दशहरा पर 2 करोड़ की जलेबियां खा गए जलंधरिए, हर दुकान पर औसतन 50 किलो से ज्यादा बिकी
एक अनुमान के मुताबिक शुक्रवार को दशहरा पर जालंधर के लोग 2 करोड़ रुपये की जलेबियां खा गए। जिले में 1800 से अधिक हलवाई की दुकानों पर शुक्रवार को अलग से टेंट व स्टाल लगाकर जलेबियां बेची गईं।
शाम सहगल, जालंधर। कोरोना के कारण भले ही अधिकतर दशहरा स्थल वीरान रहे लेकिन जलेबी की दुकानों पर लोगों की भीड़ नजर आई। कई जगहों पर तो जलेबी लेने वालों की लाइनें तक लग गई। एक अनुमान के मुताबिक शुक्रवार को दशहरा पर जालंधर के लोग 2 करोड़ रुपये की जलेबियां खा गए। जिले में 1800 से अधिक हलवाई की दुकानों पर शुक्रवार को अलग से टेंट व स्टाल लगाकर जलेबियां तैयारी की जाती रही।
कई छोटे हलवाइयों ने तो बाजारों व दशहरा उत्सव स्थल को जाने वाले मार्गो पर भी स्टाल लगाकर जलेबी बेची। हर दुकान पर औसतन 50 किलो से अधिक जलेबी की बिक्री हुई। लोगों ने प्रभु श्रीराम को भोग लगाकर जलेबियों का प्रसाद भी वितरित किया। जलेबी 180 रुपये ले लेकर 350 रुपये (दाल वाली देसी घी से निर्मित) प्रति किलो तक बेची गई। जलेबी इतनी खास इसलिए पंडित दीन दयाल शास्त्री बताते है कि प्रभु श्रीराम को शश्कुली नामक मिठाई पसंद थी। इस मिठाई को अब 'जलेबी' कहा जाता है। दशहरा पर जलेबी खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
जलेबी की वैरायटी समय के साथ जलेबियों का आकार व वैरायटी भी बढ़ गई। शूगर फ्री, फलेवर्ड जलेबी, दाल वाली जलेबी, सूजी वाली जलेबी, मैदा वाली जलेबी, इमरती जलेबी खूब बिकी। इसलिए पड़ा जलेबी नाम महाजन स्वीट्स चरणजीत पुरा के सुभाष महाजन बताते है कि आग में जले हुए चाशनी से भरपूर होने के चलते ही इस व्यंजन का नाम जलेबी पड़ा है।