सत्ता के गलियारे से : लीडरशिप के खिलाफ जिनका सहारा बने जोशी... आज वही मौन

पूर्व कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी से अकसर कोई न कोई विवाद जुड़ा रहा है लेकिन वह हमेशा ही पार्टी के वर्करों की आवाज बुलंद करते रहे हैं। फिर चाहे कोई विवाद उनके साथ ही क्यों न जुड़ जाए।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 01:48 PM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 01:48 PM (IST)
सत्ता के गलियारे से : लीडरशिप के खिलाफ जिनका सहारा बने जोशी... आज वही मौन
जोशी पर आरोप लगे थे कि वह बागी नेताओं को सपोर्ट कर रहे हैं।

विपिन कुमार राणा, अमृतसर। पूर्व कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी से अकसर कोई न कोई विवाद जुड़ा रहा है, लेकिन वह हमेशा ही पार्टी के वर्करों की आवाज बुलंद करते रहे हैं। फिर चाहे कोई विवाद उनके साथ ही क्यों न जुड़ जाए। ऐसे ही हालात वर्ष 2018 में भी बने थे, जब प्रदेश लीडरशिप के खिलाफ खोले गए मोर्चे में अनिल जोशी उन तमाम नेताओं का सहारा बने थे, जिन्होंने पार्टी लीडरशिप के खिलाफ बगावत के सुर बुलंद किए। अब भाजपाई गलियारे में ही चर्चा छिड़ी हुई है कि तब तो अनिल जोशी उन नेताओं का सहारा बन गए थे, पर अब जब जोशी को पार्टी ने छह साल के लिए निष्कासित किया है तो वे तमाम नेता चुप्पी साधकर बैठे हुए हैं। तब जोशी ने उन्हें अपने 26 अगस्त को हुए मिलन समारोह में भी बुलाया था। इसके बाद जोशी पर आरोप लगे थे कि वह बागी नेताओं को सपोर्ट कर रहे हैं।

खेमे का खास आ गया बाहर

पूर्व मंत्री अनिल जोशी के 'पार्टी लाइन से अलग चलो' की राह से कुछ उनसे जुड़े नेता ही सहमत नहीं है। ये नेता वो हैं जो भारतीय जनता पार्टी के अहम पदों पर भी रहे हैं और बतौर पार्षद भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई है। वे 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी टिकट के दावेदारों में से एक हैं। ऐसे में जोशी के बगावती सुरों के साथ सुर मिलाकर ये नेता पार्टी का गुस्सा मोल लेने के मूड़ में नहीं हैं। यही वजह है कि जब जोशी ने निष्कासन के बाद शक्ति प्रदर्शन करते हुए सचखंड श्री दरबार साहिब और श्री दुग्र्याणा तीर्थ में माथा टेका तो उस समय ये नेता उनके साथ नजर नहीं आए। उस दिन उनकी गैरमौजूदगी पार्टी गलियारे में चर्चा का विषय बनी रही। हां शक्ति प्रदर्शन में अभी तक मौन धारण करके बैठे खेमे का खासमखास जरूर बाहर आ आया और वह खुलकर अनिल जोशी के समर्थन में जुट गया है।

अब ईस्ट में क्या होगा?

नवजोत सिंह सिद्धू के प्रदेश कांग्रेस प्रधान बनने पर पिछले दो सालों से चल रहा सियासी बनवास अब खत्म हो गया है। उनके पूर्वी विधानसभा हलके पर नगर सुधार ट्रस्ट के चेयरमैन दिनेश बस्सी और मेयर करमजीत ङ्क्षरटू की नजर टिकी थी। दोनों की नियुक्ति ही सिद्धू की च्वाइस को दरकिनार करके हुई थी। अब सिद्धू प्रदेश प्रधान बन गए हैैं और उनका कुनबा फिर से हावी हो गया है। सिद्धू के पटियाला से चुनाव लडऩे की अटकलों के बाद दोनों नेता सक्रिय हुए थे, पर अब सिद्धू की वापसी के बाद चर्चाएं गरम हैैं कि अब पूर्वी हलके में क्या होगा। सिद्धू अगर पटियाला से भी लड़ते हैं तो भी पूर्वी हलके में उनकी च्वाइस इन दोनों नेताओं की जगह अपने करीबियों में से किसी एक की रहेगी। कांग्रेस गलियारे में अब इस पर खूब कयासबाजी हो रही है कि पूर्वी हलके का अगला कांग्रेस का चेहरा कौन होगा।

बोर्ड से नेताजी गायब

शहर के विकास से जुड़ी एक अहम सीट पर बैठे बड़े नेता के लिए पिछले दिनों खासे विकट हालात रहे। उनके करीबियों ने ही उन पर खूब तंज कसे। दरअसल, हुआ यूं कि नवजोत ङ्क्षसह सिद्धू के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर एक पार्षद प्रतिनिधि ने शहर में काफी बोर्ड लगवाए, पर उसमें बड़े नेताजी की फोटो नहीं लगवाई। जनाब उन्हें अपने साथ गाड़ी में लेकर घूमते रहे। अब जब उनके आका प्रधान बन गए तो एकाएक नेताजी से ऐसी कन्नी काटी कि उनकी फोटो भी अपने होर्डिंग में लगवाना उन्हें गंवारा नहीं हुआ। इसको लेकर नेताजी के एक करीबी ने तो उन्हें यहां तक कह दिया कि यह प्रतिनिधि तो आपको विधानसभा चुनाव लड़वाने की तैयारी करवा रहे हैं और दूसरी तरफ पहले ही पल्ला झाड़ गए हैैं। अब यह आपकी पैरवी क्या करेंगे, उल्टा अब जो हालात बनेंगे, उसमें नुकसान क्या करते हैं, वह देखने वाला होगा।

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