चाय के खोखे को क्लासरूम बनाया..हर मुश्किल हुई आसान

सही सटीक व त्वरित निर्णय कर पाने की क्षमता ने आज की स्त्री को एक नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है। कोरोना काल में जब स्कूल बंद हुए तो बच्चों की पढ़ाई रुक गई।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 08:00 AM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 08:00 AM (IST)
चाय के खोखे को क्लासरूम बनाया..हर मुश्किल हुई आसान
चाय के खोखे को क्लासरूम बनाया..हर मुश्किल हुई आसान

अंकित शर्मा, जालंधर

सही, सटीक व त्वरित निर्णय कर पाने की क्षमता ने आज की स्त्री को एक नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है। कोरोना काल में जब स्कूल बंद हुए तो बच्चों की पढ़ाई रुक गई। इन हालातों में कई गरीब घरों के बच्चे पढ़ाई से वंचित हुए तो कुछ कामकाज में जुट गए। ऐसे बच्चे भी थे जिनके पास न तो स्मार्टफोन थे और न ही उनके अभिभावक उन्हें स्मार्टफोन लेकर दे सकते थे। स्कूल सिर्फ स्मार्टफोन पर ही पढ़ाई करवा रहे थे। इस मुश्किल हालात में कोरोना की परवाह किए बिना शिक्षिका ज्योति बाला त्रिपाठी आगे आई और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

उनकी यह शुरुआत एक चाय के खोखे से हुई जिसे उन्होंने कोरोना काल में क्लासरूम बना लिया। दरअसल, स्मार्टफोन नहीं होने के कारण आठवीं कक्षा के उर्जाउल ने पिता मोहम्मद सेमुअल के साथ चाय के खोखे में ही हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। सड़क के किनारे व फैक्ट्रियों के पास लोगों के आना-जाना भी बहुत था, मगर शिक्षिका ने सारी परिस्थितियों को नजरअंदाज कर उसे वहीं पर पढ़ाना शुरू किया। रोजाना खोखे में ही क्लास लगती और वहीं नोट्स तैयार होते। देखा-देखी आसपास की बस्तियों के और बच्चे भी वहां पहुंचे और खोखे एक क्लास रूम बन गया।

कोरोना में बदले हालातों की वजह से शिक्षिका ज्योति ने अब अपना हर कीमती क्षण बच्चों की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया है। फिर चाहे कक्षा हो, स्कूल टाइम हो या फिर उसके बाद का समय। बच्चे उनसे किसी भी समय गाइडेंस ले रहे हैं। यही नहीं अगर बच्चों को कोई विषय समझ नहीं आता तो उनके लिए नोट्स तक तैयार करके देती हैं। सरकारी हाई स्कूल कोटरामदास की शिक्षिका ज्योति बाला ने बताया कि पहले थोड़ी मुश्किलें आईं, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों का आत्मविश्वास व उनकी संख्या बढ़ने लगी। करियर बनाने में अंग्रेजी भाषा बाधा न बने इसके लिए वह खास गतिविधियों के जरिये बच्चों का डर दूर करने के साथ-साथ उनमें आत्मविश्वास भर रही हैं। ..ताकि बच्चे भी बिना घबराएं त्वरित निर्णय ले पाएं

शिक्षिका ज्योति बाला कहती हैं उनके दो बच्चे हैं और वे चाहती हैं कि दोनों पढ़-लिखकर कामयाब हो और अच्छे इंसान बनें। यही ख्वाहिश हर मां-बाप की होती है। कोरोना के दौरान ऐसे बच्चों की परेशानियां देखी व जानी तो उनके और ज्ञान के रास्ते में आने वाले परेशानियों को दूर करने की सोची। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ दुनियादारी की भी सीख दी ताकि बच्चे अपने फैसले लेने के योग्य बन सकें और आत्मनिर्भर बन त्वरित निर्णय लेने में पीछे न हटें।

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