इस रियल होरो में बचपन से था जूनुन, कहते थे- चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा

ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी में बचपन से ही देशसेवा और बहादूरी का जूनून था। उनके बचपन के साथी बताते हैं कि कुलदीप छोटी उम्र में ही कहते थे चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 12:06 PM (IST) Updated:Sun, 18 Nov 2018 12:06 PM (IST)
इस रियल होरो में बचपन से था जूनुन, कहते थे- चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा
इस रियल होरो में बचपन से था जूनुन, कहते थे- चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा

रामपाल भारद्वाज, गढ़शंकर (होशियारपुर)। 'ऐसा लगता है जैसे कल की बात हो। मुझे आज भी याद है बचपन के वो दिन जब मैं और कुलदीप सिंह पशु चराने जंगल जाया करते थे। वह बहुत फुर्तीला और चुस्त था। कोई भी फैसला तुरंत ले लेता था। उसके बाद उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा देता था। जिंदादिल और यारों का यार था।' ये शब्द हैं नवांशहर जिले के गांव सडोआ के रहने वाले पंडित बिशन दास (80) के। पंडित बिशन ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के बचपन के दोस्त हैं। दोनों ने इकट्ठे बचपन के दिन बिताए हैं। कुलदीप कहते थे, चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा।

बचपन के दोस्त बोले- जिंदादिल और यारों के यार थे ब्रिगेडियर चांदपुरी

बिशनदास बताते हैं कि फौज में जाना तो उसने उसी वक्त तय कर लिया था। अपने चाचा को वर्दी में देख कुलदीप सिंह अकसर कहता था चाचा जहाज चलाते हैं, मैं टैंक चलाऊंगा। ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो। कुलदीप सिंह चांदपुरी के दो चाचा वायुसेना में फ्लाइंग अफसर थे। वह परिवार की तीसरी पीढ़ी के सैन्य अधिकारी थे।

बिशन दास ने कहा, कुलदीप सिंह अंधेरे से कभी नहीं डरता था। हम लोग शाम ढलते ही घर लौटने की बात करते थे, लेकिन वह अंधेरा होने तक पशुओं को चराता रहता था। खाने-पीने का वह बचपन से ही शौकीन था। 1971 के जंग में उसे महावीर चक्र मिला था। जब कोई कहता है कि वह कुलदीप सिंह का दोस्त है तो मन को खुशी होती है। कहीं न कहीं मेरा नाम देश के एक महान योद्धा के साथ जुड़ा है।

कुलदीप सिंह चांदपुरी के पिता का नाम वतन ङ्क्षसह और माता हरबंस कौर थीं। चांदपुरी का एक भाई बचपन में ही गुजर गया था। उनकी दो बहनें थीं, जिनमें से एक का निधन हो चुका है और एक विदेश में रहती है। कुलदीप सिंह अकसर गांव आते रहते थे। उनकी जमीन की देखरेख भी करते थे।

मेरा ब्रिगेडियर साहब को सलाम

बिशन सिंह कहते हैं जबसे उसके देहांत की खबर सुनी है मन उदास हो गया है। पहले पता चला था कि कुलदीप ङ्क्षसह कुछ बीमार है। यकीन नहीं होता कि इतनी जल्दी हमें छोड़कर चला जाएगा। मेरा ब्रिगेडियर साहब को सलाम है।

गांव में छाया मातम

ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के निधन की खबर के बाद से गांव सडोआ में मातम छा गया। गांव चांदपुर रुड़की और सडोआ में उनके नजदीकी परिजनों मनजीत सिंह, बलजीत सिंह, बलविंदर सिंह नंबरदार, बलवीर सिंह, कुलविंदर सिंह, परमजीत कौर, गुरदीप सिंह, बिंदू, अनु, नीलू और युवराज ने बताया कि चांदपुरी के बुजुर्ग चांदपुर रुड़की गांव से पश्चिमी पंजाब के मिंटागुमरी (अब पाकिस्तान में) चले गए थे। वहीं जमीन लेकर रहते थे। कुलदीप सिंह का जन्म वहीं हुआ था।

उन्‍होंने कहा कि बंटवारे के बाद परिवार को नवांशहर जिले के गांव सडोआ में जमीन मिली और परिवार यहां रहने लगा। इसी गांव के सरकारी हाई स्कूल से कुलदीप सिंह ने दसवीं तक की पढ़ाई की थी। उच्च शिक्षा के लिए माहिलपुर के खालसा कॉलेज में पढऩे गए।

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