Punjab Politics: कैप्टन व सिद्धू के बीच फंसे जालंधर के कांग्रेसी, करीबी रहे विधायकों की उलझन बढ़ी

पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह रोजाना कुछ नया सियासी पैंतरा अपना लेते हैं तो कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं। इसके चलते जालंधर के कांग्रेसी भी उलझन में हैं कि अब आगे क्या होगा।

By Edited By: Publish:Fri, 01 Oct 2021 05:56 AM (IST) Updated:Fri, 01 Oct 2021 05:43 PM (IST)
Punjab Politics: कैप्टन व सिद्धू के बीच फंसे जालंधर के कांग्रेसी, करीबी रहे विधायकों की उलझन बढ़ी
जालंधर के कांग्रेसी भी उलझन में हैं कि अब आगे क्या होगा।

मनोज त्रिपाठी, जालंधर। पंजाब कांग्रेस में दो दिग्गजों की लड़ाई का असर जालंधर कांग्रेस की सियासत पर भी पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह रोजाना कुछ नया सियासी पैंतरा अपना लेते हैं तो कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं। इसके चलते जालंधर के कांग्रेसी भी उलझन में हैं कि अब आगे क्या होगा। परगट सिंह सिद्धू को मनाने में लगे हैं और मंत्री बनने के बाद जालंधर आ भी नहीं पाए हैं तो नार्थ हलके के विधायक बावा हैनरी व करतारपुर के विधायक चौधरी सुरिंदर सिंह भी लगातार परगट सिंह व सिद्धू के साथ संपर्क में है कि आगे क्या हो रहा है। अगर सिद्धू की प्रधानगी जाती है तो तीनों विधायकों को नए सिरे से आगे की रणनीति तय करनी पड़ेगी।

वहीं, कैप्टन के करीब रहे वेस्ट हलके के विधायक सुशील रिंकू, सेंट्रल से राजिंदर बेरी और शाहकोट से लाडी शेरोवालिया भी कैप्टन की रोजाना होने वाली सियासी उठापटक को लेकर परेशान हैं। जालंधर में नौ विधानसभा की सीटें हैं। इनमें से करतारपुर, शाहकोट, नार्थ, सेंट्रल, कैंट व वेस्ट हलके पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीत कर विधायक बने थे। फिल्लौर, आदमपुर व नकोदर से शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। नौ में से छह कांग्रेस विधायक सिद्धू के प्रधान बनने के बाद दो खेमों में बंट गए थे। सिद्धू ने ही इसकी नींव रखी थी।

प्रधान बनने के बाद जालंधर दौरे पर आए नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने करीबी विधायकों की तो बल्ले-बल्ले की थी और कैप्टन के करीबी विधायकों पर तंज कसा था। उन्होंने कांग्रेस भवन में कार्यकर्ताओं व नेताओं के साथ बैठक में सुशील रिंकू की मूंछों पर अपनी स्टाइल में कमेंट किया था। इसके बाद से ही अंदाज लगाया जा रहा था कि सिद्धू अब रुकने वाले नहीं हैं। बावा हैनरी सिद्धू के स्वागत में शानदार तैयारियां करवाने को लेकर सबसे आगे आए थे। उसके बाद जब कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हटाने की कवायद तेज हुई तो चौधरी सुरिंदर सिंह भी सिद्धू के खेमे में चले गए थे। हालांकि उनके पिता चौधरी जगजीत सिंह की मृत्यु के बाद चौधरी को सियासत में कैप्टन ही लेकर आए थे और तमाम विरोध के बाद भी उन्होंने अपनी जिद पर सुरिंदर चौधरी को टिकट दिलवाई थी। इसकी घोषणा चौधरी जगजीत सिंह की मृत्यु के बाद कैप्टन ने कर दी थी। चुनाव के समय उन्होंने अपना वादा भी पूरा किया था। इसके बाद भी चौधरी सु¨रदर ¨सह के सिद्धू के खेमे में जाने से कैप्टन खासे नाराज थे।

परगट सिंह शुरू से ही सिद्धू के साथ कैप्टन को सत्ता से उखाड़ फेंकने में कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं। यही वजह है कि सबसे ज्यादा मुश्किल भी परगट के लिए ही है। बाकी विधायक फिलहाल पार्टी के साथ खड़े हैं और यही कह रहे हैं कि वह पार्टी के फैसलों के साथ हैं, लेकिन जब तक कैप्टन व सिद्धू की स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती है तब तक जालंधर के कांग्रेसी दो खेमों में ही बंटे रहेंगे।

जिला कांग्रेस के प्रधान का मामला भी लटका

सिद्धू के पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि जालंधर में दो सालों से खाली पड़ी जिला कांग्रेस के स्थायी प्रधान की कुर्सी भर जाएगी। पहले सिद्धू कैप्टन के साथ उलझे रहे और कैप्टन के जाने के बाद खुद मुख्यमंत्री चरणजीत ¨सह चन्नी से नाराज होकर इस्तीफा देकर बैठ गए हैं। नतीजतन जिला कांग्रेस की प्रधानगी की ताज सजने का सपने लेकर लंबे समय से कांग्रेस भवन व आकाओं के पास चक्कर काटने वाले दावेदार भी मायूस हैं।

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