अकाली दल-बसपा गठबंधनः जनाधार वाली सीटें न मिलने से BSP काडर में गुस्सा, समझौते का विरोध शुरू
अकाली दल के साथ समझौते के तहत बसपा को 20 सीटों में से अधिकतर वह सीटें दे दी गई हैं जिन पर शिअद कभी खुद लड़ा ही नहीं है। ऐसी सीटें शहरी क्षेत्र से संबंधित हैं और भाजपा के उम्मीदवार ही इन सीटों पर खड़े होते रहे हैं।
जालंधर [मनुपाल शर्मा]। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन के बावजूद 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का खाता खुलने को लेकर सवालिया निशान लगा नजर आ रहा है। शिअद ने बसपा को गठबंधन में 20 सीटें लड़ने के लिए तो दे दी हैं लेकिन बसपा के जनाधार वाली अधिकतर सीटों को बसपा के खाते में डाला ही नहीं गया है। समझौते के तहत बसपा को 20 सीटों में से अधिकतर वह सीटें दे दी गई हैं, जिन पर शिअद कभी खुद लड़ा ही नहीं है। ऐसी सीटें शहरी क्षेत्र से संबंधित हैं और भाजपा के उम्मीदवार ही इन सीटों पर खड़े होते रहे हैं। समझौते की घोषणा से खुश हुआ बसपा का काडर सीटों के बंटवारे को लेकर अब भारी रोष में नजर आ रहा है।
बसपा को करतारपुर, जालंधर वेस्ट, जालंधर नॉर्थ, फगवाड़ा, कपूरथला, होशियारपुर, टांडा, दसूहा, श्री चमकौर साहिब, बस्सी पठाना, महल कलां, नवांशहर, लुधियाना नॉर्थ, पठानकोट, सुजानपुर, भोआ, मोहाली, अमृतसर नार्थ, अमृतसर सेंट्रल एवं पायल की सीट लड़ने के लिए दी गई है। इन सीटों में से मात्र करतारपुर, फगवाड़ा एवं नवांशहर में ही पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा की कारगुजारी कुछ ठीक रही थी। अन्य सीटों पर तो बसपा उपस्थिति ही दर्ज करवाने में भी ज्यादा सफल नहीं हो पाई थी।
पिछले चुनाव में कई सीटों पर बसपा ने दर्ज करवाई थी मौजूदगी
वहीं, बसपा फिल्लौर, आदमपुर, बंगा, गढ़शंकर, बलाचौर, चब्बेवाल, शाम चौरासी, जालंधर कैंट, नकोदर, फगवाड़ा की सीटों पर अपनी मजबूत पकड़ बताती रही है। बसपा के काडर का कहना है कि शिअद अपने विधायकों वाली 4 सीटों को चाहे बसपा के खाते में न डालता, लेकिन बसपा की अन्य मजबूत आधार वाली सीटों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए था। बसपा के खाते में अधिकतर ऐसी सीटें डाल दी गई हैं, जिन पर अकाली दल खुद नहीं लड़ता था और वे शहरी क्षेत्र से संबंधित थी एवं भाजपा के खाते में शामिल थीं।
सीटों के बंटवारे पर बसपा में बढ़ रहा रोष
अमृतसर शहरी, लुधियाना शहरी, मोहाली, पठानकोट, जालंधर शहरी, दसुआ, भोआ आदि सीटों पर बसपा की कारगुजारी कभी अच्छी नहीं रही है और अकाली दल भी कभी इन सीटों पर उम्दा प्रदर्शन नहीं कर पाया है। हालात यह है कि गठबंधन में हुए सीटों के बंटवारे को लेकर बसपा के अंदर रोष बढ़ता जा रहा है, जो आगामी कुछ दिनों में उग्र रूप धारण कर सकता है। बैठकों का दौर शुरू हो गया है और इंटरनेट मीडिया पर भी भड़ास निकली जा रही है।