कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज का इंजेक्शन लगवाने वाला डॉक्टर, पढ़ें अमृतसर की और भी रोचक खबरें
अमृतसर में एक डॉक्टर की जिद के आगे स्टाफ ने हार मान ली। डाक्टर पहला टीका लगवाने के 28 दिन बाद दूसरी डोज की जिद लेकर बैठ गया था। स्टाफ ने डॉक्टर को वैक्सीन लगा दी और फाइलों में दो दिन बाद दर्ज की।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। कोविशील्ड का टीका लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। दूसरी तरफ विभाग के एक डाक्टर तो वैक्सीन लगवाने की जिद पर आमादा हो गए। असल में वैक्सीन की दूसरी डोज लगवाने के लिए यह डाक्टर गुरुनानक देव अस्पताल पहुंचे। टीकाकरण केंद्र में जाकर बाजू से आस्तीन उतार दी और बोले-लगा दो दूसरा टीका। स्टाफ ने तर्क दिया कि दूसरा टीका तो दो दिन बाद लगेगा। डाक्टर ने कहा कि पहला टीका लगवाए 28 दिन बीत गए हैं। मैं तो आज ही टीका लगवाऊंगा। स्टाफ ने कहा कि अभी दूसरी डोज के लिए पोर्टल से मैसेज नहीं आया। इस पर भी डाक्टर साहब नहीं माने। अंतत: स्टाफ ने हार मानी और दूसरी डोज लगा दी, पर यह दूसरी डोज उन्होंने फाइलों में दो दिन बाद दर्ज की। डाक्टर क्यों उतावले थे टीका लगवाने के लिए यह तो वही जानें, लेकिन इससे स्टाफ को काफी परेशानी हुई।
मास्क पहनना नहीं भूलते यह साहब
कोरोना के डर से चेहरे पर मास्क तो सबके थे, पर अब बेनकाब हो चुके हैं। जनवरी के प्रारंभ में कोरोना का कहर जरा सा कम क्या हुआ, लोगों ने मास्क उतार फेंका। फरवरी के मध्य से कोरोना फिर तेजी से फैलने लगा, पर उसकी आक्रामकता लोगों के मास्क नहीं पहना सकी। हां, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मास्क पहनना नहीं भूलते। सिविल सर्जन डा. चरणजीत ङ्क्षसह ने दस माह तक चेहरे से मास्क नहीं हटाया। कहते हैं- अब तो आदत सी हो गई है इसकी। घड़ी, पर्स भूल जाता हूं, पर मास्क नहींं। मास्क पहनकर गर्माहट मिलती है। वायरस से तो यह बचाता ही है। डा. चरणजीत ऐसे अधिकारी हैं जो किसी को मास्क के बगैर देख लें तो झिड़की लगाए बगैर नहीं रहते। अधिकारी की तरह अगर सभी लोग मास्क को पहने और सरकार की गाइडलाइन का पालन करें तो कोरोना को खत्म किया जा सकता है।
अब दवा नहीं देते डाक्टर साहब
स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एक डाक्टर साहब कोरोना से बचाव के लिए दवाई बांटते थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बताते भी थे कि यह दवा कोरोना को किस तरह नष्ट करती और संक्रमण से बचाती है। डाक्टर साहब ने हजारों पुडि?ा बांट डालीं। हालांकि एक दिन डाक्टर साहब खुद बीमार पड़ गए। इस दौरान कोविड टेस्ट करवाया तो पाजिटिव निकले। घबराहट हुई, पर किसी को बताया नहीं। बताते तो शायद लोग उनका उपहास करते कि डाक्टर साहब तो खुद कोरोना की दवाई देते थे। वह चुपचाप एक निजी अस्पातल में जाकर दाखिल हो गए। कुछ दिन उपचार करवाया और फिर कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट इस बार नेगेटिव आ गई। यह देखकर डाक्टर साहब ने राहत की सांस ली। अब पता चला है कि डाक्टर साहब लोगों को कोरोना की दवाई नहीं देते, क्योंकि उनकी दवाई संभवत: उन पर ही असरदार साबित नहीं हुई, इसलिए तो उन्होंने अस्पताल में उपचार करवाया था।
डंडे के बिना भी मान जाओ
कोरोना वायरस कमजोर हो गया था। नवंबर 2020 में वायरस की हालत पतली हुई और लोगों को यह महसूस हुआ कि यह अब गया, अब गया। तब सरकार ने दुकान, बाजार और कारोबार सब कुछ खोल दिए। लोगों को मास्क पहनने की अपील लगातार की जाती रही, पर प्रशासन के डंडे के बिना लोग कहां मानते हैं। अब तो शिक्षण संस्थान भी खुल गए। सरकारी स्कूलों में अध्यापक ही मास्क नहीं पहन रहे, बच्चों को कौन समझाए। लोगों की इसी लापरवाही का नतीजा है कि फरवरी में कोरोना फिर से उठ खड़ा हुआ है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दबी जुबान में सरकार को कोसते नहीं थकते। कहते हैं- दस महीने तक इस वायरस ने परेशान किए रखा और अब सरकार सब कुछ खोल रही है। कुछ दिन और सब्र नहीं होता था क्या? ऐसे में लोगों को प्रशासन के डंडा चलाने से पहले खुद ही नियम का पालन करना चाहिए।