International disability day 2021: डा. मोना ने आंखों की रोशनी गंवाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, तैयार कर रहीं ला स्टूडेंट्स

जीएनडीयू रीजनल कैंपस में ला पढ़ा रही डा. मोना गोयल की बीडीएस करते आंखों की रोशनी चली गई थी। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ला में पीएचडी की। उन्होंने सैकड़ों दिव्यांग व्यक्तियों को जीने की राह दिखाई है।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 05:54 PM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 05:54 PM (IST)
International disability day 2021: डा. मोना ने आंखों की रोशनी गंवाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, तैयार कर रहीं ला स्टूडेंट्स
जीएनडीयू रीजनल कैंपस में लेक्चरर डा. मोना गोयल।

जगदीश कुमार, जालंधर। दिव्यांग कभी किसी से कमजोर नहीं होता। वे हौसले की उड़ान भर कर जिंदगी की ऊंचाईयों को छूना जानते हैं। इसकी जीती जागती मिसाल हैं शहर की डा. मोना गोयल। वह दिव्यांग हैं। जवानी में आंखों की रोशनी गंवाने के बाद भी वह कानून के छात्रों की नई पौध तैयार कर रही हैं। यही कारण है कि विश्व दिव्यांगता दिवस पर केंद्र सरकार ने उन्हें नेशनल और राज्य सरकार ने स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया है। लद्देवाली स्थित जीएनडीयू रीजनल कैंपस में ला के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाली डा. मोना का दिव्यांगजन सशक्तीकरण के लिए नेशनल अवार्ड देने के लिए समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चयन किया है।

दिल्ली के विज्ञान भवन में उपराष्ट्रपति आर वेंकैया नायडू से 72 दिव्यांगों को नेशनल अवार्ड मिल चुका है। उन्हें राज्य सकार की ओर से स्टेट अवार्ड भी दिया जा चुका है। डा. मोना गोयल कहती हैं कि उन्होंने बीडीएस (दंत चिकित्सक की पढ़ाई) की थी। बीडीएस के फाइनल में उनकी आंखों की रोशनी जाने लगी। उन्होंने यूके में अपने चाचा के पास जाकर इलाज करवाया लेकिन परिणाम ठीक नहीं रहा। 

दवा खाने से चली गई थी आंखों की रोशनी

मलेरिया होने पर दवा खाने से आंखों की रोशनी चली गई। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ला की शिक्षा पूरी कर पीएचडी की। पीएचडी में उन्होंने दिव्यांगों की समाजिक सुरक्षा पर काम किया था। उन्होंने दिव्यांगता की वजह से जिंदगी की लड़ाई हार चुके सैकड़ों लोगों को जीने की राह दिखाई। कालेज में कुछ साल पहले उन्होंने दिव्यांग छात्र को हौसला दिया। आज वह एलएलएम करने के बाद अव्वल दर्जे की नौकरी पाने की मंजिल पर पहुंच चुका हैं।

कालेज के कार्यों में लेती हैं बढ़-चढ़कर हिस्सा

डा. मोना ने कालेज में हर काम करने में कामयाबी हासिल की है। वह परीक्षाओं में ड्यूटी भी देती हैं और कक्षा में विद्यार्थियों को शिक्षा भी। उनकी कक्षा में किसी भी विद्यार्थी में अनुशासनहीनता फैलाने की हिम्मत नहीं होती है। वह बच्चे की आवाज से ही उन्हें पहचान लेती हैं और कड़ा एक्शन लेती हैं। इसके अलावा बच्चों को ब्लैक बोर्ड पर लिखकर समझाती हैं। दिव्यांग दिवस पर डा. मोना का कहना है कि वह दिव्यांगों के हितों की रक्षा के लिए एक एनजीओ स्थापित करेंगी और उसे नेशनल लेवल तक लेकर जाएंगी।

chat bot
आपका साथी