होशियारपुर की दिव्यांग इंद्रजीत कौर ने कमजोरी को बनाया हथियार, महिलाओं को सशक्त कर दिखाई बेहतर जीवन की राह
इंद्रजीत ढाई साल की उम्र में नृत्य करते समय गिर गई थीं। हादसे में वह मस्कूलर डिस्ट्रोपी बीमारी का शिकार हो गई और दोबारा कभी पैरों पर खड़ा नहीं हो पाई। इसके बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। आज उन्होंने महिला सशक्तीकरण और साहित्य के क्षेत्र विशेष पहचान बनाई है।
हजारी लाल, होशियारपुर। छोटे से गांव नंदन की दिव्यांग इंद्रजीत कौर ने रेत में से पानी निकालने का काम किया है। बचपन से पैरों पर खड़े होने में असमर्थ होने के बाद भी उन्होंने कामयाबी की सीढ़ियां चढ़कर सबके आगे हौसले का बड़ा उदारण पेश किया है। इतना ही नहीं, इंद्रजीत ने दो हजार से ज्यादा दिव्यांगों को भी उन्हें उनका हक दिलाया है। उनकी प्रतिभा को सलाम करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 3 दिसंबर, 2018 को उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं।
इंद्रजीत ढाई साल की उम्र में नृत्य करते समय गिर गई थीं। हादसे में वह मस्कूलर डिस्ट्रोपी बीमारी का शिकार हो गई और दोबारा कभी पैरों पर खड़ा नहीं हो पाई। इसके बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। दी। पहले बीकॉम और फिर एमए अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की। महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए अपना नाम से सेल्फ हेल्प ग्रुप शुरू किया। 8 साल पहले इंद्रजीत ने बजवाड़ा के एक छोटे से कमरे से 12 सदस्यों के साथ इस ग्रुप की शुरुआत की थी। ग्रुप में महिलाएं नमकीन, स्नैक्स, भुजिया, पापड़, मठ्ठी, पीनट्स आदि तैयार करती हैं। यह ग्रुप हैंडीक्राफ्ट से जुड़े काम भी करता है।
2014 में मिला पंजाबी साहित्य अकादमी अवार्ड
इंद्रजीत ने साल 2015 में ऋषि फाउंडेशन का गठन किया। संस्था की 40 सदस्य शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक न्याय दिलाने के कार्य कर रही हैं। इंद्रजीत कौर 35 वर्ष की कम आयु के युवाओं को दिया जाने वाले राष्ट्रीय संस्कृति पुरस्कार पाने वाली पंजाब की पहली महिला साहित्यकार हैं। उन्हें वर्ष 2013 में स्वामी विवेकानंद स्टेट अवार्ड आफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया था। 2014 में उन्हें पंजाबी साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। वह छह पुस्तकें भी लिख चुकी हैं।
कमजोरी को हथियार बनाकर सफलता की जंग लड़ें ः इंद्रजीत
कोरोना काल में इंद्रजीत कौर नंदन चुप नहीं बैठी थीं। खास करके उन्होंने दिव्यांग को मदद पहुंचाने के लिए बढ़-चढ़कर योगदान दिया है। 100 से ज्यादा परिवारों को राशन आदि पहुंचाने का काम किया। इंद्रजीत कहती हैं कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा जाएगा। उन्होंने अपनी जिंदगी में कमजोरी को ही हथियार बनाया था। उसी की बदौलत आज सफलता की सीढ़ी चढ़ने में कामयाब हुई हैं। हरेक इंसान को चाहिए कि वह कमजोरी को अपना हथियार बनाकर कामयाबी की जंग लड़े।