अमृतसर में मोहमाया के जाल में स्वास्थ्य विभाग का एक अधिकारी, लोगों से कर रहा वसूली

अमृतसर में स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी इन दिनों खूब मेहनत कर रहे हैं। मेहनत से तात्पर्य पसीना बहाने से नहीं अपितु यह अधिकारी मोहमाया की पूर्ति के लिए कई किलोमीटर का करते हैं। लोगों तक पहुंचकर अपना रुतबा बताते हैं क्या कर सकते हैं।

By Vinay kumarEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 10:41 AM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 10:41 AM (IST)
अमृतसर में मोहमाया के जाल में स्वास्थ्य विभाग का एक अधिकारी, लोगों से कर रहा वसूली
अमृतसर में लोगों से वसूली कर रहा स्वास्थ्य विभाग का एक अधिकारी।

अमृतसर [नितिन धीमान ]। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी इन दिनों खूब मेहनत कर रहे हैं। मेहनत से तात्पर्य पसीना बहाने से नहीं, अपितु यह अधिकारी मोहमाया की पूर्ति के लिए कई किलोमीटर का करते हैं। लोगों तक पहुंचकर अपना रुतबा बताते हैं, क्या कर सकते हैं, कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, बताते हैं। मकसद सिर्फ वसूली होता है। इन अधिकारी के संदर्भ में पूर्व में तो यह चर्चा आम थी कि किसी से एक टका नहीं लेते, पर अब स्कूटर पर सवार होकर निकलते हैं और शाम को कुछ न कुछ लेकर ही लौटते हैं। हालांकि इनसे पूर्व जो अधिकारी कुर्सी पर रहे, उन्होंने कभी पैसों की मांग नहीं की। अरे, यह मत समझिए कि पैसे लिए नहीं। अपनी जुबान से नहीं मांगे, अपने कर्मचारियों को भेजकर वसूली करते रहे। स्कूटर वाले अधिकारी ने तो इस कुर्सी का रेट ही गिरा दिया है। पांच से दस हजार रुपये में सौदेबाजी कर डालते हैं।

दाढ़ी नालों मुच्छां वड्डीयां...
एक शख्स बीमार पड़ गया। जेब में पैसे नहीं थे। सोचा सरकारी अस्पताल जाकर दस रुपये की पर्ची कटवा इलाज करवाऊंगा। खस्ताहाल स्कूटर उठाकर गुरु नानक देव अस्पताल पहुंचा। प्रवेश किया ही था कि पार्किंग स्टैंड पर रस्सी का अवरोध खड़ा कर दिया गया। पार्किंग के कारिंदे ने बीस रुपये मांगे। चालक ने स्कूटर बंद किया। फिर कारिंदे से बोला, बीस रुपये किस गल्ल दे? कारिंदे ने कहा, स्कूटर पार्किंग के। चालक बोला, मेरा स्कूटर नहीं है। किसी का मांगकर लाया हूंं और बीमार हूं। जेब में पैसे कम हैं, मुझे डाक्टर के पास जाने दो। कारिंदा नहीं माना और स्कूटर के सामने खड़ा हो गया। अंतत: फटे हुए पर्स में से बीस रुपये निकाले और कारिदें को पकड़ाकर आगे बढ़ा। अस्पताल में दस रुपये की पर्ची कटवाई और डाक्टर को दिखाकर सरकारी डिस्पेंसरी से मुफ्त दवा लेकर घर लौटा। यह तो वही बात हुई कि दाढ़ी नालो मुच्छां वड्डियां...।

टीका लगवा लेते तो अच्छा था
स्वास्थ्य विभाग में कोरोना वायरस घुस गया। जिला स्वास्थ्य अधिकारी, उनकी पत्नी से लेकर फूड इंस्पेक्टर तक को कोरोना ने गिरफ्त में लिया। दोनों अधिकारियों ने कोविशील्ड का टीका नहीं लगवाया था। सरकार की ओर से बार-बार अपील की जाती रही है कि सभी स्वास्थ्य कर्मचारी टीका लगवा लें, पर इनके कान तक संभवत: नहीं पहुंची। पाजिटिव आने के बाद फूड इंस्पेक्टर पश्चाताप कर रहे हैं कि टीका लगवा लेते तो ठीक थे। वैसे कोरोना पाजिटिव होने के बाद ज्यादातर स्वास्थ्य कर्मियों को कोविशील्ड टीका याद आ रहा है। दोनों अधिकारियों के संक्रमण ग्रस्त होने के बाद सिविल सर्जन कार्यालय का स्टाफ परेशान हो गया है। पिछले दिनों इन अधिकारियों के संपर्क में कार्यालय का तकरीबन सारा स्टाफ आ चुका है। कुछ लापरवाह कर्मचारी अब वैक्सीनेशन लगवाने को तैयार हो गए हैं, क्योंकि वे संक्रमित अधिकारियों के संपर्क में आए थे। अब उनको अपनी सेहत की चिंता सताने लगी है।

...लगा डीसी साहब आए हैं
डिप्टी कमिश्नर गुरप्रीत सिंह खैहरा बीते दिनों शहर की प्रमुख सामाजिक संस्थाओं के साथ बैठक कर रहे थे। इसी दौरान किसान संगठन जिला परिषद कार्यालय के बाहर पहुंचे और डीसी के साथ मिलने के लिए वक्त मांगा। चूंकि उस समय डीसी मीटिंग में थे, इसलिए अपने कर्मचारी से कहा कि वह बाहर जाकर किसानों से कहे कि कुछ देर में मीटिंग खत्म होते ही मिलेंगे। इस कर्मचारी की कद-काठी बिल्कुल डीसी गुरप्रीत सिंह खैहरा जैसी है। चेहरे पर मास्क लगा होने के कारण यह गलतफहमी हो जाती है कि डीसी साहब आ गए। जैसे ही कर्मचारी किसानों के बीच पहुंचा, किसान उठ खड़े हुए। बोले, डीसी साहब आ गए। इन्हें मांगपत्र दो। इससे पहले कि किसान कर्मचारी तक आते, वह खुद बोल पड़ा- मैं डिप्टी कमिश्नर नहीं हूं, उनके अंतर्गत काम करने वाला कर्मचारी हूं। डीसी साहब चंद मिनटों में आ रहे हैं। कर्मचारी की आवाज सुनकर किसान खिलखिला दिए।

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