सिद्धू के सियासी पत्ते खुलने से पहले ही कैप्टन ने लगा दी सीप, अब 'ट्रंप कार्ड' का इंतजार
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू का आपस में फंसा पेंच सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है। अभी इंतजार था कि सिद्धू अपनी अगली सियासी पारी के पत्ते कब खोलेंगे लेकिन उससे पहले ही कैप्टन ने उनको सीप लगा दी।
अमृतसर [विपिन कुमार राणा]। पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के सितारे यूं तो पिछले पौने दो साल से ही गर्दिश में चल रहे हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू का आपस में फंसा पेंच सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है। पिछले कुछ समय से दोबारा सिद्धू सक्रिय तो हुए, पर सिद्धूवाणी के तीर कांग्रेस के खिलाफ ही चले। अभी इंतजार था कि सिद्धू अपनी अगली सियासी पारी के पत्ते कब खोलेंगे, लेकिन उससे पहले ही कैप्टन ने उनको सीप लगा दी। कैप्टन ने सिद्धू के सारे पत्ते मीडिया में खोल दिए। सिद्धू की मूवमेंट से लेकर मंशा तक कैप्टन ने उजागर कर दी। कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से सिद्धू को लगाई गई सीप के बाद अब राजनीतिक गलियारे में चर्चा छिड़ी हुई है कि सिद्धू के पत्ते तो खुल गए, अब कौन सा ट्रंप कार्ड वह खेलेंगे, यह देखना होगा। अब तो ट्रंप कार्ड ही उनकी सियासी नैया पार लगाएगा।
इस स्वागत के क्या मायने?
सियासत में समीकरणों के बड़े मायने हैं। बीती 26 जनवरी को लाल किले पर प्रकरण के आरोपित पंजाबी फिल्म अभिनेता दीप सिद्धू पिछले दिनों श्री दरबार साहिब में नतमस्तक होने पहुंचे। कुछ किसान नेता तो उनके साथ थे ही, पर अकाली दल शहरी के प्रधान की मौजूदगी से कई के माथे ठनक गए। दीप सिद्धू ने शिरोमणि अकाली दल के सुप्रीमो सुखबीर सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल पर कड़ी टिप्पणी की थी। ऐसे में अकाली दल के ही प्रधान की ओर से उनका स्वागत करने के मायने क्या हैं, इसको लेकर भी शहर के सियासी हलके खासे गरम रहे। वह इसके मायने ढूंढने में लगे हुए हैं कि ऐसा करके प्रधान ने क्या दिखाने का प्रयास किया है। अब इसके सियासी परिणाम क्या निकलते हैं यह तो समय आने पर ही पता चलेगा, पर सियासी गलियारों में इसकी खूब चटकारों के साथ चर्चा हो रही है।
कौन जीता, कौन हारा
पश्चिम बंगाल का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था। दो मई को परिणाम का बेसब्री से इंतजार हो रहा था। भाजपाई वहां सरकार बनने को लेकर खासे आश्वास्त थे, पर जैसे ही चुनाव परिणाम आने शुरू हुए तो इंटरनेट मीडिया पर टीका-टिप्पणी शुरू हो गई। कांग्रेसियों और भाजपाइयों में खूब डिबेट चलती रही। भाजपा और कांग्रेस नेताओं में इसको लेकर काफी बहस हुई। कांग्रेसियों ने प्रधानमंत्री की रैलियों के बाद चुनाव परिणाम वाले दिन भाजपाइयों के जुलूस के जुमले पर कटाक्ष किए तो उस पर पलटवार करते हुए भाजपाइयों ने भी दो से 76 सीटें आने को ही अपनी जीत करार दिया। इतना ही नहीं ममता बनर्जी की नंदीग्राम सीट पर हुई हार को तो उन्होंने ममता की बंगाल में ही हार करार दे दिया। कटाक्षबाजी में भाजपाइयों ने सीधे सवाल कांग्रेसियों से किए कि आपका तो सब जगह सूपड़ा साफ हो गया है, अब बताए हारा कौन।
बता देंगे वर्कर की ताकत
विधानसभा हलका पूर्वी से विधायक नवजोत सिंह सिद्धू के बार-बार शाही शहर पटियाला की सियासी पिच पर बैटिंग की चल रही कवायद ने सियासी माहौल को गर्मा दिया है। खासकर सिद्धू के विधानसभा हलका पूर्वी पर नजरें टिकाए बैठे कांग्रेसियों को तो इसका बेसब्री से इंतजार है कि कब सिद्धू हलका छोड़ें और वे सियासी पिच सजा सकें। कई नेता यहां से विधानसभा चुनाव लडऩे के तो चाहवान हैं, पर उनके आड़े उनके अपने ही कुनबे के सदस्य आ रहे हैं। सत्ता की मद में वह अपने कुनबे से दूर हुए हैं और यह शहर में चर्चा का विषय भी बना हुआ है कि सिद्धू तो चले जाएंगे, पर बिना कुनबे के नेता चुनाव कैसे लड़ेंगे। कुछ एक कांग्रेसी ग्रुप तो इस इंतजार में हैं कि सत्ता में अपनों से दूर होने वाले नेता एक बार चुनाव मैदान में आएं तो उन्हें बता देंगे वर्कर की ताकत क्या होती है।