पुरखों का आशीर्वाद मान सहेज रहे 200 साल पुराने कुएं, भूजल संरक्षण की मिसाल बने पंजाब के गांव के लोग

गर्मी के मौसम में जब पंजाब के कई गांव पेयजल के लिए तरस रहे होते हैं तब करीब 1800 की आबादी वाले कपाहट गांव में भरपूर पानी रहता है। कारण है इस गांव में बने प्राचीन कुएं जो 200 से 250 साल पुराने बताए जाते हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 05:50 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:50 PM (IST)
पुरखों का आशीर्वाद मान सहेज रहे 200 साल पुराने कुएं, भूजल संरक्षण की मिसाल बने पंजाब के गांव के लोग
कपाहट गांव के कुएं से पानी भरती महिलाएं। जागरण

नीरज शर्मा, होशियारपुर। पितृपक्ष में हम सब पुरखों को याद करते हैं, तर्पण करते हैं। नमन करते हैं, लेकिन हम बाकी दिनों में भी पुरखों की विरासत को संजोकर उनकी यादों को जीवित रख सकते हैं। ऐसा ही कुछ कर रहे हैं पंजाब के होशियारपुर जिले के गांव कपाहट के निवासी। गर्मी के मौसम में जब पंजाब के कई गांव पेयजल के लिए तरस रहे होते हैं, तब करीब 1,800 की आबादी वाले कपाहट गांव में भरपूर पानी रहता है। कारण है इस गांव में बने प्राचीन कुएं, जो 200 से 250 साल पुराने बताए जाते हैं। यूं तो पंजाब के हर गांव में कुओं की भरमार है, लेकिन उनका संरक्षण न होने के कारण इनमें से ज्यादातर या तो मिट्टी से भर चुके हैं या सूख चुके हैं। पुरखों के प्रति सम्मान की भावना के साथ ही कपाहट गांव के निवासियों की यह पहल प्राकृतिक संपदा के संरक्षण की मिसाल भी बनी है।

लगता है जैसे बुजुर्गों के पास आ गए

कपाहट गांव के निवासी कुओं को पुरखों का आशीर्वाद मानते हैं। उन्होंने इनका महत्व समझा और संरक्षण किया। यही कारण है कि यहां बने 5 कुएं आज भी लोगों की प्यास बुझा रहे हैं। गांववासी इन्हें पुरखों की धरोहर के रूप में संभाले हुए हैं। उनका कहना है कि वह जब भी इन कुओं पर जाते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे अपने बुजुर्गों के पास आए हैं। उन्हें वह दिन याद आ जाते हैं, जब वे अपने माता-पिता या दादा-दादी के साथ उनकी अंगुली थामे यहां आते थे। उन्हें यहां आकर बहुत सुकून मिलता है। कुओं के रख-रखाव पर हर साल 50 से 60 हजार रुपये खर्च होते हैं। इसका बड़ा हिस्सा ग्राम पंचायत वहन करती है। बाकी लोग भी यथासंभव योगदान करते हैं।

होशियारपुर के कपाहट गांव में सहेजा गया पुराना कुआं।

दादा-परदादा के साथ आते थे कुएं पर

गांव के 75 वर्षीय यशपाल सिंह कहते हैं, कुएं असल में कितने पुराने हैं यह कोई नहीं जानता। हां, इतना पता है कि हमारे दादा-परदादा भी यहां आते रहे हैं। मैंने अपने दादा से सुना था कि वे अपने पिता यानी मेरे परदादा के साथ यहां आया करते थे। हम उन्हीं का आशीर्वाद लेने यहां चले आते हैं। अपनी अगली पीढ़ी को भी इनका महत्व समझा रहे हैं। यशपाल सिंह ने बताया कि भले ही अब घर-घर तक पाइप से पानी पहुंच रहा है, लेकिन गांव के लोग अब भी कुओं का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं। वह कहते हैं, जब तक दम रहेगा, इन्हें संभाले रखेंगे।

पांचों कुओं में भरपूर पानी:

बुजुर्ग 75 वर्षीय महिंदर सिंह ने बताया कि गांव के पांचों कुओं में भरपूर पानी है। समय-समय पर इनकी मरम्मत करवाई जाती है ताकि इन्हेें सुरक्षित रखा जा सके। हमें कुदरत ने इतना अच्छा स्रोत दिया है। हम इसे बर्बाद नहीं होने देंगे। 56 वर्षीय तरसेम सिंह और 61 वर्षीय महेश कुमार ने बताया कि वह बचपन से इन कुओं को ऐसा ही देख रहे हैं। इनके उचित रखरखाव से ही यह आज तक इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं। हमारे पुरखों की गांव पर बड़ी कृपा है।

कुओं के बारे में जानकारी देते गांव के बुजुर्ग महिंदर सिंह। -जागरण

कभी नहीं आई पानी की कमी

बुजुर्ग यशपाल सिंह कहते हैं कि मैंने जबसे होश संभाला है, तब से इन कुओं में पानी की कमी नहीं देखी। लोग हमेशा ऐसे ही इनसे पानी निकालते रहे हैं। हमने कभी किल्लत महसूस नहीं की। प्रचंड गर्मी में भी यह कुएं कभी नहीं सूखे। आसपास के गांवों में लोगों को टैंकर से पानी की सप्लाई करनी पड़ती है, लेकिन हमारे गांव में कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ी। गांव की महिलाएं सुनीता देवी, ज्योति, मीना कुमारी, राज रानी और पार्वती देवी कहती हैं कि ये कुएं हमारे लिए वरदान हैं। पाइप से पानी की सप्लाई बहुत कम समय के लिए होती है। सप्लाई बंद होने पर हमें इन्हीं का सहारा होता। हम रोजमर्रा के काम के अलावा पीने के लिए भी इन्हीं कुओं का पानी इस्तेमाल करते हैं।

ऐसे करते हैं रख-रखाव

लोगों ने बताया कि कुएं की मरम्मत आदि के लिए पंचायत में अलग से बजट रखा जाता है। लोग अपनी जेब से भी खर्च करते हैं। समय-समय पर कुएं के पानी में दवा डाली जाती है। गांव के युवा मिलकर कुओं के अंदर सफाई करते हैं। पहले कुएं खुले थे, अब उन्हें कवर कर दिया गया है। इनके ऊपरी हिस्से को पक्का कर जाली लगा दी गई है। ऊपर टीन से या पक्की छत बना दी है। इनके आसपास भी सफाई की जाती है। साथ ही, इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि मरम्मत के दौरान पानी के प्राकृतिक स्रोत से कोई छेड़छाड़ न हो। कुएं का जलस्तर बना रहे, इसके लिए लोगों ने इनके आसपास पौधे लगाए हैं, जिससे यहां की जमीन में हमेशा नमी बनी रहती है और कुएं में पानी का स्तर कभी कम नहीं होता।

ग्रामीणों का मिला सहयोग

गांव की सरपंच मीना कुमारी ने बताया कि गांव के लोगों ने पानी का महत्व समझा, इसीलिए आज गांव में पानी की कमी नहीं है। ग्रामीणों के सहयोग से हम जल संरक्षण में कामयाब रहे हैं। सब लोगों का फर्ज बनता है कि वे प्राकृतिक संपदा को बचाएं। ये कुएं हमारी लाइफलाइन हैं। हम इन्हेंं संभाल कर रखेंगे।

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