जालंधर में कोरोना की दहशत भी नहीं तोड़ पाई खूनदानियों का हौसला, तीन शख्सियतों ने रक्तदान करने में बनाए नए रिकार्ड

जालंधर में कोरोना का खौफ भी रक्तदानियों का हौसला नहीं तोड़ पाया। थैलेसिमिया के शिकार बच्चों व अन्य घातक बीमारियों के मरीजों के लिए खून की जरूरत को पूरा करने के लिए कोरोना काल में जालंधर के रक्तदानियों ने अहम भूमिका अदा की।

By Vinay KumarEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 10:24 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 10:24 AM (IST)
जालंधर में कोरोना की दहशत भी नहीं तोड़ पाई खूनदानियों का हौसला, तीन शख्सियतों ने रक्तदान करने में बनाए नए रिकार्ड
जालंधर में विश्व रक्तदान दिवस पर लगाया गया रक्तदान शिविर।

जालंधर [जगदीश कुमार]। कोरोना का खौफ भी रक्तदानियों का हौसला नहीं तोड़ पाया। थैलेसिमिया के शिकार बच्चों व अन्य घातक बीमारियों के मरीजों के लिए खून की जरूरत को पूरा करने के लिए कोरोना काल में जालंधर के रक्तदानियों ने अहम भूमिका अदा की। सरकारी व निजी अस्पतालों में जरूरत पड़ने पर वे बिना डर के महादान करने के लिए तत्पर रहे। विश्व रक्तदाता दिवस पर जानते हैं उन तीन शख्सियतों ने जो रक्तदान करने में नए रिकार्ड कायम किए।

नरेश बेरी : 158 बार

23 साल का था जब पहली बार रक्त दिया, 65 साल की उम्र में भी सफर जारी

सहदेव मार्केट में रेलवे टिकट बुकिंग का काम करने वाले नरेश कुमार बेरी का 65 साल की उम्र में भी रक्तदान करने का जुनून बरकरार है। बेरी 23 साल की आयु में 1979 में पहली बार पड़ोसी रवि वासुदेव के नाक से खून बहता देख घबराहट में चक्कर खाकर गिर गए थे। इसके बाद खुद का खूनदान कर लोगों की जान बचाने की ठानी। अब तक 158 बार खूनदान कर चुके है। पिछले महीने गुडग़ांव में अपनी बेटी के पास गए। वहां किसी को ब्लड की जरूरत पड़ी तो कोरोना के डर को दरकिनार कर अस्पताल में खूनदान करने के लिए पहुंच गए। उनके साथ उनके परिवार के सदस्यों ने भी खूनदान करना शुरू कर दिया। स्वयंसेवी संस्था पहल के प्रधान प्रो. लखबीर सिंह ने रक्तदान करने के इस सफर में उनका मनोबल बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की।

जतिंदर सोनी : 139 बार

रेडक्रास के साथ मिलकर लगाए कैंप

ज्यूडिशियल विभाग सेशन कोर्ट में बतौर रीडर तैनात जङ्क्षतदर सोनी 139 बार खूनदान कर चुके है। कहते हैं 1989 में पिता सुरिंदर पाल सोनी का कूल्हा टूट गया। डाक्टरों ने खून का इंतजाम करने के लिए कहा तो कोई भी खूनदान करने के लिए आगे नहीं आ रहा था। किराएदार को दो किलो देसी घी और पचास रुपये नकद दिए और एक यूनिट खून लिया। इसके बाद खुद खूनदान की ठान ली। कोरोना काल में पिछले दिनों सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में खून की कमी आई। रेडक्रास सोसायटी के सहयोग से खूनदान कैंप लगाए। उन्होंने कहा कि पत्नी मोनिका सोनी ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया है। द ब्लड एसोसिएशन संस्था के साथ जुड़े हैं। वह हर साल मार्च माह में खूदान कर माता को श्रद्धांजिल अर्पित करते है। उन्हें भारत श्री अवार्ड 2018, यूथ आईकोन अवार्ड, रियल लाइफ हीरो अवार्ड व जिला प्रशासन मेडल दे चुका है।

कोरोना को हराने के बाद फिर भी खूनदान की ललक बरकरार

जालंधर: कोरोना को हराने के बाद भी कई लोगों में खूनदान करने की ललक बरकरार है। नवीन शर्मा सेंट सोल्जर कालेज में कंप्यूटर विभाग में प्रोफेसर तैनात है। कहा कि उनके दादा को साल 2008 में खून की जरूरत पड़ी थी तब हर कोई खूनदान करने से कन्नी करतार रहा था। इन हालात में वे खुनदान करके आए। उसके बाद हर तीन महीने बाद रक्तदान करते हैं। कहा कि मई के पहले सप्ताह कोरोना नेगेटिव की रिपोर्ट आई। डाक्टरों की सलाह के मुताबिक उन्होंने रविवार को 53वीं बार खून दान किया।

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