आक्सीजन की बर्बादी रोकने के लिए IIT रोपड़ के वैज्ञानिकों ने तैयार किया 'एमलैक्स' यंत्र, इस तरह करता है काम

आइआइटी रोपड़ के वैज्ञानिकों ने आक्सीजन रेशनिंग यंत्र ‘एमलैक्स’ ईजाद किया है जो आक्सीजन सिलेंडर की लाइफ को तीन गुणा तक बढ़ा देता है। इस यंत्र को डा. आशीष साहनी के नेतृत्व में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी छात्रों ने तैयार किया है।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 09:48 AM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 09:48 AM (IST)
आक्सीजन की बर्बादी रोकने के लिए IIT रोपड़ के वैज्ञानिकों ने तैयार किया 'एमलैक्स' यंत्र, इस तरह करता है काम
आक्सीजन के निरंतर बहाव के कारण सांस लेने के दौरान आक्सीजन की एक बड़ी मात्रा बाहर निकल जाती है।

जागरण संवाददाता, रूपनगर। भारतीय तकनीकी संस्थान (आइआइटी) रोपड़ के वैज्ञानिकों ने आक्सीजन रेशनिंग यंत्र ‘एमलैक्स’ ईजाद किया है जो आक्सीजन सिलेंडर की लाइफ को तीन गुणा तक बढ़ा देता है। इस यंत्र को डा. आशीष साहनी के नेतृत्व में आइआइटी रोपड़ के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी के विद्यार्थी मोहित कुमार, रविंदर कुमार और अमनप्रीत चंद्र द्वारा ईजाद किया गया है। यह उपकरण सांस लेने समय मरीज को आक्सीजन की अपेक्षित मात्रा और सप्लाई प्रदान करता है, सांस लेने समय जब मरीज कार्बन डायक्साईड गैस (सीओ2) को बाहर निकालता है तो उस समय के दौरान आक्सीजन के प्रवाह को बंद करके बचाया जाता है। जिसके साथ आक्सीजन काफी मात्रा में बचाई जा सकती है।

पहले ऐसे हो जाती थी आक्सीजन बर्बाद

अब तक सांस लेने के दौरान आक्सीजन सिलेंडर की पाइप में आक्सीजन को उपभोक्ता द्वारा छोड़ी गई सीओ-2 के साथ बाहर धकेल दी जाती है, जिस दौरान बड़ी मात्रा में आक्सीजन बर्बाद होती है। आक्सीजन के निरंतर बहाव के कारण सांस लेने और सांस छोड़ने के बीच आक्सीजन की एक बड़ी मात्रा मास्क में से बाहर निकल जाती है। जिसके साथ आक्सीजन बर्बाद होती है।

आक्सीजन सिलेंडर के लिए विकसित की गई ‘एमलैक्स’ प्रणाली

‘एमलैक्स’ एक ऐसी प्रणाली है जो विशेष तौर पर आक्सीजन सिलेंडर के लिए विकसित की गई है। आइआइटी रोपड़ के बायोमैडीकल इंजीनियरिंग विभाग में तैनात डा.अशीष साहनी ने बताया कि यह प्रणाली आक्सीजन के प्रवाह को रोगी के सांस लेने और सांस छोडने के बीच संतुलन बनाकर काम करती है। आक्सीजन प्रदान करने का कार्य लंबे समय के लिए होता है। इसलिए यह लंबे समय तक चलने वाले इस काम के लिए भंडार में बड़ी मात्रा में आक्सीजन का बचाव करती है। इसके दो इनपुट और आउटपुट कनैक्टरों और आक्सीजन सप्लाई लाइन के बीच जुड़ सकता है। स्टैंडर्ड आकार के कनैक्टर द्वारा यंत्र कार्यशील रहता है और बिना किसी फालतू सेटअप से यह यंत्र इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका प्रयोग पार्टेबल बिजली सप्लाई (बैटरी) के साथ-साथ लाईन सप्लाई (220व-50 र्टज) की मदद के साथ भी की जा सकती है

आइआइटी रोपड़ के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी के विद्यार्थी मोहित कुमार, रविंदर कुमार और अमनप्रीत चंद्र द्वारा ईजाद किया गया है।

कोरोना काल में तकनीक को पेटेंट करवाने की सोचने का समय नहींः प्रोफेसर राजीव अहूजा

आइआइटी रोपड़ के डायरेक्टर प्रोफेसर राजीव अहूजा ने कहा कि टैकनालोजी ट्रांस्फर को लेकर चुनौती को स्वीकार करने का समय है और अपनी तकनीक को पेटेंट करवाने की सोचने का समय नहीं है बल्कि ऐसे उपायों की जरूरत है जिससे कोविड की वजह से पैदा हुए हालातों से निपटा जा सके। रैशनिंग डिवाइस ‘एमलैक्स’ आक्सीजन सिलेंडर की जिंदगी बढ़ाने के लिए काफी लाभदायक साबित होगी।

‘एमलैक्स’ का ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में हो सकता है सार्थक इस्तेमालः डा. जीएस वांडर

दयानंद मैडिकल कालेज लुधियाना के शोध एवं विकास डायरेक्टर डा. जीएस वांडर ने कहा कि ‘एमलैक्स’ का ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में बेहद सार्थक इस्तेमाल किया जा सकता है। कोविड महामारी की दूसरी लहर के चलते मैडीकल आक्सीजन की मांग कई गुणा बढ़ गई। हाल ही के औद्योगिक आंकड़ों के अनुसार महामारी से पूर्व आक्सीजन की मांग देश भर में 700 टन प्रति दिन (टीपीडी) थाष पिछले वर्ष कोविड-19 की पहली लहर के दौरान लिक्यूड मैडीकल आक्सीजन (एलएमओ) की मांग चौगुनी ( 2,800 टीपीडी) हो गई। इसके अतिरिक्त दूसरी लहर के दौरान यह मांग कोविड लहर के मूलभूत स्तरोंं की अपेक्षा सात गुणा से बढ़कर 5,000 टीपीडी हो गई।

chat bot
आपका साथी