चिट्टी बेई में काला पानी : 20 साल से रोज 20 लाख लीटर पानी सतलुज को कर रहा दूषित, एनजीटी के डंडे के बाद अब जागा निगम
20 साल से चिट्टी बेई व सतलुज के पानी को दूषित कर रहा नगर निगम अब एनजीटी के डंडे के बाद जागा है।
जगजीत सिंह सुशांत, जालंधर
20 साल से चिट्टी बेई व सतलुज के पानी को दूषित कर रहा नगर निगम अब एनजीटी के डंडे के बाद जागा है। सतलुज दरिया में गिर रहे जमशेर डेयरी कांप्लेक्स के दूषित पानी को साफ करने के लिए 13.92 करोड़ से एफुलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाया जाएगा। इसकी क्षमता 2.25 एलएलडी यानी 22.50 लाख लीटर रोजाना गंदा पानी साफ करने की होगी। अभी रोज 20 लाख लीटर गोबरयुक्त पानी दरिया में ही गिर रहा है। यह दूषित पानी करीब बीस साल से दरिया में गिर रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की आदेश के बाद निगम ने प्लांट लगाने की प्रक्रिया शुरू तो कर दी लेकिन डेढ़ साल और रोजाना लाखों लीटर पानी इसी तरह सतलुज में बहता रहेगा और दरिया को दूषित करता रहेगा। निगम ने ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए कंपनियों से अभी प्रपोजल मांगे हैं। ईटीपी लगाने का काम 31 मार्च 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है लेकिन यह दिसंबर 2022 तक ही लग पाएगा। निगम ने जो टेंडर देना है उसे अलाट करने में ही करीब दो महीने लग जाएंगे। यह टेंडर 19 अगस्त को ओपन होगा और उसके बाद जो कंपनियों आवेदन करेंगी उनकी क्षमता की जांच में ही एक से डेढ़ महीना लग जाएगा।
उधर नगर निगम के एसई सतिदर कुमार का कहना है कि डेयरी कांप्लेक्स में ईटीपी प्लांट को जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा। कांप्लेक्स के सीवरेज सिस्टम को भी रिपेयर किया जाएगा। गोबर गैस प्लांट लगने के बाद गोबर भी कंपनी को सप्लाई किया जाना है जिससे सिस्टम पूरी तरह सुधर जाएगा।
इसलिए बोझ बनता जा रहा कांप्लेक्स
डेयरी कांप्लेक्स के सीवरेज सिस्टम पर गोबर का बोझ है और पूरा सिस्टम बिगड़ा हुआ है। डेयरी कांप्लेक्स में 17 हजार से ज्यादा पशु हैं और इनका गोबर व मल रोज सतलुज में बह रहा है। दूषित पानी का यह है रूट
नवांशहर से आती चिट्टी बेई फगवाड़ा तक 'अमृत' नूरमहल तक जाते-जाते बन जाती है 'जहर'
नवांशहर बंगा से आने वाली चिट्टी बेई फगवाड़ा तक तो साफ रहती है लेकिन कैंट हलके में जमशेर डेयरी कांप्लेक्स के पास दूषित पानी गढ़ा-जमशेर ड्रेन से होकर चिट्टी बेंई से होता हुआ सतलुज दरिया में गिरता है। ड्रेन डेयरी कांप्लेक्स के बिल्कुल साथ है। यह पानी बिना साफ किए ही ड्रेन में जा रहा है। यह ड्रेन आगे नकोदर नूरमहल के रास्ते चिट्टी बेईं में मिलती है और चिट्टी बेई सतलुज ददिया से मिलती है। ईटीपी लगाने पर यह पानी साफ होकर ड्रेन में छोड़ा जाएगा।
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गोबर गैस प्लांट नहीं लगने से पैदा हुई मुश्किल
जमशेर डेयरी कांप्लेक्स में शहर से डेयरियों को करीब 20 साल पहले शिफ्ट किया गया था। तब तय किया गया था कि यहां पर गोबर गैस प्लांट लगाया जाएगा। लेकिन आज तक प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया। अगर गोबर गैस प्लांट लग जाता तो डेयरी मालिकों को गोबर सीवरेज लाइन में नहीं फेंकना पड़ता क्योंकि गोबर गैस प्लांट को गोबर बेचकर कमाई हो जाती। अब 20 साल से गोबर सीवरेज लाइन में जा रहा है और आगे जाकर यह सतलुज दरिया में मिल रहा है। अब एनजीटी ने आदेश दे दिए हैं कि गोबर गैस प्लांट और एफुलेंट ट्रीटमेंट प्लांट पर एक साथ काम करना होगा। गोबर गैस प्लांट के लिए भी निगम ने ठेकेदार को तैयार कर लिया है। प्रोजेक्ट के लिए 2.5 एकड़ जमीन ट्रांसफर कर दी गई है। इस पर करीब 20 करोड़ रुपये की लागत आएगी और पूरा खर्च कंपनी करेगी। बायो गैस प्लांट के लिए जर्मन तकनीक इस्तेमाल से गैस तैयार होगी।
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गांवों का भूजल भी हुआ दूषित, लोग बीमार भी हो रहे
जिस स्पीड से जमशेर डेयरी कंप्लेक्स के सीवरेज का पानी सतलुज दरिया में जा रहा है उस हिसाब से दिसंबर 2022 तक करीब 100 करोड़ लीटर पानी दरिया में गिरेगा। इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं है। दरिया और ड्रेन में गंदे पानी की निकासी के कारण इनके किनारे बसे गांवों में भूजल दूषित हो गया है। लोगों को करीब 400 फुट गहरे से पानी निकालकर पीना पड़ता है। ऊपरी लेयर का पानी दूषित होने से लोग बीमार हो रहे हैं।