कुर्बानी की नहीं कद्र, पंजाब में 81 माह में 63 जवान हुए शहीद, सरकार काे नहीं ध्यान
पंजाब के जवान देश के रक्षा के लिए कुर्बानी दे रहे हैं लेकिन पंजाब सरकार उनकी स्मृति को सहेजने में भी रुचि नहीं दिखा रही है। पिछले 81 महीने में पंजाब के 63 जवान शहीद हुए।
जालंधर, [नवीन कुमार]। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...। रामप्रसाद बिस्मिल का यह पसंदीदा नगमा किसे याद नहीं होगा। जब भी वीर रणबांकुरे रणभूमि में जाते हैं, तब इसी नगमे को गुनगुनाते हैं। जवानों के शहीद होने पर लोग भी इसी नगमे को मन ही मन दोहराने लगते हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहें कि इन वीर सिपाहियों को याद करने के लिए हमारे पास न ही कोई योजना है और न कोई बजट। इसलिए पंजाब के कई जिलों में इन शूरवीरों की इतिहास गाथा सरकार नहीं गाती। पिछले 81 महीने में पंजाब के 63 वीर जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए जान दी, लेकिन उनकी स्मृति को संजोने में सरकार ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
पहली जनवरी 2012 से 27 सितंबर, 2018 तक 63 जवान हुए शहीद
हां, इतना जरूर है कि 15 अगस्त व 26 जनवरी पर शहीद के परिवारों को रेडक्रॉस जैसी संस्थाओं की मदद से एक शॉल व कुछ धनराशि देकर सम्मानित जरूर कर दिया जाता है। यह जानकारी आरटीआइ से मिली है। दैनिक जागरण की ओर से पंजाब के मुख्य सचिव से आरटीआइ के तहत यह जानकारी मांगी गई थी।
सबसे अधिक गुरदासपुर के 11 व होशियारपुर के 10 सपूत कुर्बान
राज्य के विभिन्न जिलों से डिस्ट्रिक्ट डिफेंस सर्विस वेलफेयर अफसर की ओर से भेजी गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के पास इन वीर शहीदों की मजारों पर हर वर्ष मेले लगाने के लिए योजना नहीं है। जालंधर से मिली जानकारी में यह साफ लिखा है कि इन शहीदों की याद में प्रशासन ने कोई आयोजन नहीं किया, क्योंकि उनके पास फंड नहीं है। इसी प्रकार दूसरे जिलों ने भी यह बात मानी है।
शहीद के नाबालिग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी नहीं है कोई योजना
'पिता जी आप तो देश के लिए शहीद हो गए, हमारा क्या होगा...' यह सवाल हर शहीद जवानों के परिवारों के बच्चों के मन में जरूर कौंध जाता होगा। आतंकवादी से लड़ते हुए और देश की सीमा रक्षा करते हुए शहीद हुए जवानाें के बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है। उन बच्चों का लालन-पालन कैसे होगा, किस प्रकार शिक्षा दी जाएगी। बिना पिता के साये में वो किस प्रकार सबल और एक अच्छे नागरिक बनें, सरकार के पास इसके लिए कोई रूपरेखा नहीं है।
संगरूर के एक परिवार ने नौकरी के लिए नहीं किया अप्लाई, होशियारपुर के पांच परिवार नौकरी के लिए अयोग्य
1 जनवरी, 2012 से 27 सितंबर, 2018 तक पंजाब के 63 वीर जवान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। इनमें से कुछ परिवारों को नौकरी तो मिल गई, लेकिन कुछ को नहीं। राज्य के विभिन्न जिलों से डिस्ट्रिक्ट डिफेंस सर्विस वेलफेयर अफसर की ओर से भेजी गई जानकारी के मुताबिक गुरदासपुर जिले ने सबसे ज्यादा 11 सपूतों को खोया। होशियारपुर के 10 जवान देश की सेवा करते हुए कुर्बान हुए, जबकि कपूरथला व मोगा के एक-एक जवान शहीद हुए।
आठ जवानों की नहीं हुई थी शादी
डीडीएसडब्ल्यूओ की ओर से भेजी गई सूचना के मुताबिक आठ जवानों की शादी नहीं हुई थी। इसमें से लुधियाना के दो और रूपनगर, संगरूर व गुरदासपुर के एक-एक शहीद जवान हैं।
पंजाब सरकार ने दी नौ लाख रुपये की सहायता
पंजाब सरकार की ओर से शहीद होने वाले शादीशुदा वीर जवान को नौ लाख रुपये की सहायता राशि दी जाती है। अविवाहित जवानों के परिजनों को सात लाख रुपये दिए जाते हैं। हालांकि, तरनतारन से मिली जानकारी के मुताबिक पंजाब सरकार ने अब एक्सग्रेसिया दो लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया है। इसके साथ ही परिवार के सदस्यों को नौकरी भी दी जाती है।
केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली राशि की जानकारी नहीं स्पष्ट
केंद्र सरकार की ओर से इन शहीद परिवार को कितनी राशि दी जाती है, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। इसमें कहा गया गया है कि एजीआइ व एक्सग्रेसिया सरकारी नियमानुसार दी जाती है।
19 परिवारों को नौकरी देने की प्रक्रिया जारी
63 शहीद सैनिकों में से 19 परिवारों को अभी तक नौकरी नहीं मिली है। इनको नौकरी देने की प्रक्रिया जारी है। जिसमें से पटियाला में एक, पठानकोट में चार, अमृतसर में एक, बठिंंडा में दो, संगरूर में एक, होशियारपुर में तीन और गुरदासपुर में एक केस में नौकरी नहीं मिली है।
किन जिलों में इतने जवान शहीद
जिला | शहीद |
पटियाला | तीन |
पठानकोट | पांच |
मोगा | एक |
कपूरथला | एक |
अमृतसर | आठ |
लुधियाना | दो |
फिरोजपुर | चार |
रूपनगर | चार |
बठिंडा | छह |
जालंधर | दो |
नवांशहर | दो |
संगरूर | चार |
होशियारपुर | 10 |
गुरदासपुर | 11 |