मिर्जापुर के सुरेंद्र ने पाली हाउस की तकनीक अपना खेत में उगाया सोना
कृषि से जुड़े परिवारों की धारणा हो चुकी है कि कृषि घाटे का सौदा बता रहे हैं। जबकि यह मुनाफे का काम है।
राज, होशियारपुर
खेती से जुड़े परिवारों की धारणा हो चुकी है कि कृषि घाटे का सौदा है। इसी के चलते बच्चे उज्जवल भविष्य के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं। जबकि सही तरीके से की जाने वाली खेती कभी घाटे का सौदा नहीं हो सकती। बस आपका विजन क्लीयर होना चाहिए। यह कहना है मिर्जापुर के किसान सुरिदर सिंह का।
आज सुरिदंर सिंह गांव के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। सुरिदर सिंह ने पारम्परिक खेती को छोड़कर कुछ नया करने की ठानी और उसमें सफल भी हुए। पाली हाउस फार्म के जरिए सब्जियां लगाकर वे लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ साल पहले तक वह पारम्परिक खेती ही करते थे, लेकिन उसमें मेहनत और परेशान अधिक थी तथा मुनाफा न के बराबर होता था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पाली हाउस लगाने के लिए प्रेरित किया।
हरएक मौसम की सब्जी हो सकती है तैयार
सुरिदंर सिंह ने बताया कि सब्जियां बोने वाले किसान परंपरागत खेती से हटकर पाली हाउस को अपनाना चाहिए क्योंकि इसमें किसी भी मौसम में कोई भी सब्जी उगाई जा सकती है। कम पानी और खाद में सब्जियों की अधिक पैदावार का सबसे बेहतर तरीका पाली हाउस है। खुले में सब्जी की खेती की अपेक्षा पाली हाउस में एक एकड़ में पांच गुना अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। कीट पतंगे, मधुमक्खी, टिड्डा आदि से भी पाली हाउस पूरी तरह से सुरक्षित रहता है। पाली हाउस में रासायनिक के साथ-साथ जैविक खादों का भी प्रयोग किया जाता है। पाली हाउस की खेती से किसान के खेत पर कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखाई देता है।
सभी तरह की सब्जियों का हो सकता है उत्पादन
पाली हाउस में टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, मिर्च के फूलों में जरवेरा और गेंदा, गुलाब आदि की अच्छी खेती की जा सकती है। पाली हाउस में एक एकड़ में साढ़े चार से पांच सौ क्विटल खीरे के आसपास उत्पादन की संभावना रहती है। खीरे की तरह ही टमाटर भी साधारण खेती की अपेक्षा अधिक पैदा किया जा सकता है। रही बात वर्मी की तो एक एकड़ में 40 टन का प्रयोग किया जा सकता है। टुपका सिस्टम से होती है सिचाई
पाली हाउस में टुपका सिचाई का माध्यम अपनाया जाता है। इसमें पानी कम लगता है। इसका पानी सीधे पौधों की जड़ों तक जाता है। खाद भी काफी कम लगती है।