महिलाओं के लिए बेहद खास है जालंधर का यह मंदिर, करवाचौथ पर लगती है भीड़, जानें क्‍या हैं मान्‍यताएं

जालंधर का सती वृंदा देवी मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है। जोकि पतिव्रता की उदाहरण के तौर पर आज भी इसकी देशभर में मान्यता है। यही कारण है कि इस मंदिर को सुहागिनों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 05:59 PM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 06:58 PM (IST)
महिलाओं के लिए बेहद खास है जालंधर का यह मंदिर, करवाचौथ पर लगती है भीड़, जानें क्‍या हैं मान्‍यताएं
जालंधर स्थित सती वृंदा मंदिर में सुहागिने करवाचौथ पर विशेष पूजा करने पहुंचती हैं।

जालंधर [प्रियंका सिंह]। सदा सुहागन रहने की ख्वाहिश के साथ पति की लंबी उम्र की दुआ मांगनी है तो महिलाओं के लिए जालंधर के सती वृंदा मंदिर से बेहतर स्थान दूसरा नहीं हो सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती वृंदा देवी दानव जालंधर की पत्नी थी। वह विष्णु की परम भक्त होने के साथ अपने पतिव्रता थी। जब जालंधर देवताओं के साथ युद्ध करने के लिए निकला तो वृंदा देवी ने अपने पति की रक्षा के लिए पूजा अर्चना करने की ठानी। उनकी पति के प्रति इस अगाध श्रद्धा के कारण ही हर सुहागिन करवाचौथ पर पति की दीर्घायु के श्री वृंदा देवी मंदिर में पूजा करना शुभ मानती है। करवाचौथ के दिन इस मंदिर में काफी भीड़ देखने को मिलती है।

रेलवे स्टेशन से मात्र दो किमी दूरी

शहर के इस मंदिर में दूर-दूर से महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करने आती हैं। इस प्राचीन मंदिर को तुलसी मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर दूर पर किशनकोट चंद में स्थित है। इसके साथ देश-विदेश के लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। अगर आप कभी जालंधर शहर आएं तो प्राचीन वृंदा देवी मंदिर के दर्शन करना ना भूलें।

जालंधर स्थित सती वृंदा देवी मंदिर में करवाचौथ पर महिलाएं विशेष पूजा-अर्चना करके पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। 

शहर का सबसे पुराना मंदिर

सती वृंदा देवी मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है। पतिव्रता के उदाहरण के तौर पर आज भी इसकी देशभर में मान्यता है। इसी कारण है कि इस मंदिर को सुहागिनों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।

कहते हैं मंदिर से हरिद्वार तक जाती है गुफा

मान्यता के अनुसार सती वृंदा देवी मंदिर में एक गुफा थी जो सीधे हरिद्वार को निकलती थी। यही कारण है कि इस मंदिर को सती वृंदा देवी मंदिर गुफा के नाम से भी जाना जाता है। इतिहासकारों ने इसकी छानबीन करने की बहुत कोशिश की लेकिन स्थानीय लोगों ने मंदिर को नुकसान होने का हवाला देकर खुदाई नहीं करने दी। 

हर साल लगता है तुलसी व आंवला पूजन मेला

माता वृंदा देवी मंदिर में हर साल तुलसी व आंवला पूजन मेला लगता है। इसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। तुलसी पूजन में तुलसी माता का विवाह और आंवला पूजन में आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। मेले में लाखों श्रद्धालु उपस्थित होते हैं। यह पूजा देशभर में बहुत प्रचलित है।

जानें माता वृंदा देवी की कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माता वृंदा देवी राक्षस परिवार में जन्मी थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी। उनका विवाह दानव जालंधर के साथ हुआ था। वृंदा देवी पतिव्रता थी। एक बार जब दानव जालंधर देवताओं से युद्ध करने के लिए निकला तो सती वृंदा ने कहा कि जब तक आप घर वापस नहीं आते तब तक मैं आपकी सुरक्षा और जीत के लिए अनुष्ठान करती रहूंगी। श्री वृंदा देवी मंदिर में ही उन्होंने अनुष्ठान किया। वृंदा देवी के भक्ति भाव से देवता जालंधर से हारने लगे।

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उनको बचाने के लिए भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर माता वृंदा के सामने आए। माता वृंदा उन्हें देखते ही पूजा से उठ गईं। जैसे ही वह पूजा से उठीं, वैसे ही देवताओं ने राक्षस जालंधर का वध कर दिया जो कि माता वृंदा के पास आकर गिरा। माता वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि तुम इसी क्षण पत्थर हो जाओ। इसके बाद वह खुद पित जालंधर का सिर लेकर सती हो गईं।

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