. शारदा ने स्टेट व नेशनल स्तर की कई चैंपियनशिप जीती। तीन साल पहले 65 साल की उम्र में उन्होंने स्वीमिंग की नेशनल वेटरन चैंपियनशिप जीत कर सभी को यह बता दिया कि आप जिंदगी में कोई भी ऊंचाई हासिल कर सकते हैं।
मनोज त्रिपाठी, जालंधर। आइए, आपकी पहचान शहर के बेस्ट ईएनटी सर्जन डा. सुरिंदर शारदा से करवाते हैं। नेशनल चैंपियन और शानदार शायर व कवि के रूप में इनके अंदर छिपे इंसान को इनके करीबी लोग ही जानते हैं। कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। यह कहावत डा. शारदा पर फिट बैठती है। यही वजह है कि जालंधर में पैदा हुए डा. शारदा पांचवीं कक्षा में ही आल इंडिया रेडियो के साथ जुड़े और सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाकर यह संदेश परिवार के साथ-साथ शहर को भी दे दिया था कि बड़े होकर कुछ तो खास करना ही है।
पिता बैकुंठ नाथ शारदा व मां कमलावती ने भी बचपन से ही सही दिशा दिखाई। इसका परिणाम है कि आज हजारों सर्जरी करके मरीजों की जिंदगी को सुगम बनाने के साथ-साथ डा. शारदा ने अपने शौक को भी जिंदा रखा है। अगर जिंदगी जीने का सलीका सीखना हो तो इनके साथ कुछ समय गुजारा जा सकता है कि किस प्रकार से भागदौड़ वाली जिंदगी में अपने व परिवार के साथ-साथ दोस्तों के लिए समय निकालें और जिंदादिली के साथ जिएं।
सीनियर माडल हायर सेकेंडरी स्कूल, लाडोवाली रोड से पढ़ाई करके डीएवी कालेज तक का रास्ता तय करना इनके लिए कोई कठिन काम नहीं था। शुरू से अच्छे अंकों के साथ क्लास में अव्वल आना इनकी आदत में शुमार था। यह आदत अमृतसर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस व एमएम के दौरान भी कायम रही। जिस समय सुरिंदर डीएवी कालेज के छात्र थे उस समय टीचर्स की तीन महीने की हड़ताल हो गई। उसी साल मेडिकल का एग्जाम भी देना था। नतीजतन सुरिंदर ने टीचर्स की हड़ताल को एक मौके के रूप में लिया और मेडिकल की तैयारी के साथ-साथ यूनिवर्सिटी गेम्स पर भी फोकस रखा। परिणाम कुछ समय बाद आ गया और प्री मेडिकल की परीक्षा पास की और उसी साल में उन्होंने यूनिवर्सिटी का स्वीमिंग में रिकार्ड तोड़कर नया रिकार्ड अपने नाम किया।पांचवीं कक्षा से पहले ही इनके अंदर जन्मे बाल कलाकार ने इस समय तक एक खिलाड़ी का रूप ले लिया था। कलाकार को इन्होंने कवि व शायर का रूप भी दे दिया।
सुबह नियमित व्ययाम जिंदगी का हिस्सा
सुबह उठकर नियमित व्ययाम इनकी जिंदगी का हिस्सा है। हमेशा मुस्कराकर मुलाकात करने वाले डा. शारदा के चेहरे पर उनके जानने वालों के हिसाब से कभी भी किसी ने थकान नहीं देखी। प्रसिद्ध शायर सुदर्शन फाकिर भी उनकी कविताओं व शायरी पर वाहवाह करते नहीं थकते थे। साहिर के गीत... मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, इनके पसंदीदा गीतों में शुमार है।
नाश्ते में लेते हैं केले, दूध व दही
52 सालों से लगातार स्वीमिंग कर रहे डा. शारदा ने स्टेट व नेशनल स्तर की कई चैंपियनशिप जीती। तीन साल पहले 65 साल की उम्र में उन्होंने स्वीमिंग की नेशनल वेटरन चैंपियनशिप जीत कर सभी को यह बता दिया कि आप जिंदगी में कोई भी ऊंचाई हासिल कर सकते हैं। सुबह केले, दूध व दही का नाश्ता करके अस्पताल में मरीजों की सेवा के लिए निकलने वाले डा. शारदा दिन में घर की बनी दाल, सब्जी व रोटी खाते हैं और शाम को हल्का खाना।
जिंदगी में हर तरफ से जुड़ता है 'स' शब्द
68 साल के युवा डा. शारदा की जिंदगी में 'स' शब्द के तमाम मायने या यो कहें कि इस शब्द से उनकी सबसे ज्यादा निकटता है। उनका खुद का नाम सुरिंदर, पत्नी सरोजनी, बेटा सिद्धांत व बेटी तस्कीन के अलावा सफल सर्जन, शायर के रूप में कहीं न कहीं 'स' शब्द उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है।
हर घटना से कुछ सीखने की कोशिश
जिंदगी की हमसफर सरोजनी के योगदान को डा. शारदा इस मुकाम तक लाने में काफी अहम मानते हैं। डा. शारदा हर घटना हर चीज से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते हैं। एक बार की बात है कि जब अस्पताल की दीवार में चींटियों को कतार में जाते देखा तो उनका कवि जाग गया और इसे भी शब्दों के जाल में कुछ यूं पिरो दिया 'आपाधापी और तू-तू मैं-मैं में मुबतिला इंसान को, रहनुमाई दरकार है चींटियों की कतार से।'