आबोहवा के साथ आर्थिकी में भी सुधार, अगर आप बनाएं पराली से खाद

डिप्टी कमिश्नर व¨रदर कुमार शर्मा ने गांव लालियां कलां में लगभग ढाई घंटे तक किसानों को पराली प्रबंधन के टिप्स दिए। उन्होंने किसानों को बताया कि पराली को आग न लगाकर, न सिर्फ पंजाब की आबोहवा को प्रदूषण मुक्त बना सकते हैं, बल्कि इसका खाद के रूप में प्रयोग कर उपज बढ़ाने के साथ ही आर्थिकी भी मजबूत भी सकते हैं। डीसी ने खेतों में हैप्पीसीडर व पराली को खाद में बदलने वाली अन्य मशीनरी को अपनी मौजूदगी में चलाकर प्रदर्शन भी किया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Oct 2018 01:43 AM (IST) Updated:Wed, 24 Oct 2018 01:43 AM (IST)
आबोहवा के साथ आर्थिकी में भी सुधार, अगर आप बनाएं पराली से खाद
आबोहवा के साथ आर्थिकी में भी सुधार, अगर आप बनाएं पराली से खाद

जागरण संवाददाता, जालंधर : डिप्टी कमिश्नर व¨रदर कुमार शर्मा ने गांव लालियां कलां में लगभग ढाई घंटे तक किसानों को पराली प्रबंधन के टिप्स दिए। उन्होंने किसानों को बताया कि पराली को आग न लगाकर, न सिर्फ पंजाब की आबोहवा को प्रदूषण मुक्त बना सकते हैं, बल्कि इसका खाद के रूप में प्रयोग कर उपज बढ़ाने के साथ ही आर्थिकी भी मजबूत भी सकते हैं। डीसी ने खेतों में हैप्पीसीडर व पराली को खाद में बदलने वाली अन्य मशीनरी को अपनी मौजूदगी में चलाकर प्रदर्शन भी किया। डीसी ने किसानों को इन मशीनरी के प्रयोग से होने वाले किसानों के निजी व वातावरण के नफा-नुकसान का हर छोटे से बड़े सवालों का जवाब देकर संतुष्ट किया।

शर्मा ने बताया कि पूरे जिले में धान की पराली में आग लगाने के मामलों में काफी कमी आई है, लेकिन इस कमी तक सीमित नहीं रहना है। इसे शून्य के आंकड़े तक लेकर जाना है। मौके पर एसडीएम परमवीर ¨सह, चीफ एग्रीकल्चर अधिकारी डॉ. अर¨वदर ¨सह चीना, एग्रीकल्चर ऑफिसर डॉ. नरेश गुलाटी मौजूद थे।

एक-एक किसान की शंका का किया समाधान

डिप्टी कमिश्नर व एसडीएम-2 परमवीर ¨सह लगभग ढाई घंटे तक एक-एक किसान के सवालों का जवाब देते रहे। वे किसानों को प्रोत्साहित करते रहे कि अब भी अगर किसी के मन में कोई शंका है तो वे पूछ सकते हैं, लेकिन किसी प्रकार की दुविधा नहीं होनी चाहिए, जो लोग ये कह रहे हैं कि पराली जलाने के बिना कोई चारा नहीं है, उन्हें सही मायने में तकनीक की जानकारी नहीं है।

पराली न जलाने वालों के उदाहरण देकर किया प्रेरित

डीसी ने कहा, पराली को खाद में बदलने वाली मशीनरी से किसानों के साथ वातावरण को भी लाभ होता है। उन्होंने जिले के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा किसानों के उदाहरण भी दिए जो पिछले 5-10 साल से पराली को आग नहीं लगा रहे हैं। डीसी ने कहा कि अभी भी अगर किसी के मन में कोई शंका है तो वे उन किसानों से खुद जाकर पता कर सकते हैं। जब से उन्होंने पराली को आग लगाना बंद किया है, सांस की बीमारी भी उनकी खत्म हो गई है, मुनाफा भी पहले से ज्यादा कमा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन पराली को आग न लगाने वाले किसानों को हर संभव मदद के लिए तैयार है।

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