भगवान शिव ने दिया फरसा, तो बने परशुराम : शास्त्री

अक्षय तृतीया व भगवान परशुराम जयंती ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष सतीश माली की अध्यक्षता में मनाई गई। भाजपा जिला महासचिव सतपाल शास्त्री विशाल शर्मा परशुराम सेना मीडिया प्रभारी ने माल्यार्पण करते हुए कहा कि हिदू धर्म ग्रंथों में आठ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 06:01 PM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 05:13 AM (IST)
भगवान शिव ने दिया फरसा, तो बने परशुराम : शास्त्री
भगवान शिव ने दिया फरसा, तो बने परशुराम : शास्त्री

संवाद सहयोगी, दातारपुर : अक्षय तृतीया व भगवान परशुराम जयंती ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष सतीश माली की अध्यक्षता में मनाई गई। भाजपा जिला महासचिव सतपाल शास्त्री, विशाल शर्मा परशुराम सेना मीडिया प्रभारी ने माल्यार्पण करते हुए कहा कि हिदू धर्म ग्रंथों में आठ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। एक श्लोक के अनुसार अश्वथामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभिषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं। बाल्यावस्था में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे। जब राम कुछ बड़े हुए, तो उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्रि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। इस बीच, असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा। श्री राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से असुरों का नाश कर दिया। इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।

फरसे से काट दिया था श्रीगणेश का एक दांत

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो वह ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुराम जी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुराम जी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार दांत पर झेल लिया। इसके कारण उनका एक दांत टूट गया, तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।

नहीं हुआ था श्रीराम से कोई विवाद

श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। धनुष टूटने की आवाज सुनकर भगवान परशुराम भी आ गए। आराध्य शिव का धनुष टूटा हुआ देखकर बहुत क्रोधित हुए और वहां उनका श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद भी हुआ जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार, सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम फिर अयोध्या लौट रहे थे तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ाकर छोड़ दिया। यह देखकर परशुराम को भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया और वे वहां से चले गए। इस अवसर पर ललित काका, रविद्र शर्मा, पंडित गोपाल शर्मा, सतीश कुमार उपस्थित थे।

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