जालंधर के विधायकों के लिए चेतावनी है कौंसिल चुनाव, वापसी के लिए करनी होगी मेहनत

एक साल बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं और सभी राजनीतिक दल चाहेंगे कि अपनी मौजूदा स्थिति में सुधार करें। चुनाव में जीत हासिल करने वाली पार्टी कांग्रेस को भी सोचना होगा कि किस तरह से वोट बैंक को बचाकर रखना है।

By Edited By: Publish:Mon, 22 Feb 2021 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 10:08 AM (IST)
जालंधर के विधायकों के लिए चेतावनी है कौंसिल चुनाव, वापसी के लिए करनी होगी मेहनत
निकाय चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक दलों के लिए भविष्य की तस्वीर पेश की है।

जालंधर, जेएनएन। निकाय चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक दलों के लिए भविष्य की तस्वीर पेश की है। एक साल बाद विधानसभा चुनाव हैं और सभी राजनीतिक दल चाहेंगे कि अपनी मौजूदा स्थिति में सुधार करें। चुनाव में जीत हासिल करने वाली पार्टी कांग्रेस को भी सोचना होगा कि किस तरह से वोट बैंक को बचाकर रखना है। कुछ हलकों में तो कांग्रेस पर आजाद प्रत्याशी भारी पड़े हैं। इसका साफ अर्थ है कि वोटर नए विकल्प की तलाश में हैं। मौजूदा विधायक और पिछला विधानसभा चुनाव हारने वालों के लिए यह जरूरी है कि वह इन चुनावी नतीजों से सबक लें।

स्थानीय निकाय चुनाव में जालंधर के 5 विधानसभा हलके कवर हुए हैं। एक साल बाद विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में दोनों ही राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम आदमी पार्टी, बसपा और भाजपा के लिए यह चुनाव नई रणनीति तय करने का आधार बनेंगे।

शाहकोट में अकाली-आप की राह कठिन

शाहकोट विधानसभा हलका के अधीन आते लोहियां खास और महितपुर के नतीजे कांग्रेस के लिए शुभ संकेत लेकिन शिअद व आप के लिए करारा झटका देने वाले हैं। कभी अकाली दल का गढ़ रहे शाहकोट में दोबारा जीत के लिए अकाली दल को एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा। आम आदमी पार्टी ने 2012 के चुनाव में बड़ी गिनती में वोट हासिल किए थे लेकिन अब यहा पर इनका आधार खिसक गया है। पंजाब में वापसी का दावा कर रही आप को भी कड़ी मेहनत करनी होगी। भाजपा और बसपा के लिए यहा कुछ ज्यादा करने को नहीं है। विधायक लाडी शेरोवालिया के नेतृत्व में काग्रेस ने जिस तरह से विधानसभा उपचुनाव जीता है और अब निकाय चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की है उससे अगला चुनाव काग्रेस के लिए आसान रहेगा।

विधायक वडाला को हैट्रिक के लिए सहारा तलाशना होगा

नकोदर विधानसभा सीट के अधीन आते नकोदर व नूरमहल के चुनावी नतीजे सभी सियासी दलों के लिए चेतावनी हैं। यहा मौजूदा विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला अकाली दल से हैं। अकाली दल को यहा पर भाजपा के बिना कम सीटें मिली हैं लेकिन बसपा से गठजोड़ करके नूरमहल में मजबूती मिली है। ऐसे में अकाली दल के लिए इसी रणनीति पर काम करने की जरूरत रहेगी। अकाली दल को अगर यहां अगला चुनाव जीतना है तो एक साथी की तलाश रहेगी। भाजपा की कमी को बसपा पूरा कर सकती है। कांग्रेस ने नकोदर में जीत तो हासिल कर ली है लेकिन पार्टी की फूट अगले विधानसभा चुनाव में मुसीबत पैदा कर सकती है। आम आदमी पार्टी और भाजपा यहां पर शून्य पर रही है लेकिन बसपा ने दम दिखाया है और यह बसपा के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।

अकाली दल के लिए फिल्लौर बचाना चुनौती

फिल्लौर नगर कौंसिल चुनाव अकाली दल के लिए बड़ा नुकसानदायक साबित हुआ है। यहां पर काग्रेस को बड़ी सफलता मिली है और पूर्ण बहुमत हासिल हुआ है। काग्रेस के लिए अगले एक साल तक इस मोमेंटम को बनाकर रखना होगा क्योंकि विधानसभा चुनाव में काग्रेस लगातार खराब प्रदर्शन करती आ रही है। अकाली दल को यहां पर वापसी का रास्ता तलाशना होगा। मौजूदा विधायक बलदेव सिंह खैहरा के नेतृत्व में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। बहुजन समाज पार्टी को एक सीट मिली है। यहा बसपा का बड़ा आधार है और अगले विधानसभा चुनाव में बसपा एक बार फिर यहां सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती पेश कर सकती है। भाजपा यहा पर अपना आधार मजबूत करना चाहेगी। भाजपा का फोकस दलित राजनीति पर है और भाजपा अगले चुनाव तक यहां पर दूसरे दलों में तोड़फोड़ कर सकती है।

आदमपुर में कोई मजबूत नहीं

आदमपुर में शिरोमणि अकाली दल को झटका लगा है। हालांकि कांग्रेसी अपने चुनाव चिन्ह पर कुछ नहीं कर पाई है लेकिन आजाद उम्मीदवारों को समर्थन देकर अकाली दल के लिए मुश्किल जरूर खड़ी की है। विधायक पवन टीनू पिछले दो चुनाव जीते हैं लेकिन अचानक शिरोमणि अकाली दल से जुड़ा वोट बैंक काग्रेस और बसपा के पक्ष में क्यों चला गया, यह बड़ा सवाल है। कांग्रेस के लिए भी स्थिति यहा पर इतनी अच्छी नहीं है। कांग्रेस अपने चुनाव चिन्ह पर प्रत्याशी नहीं उतार पाई। काग्रेस के पास आदमपुर में कोई मजबूत चेहरा भी नहीं है और हर बार उम्मीदवार बदलना पड़ता है। भाजपा के पास अलावलपुर, आदमपुर और भोगपुर में वोट बैंक है और एक बड़े चेहरे की जरूरत रहेगी। बसपा के पास एक फिक्स्ड वोट बैंक है और अगर बसपा कोशिश करती है तो यहां पर अगले विधानसभा चुनाव में टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगी।

कमजोर हुआ चौधरी परिवार का गढ़ करतारपुर

कभी चौधरी परिवार का गढ़ मानी जाती रही करतारपुर सीट में अब कांग्रेस की पहले जैसी स्थिति नहीं है। कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय चौधरी जगजीत सिंह भी लगातार यहा दो चुनाव हारे थे लेकिन पिछला चुनाव उनके बेटे चौधरी सुरेंद्र सिंह ने जीता था। निकाय चुनाव में काग्रेस को यहां पर अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में अगले चुनावों से पहले कांग्रेस को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जोर लगाना ही होगा। अकाली दल को भी यहां पर उम्मीदवार तय करने में मुश्किल आएगी। यहां पर टिकट के कई दावेदार हैं। पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी से लड़कर करीब 27 हजार वोट हासिल करने वाले चंदन ग्रेवाल इस समय अकाली दल की टिकट के प्रमुख दावेदार हैं। बसपा भी इस आरक्षित सीट पर दम दिखा सकती है। बसपा के युवा नेता बलविंदर कुमार ने इस सीट पर फोकस किया हुआ है और वह लगातार पार्टी की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए इस सीट पर तभी फायदा हो सकता है जब कोई बड़ा चेहरा मिल जाए।

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