श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है : महंत राज गिरी

आज यानी रविवार से शुरू होने जा रहे श्राद्ध पक्ष के विषय में मां कामाक्षी मंदिर में कार्यक्रम करवाया

By JagranEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 04:19 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 04:19 PM (IST)
श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है : महंत राज गिरी
श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है : महंत राज गिरी

संवाद सहयोगी, दातारपुर : आज यानी रविवार से शुरू होने जा रहे श्राद्ध पक्ष के विषय में मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी के महंत राज गिरी जी ने धर्म चर्चा करते हुए कहा कि श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है। पितरों के निमित्त विधि पूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को श्राद्ध कहते हैं।

महंत जी ने कहा ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा है, जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित विधि की तरफ से पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, श्राद्ध कहलाता है। हिदू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा क‌र्त्तव्य है। हमारे पूर्वजों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं।

इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म में वर्ष में एक पक्ष को पितृ पक्ष का नाम दिया। जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अ‌र्घ्य समर्पित करते हैं। महंत जी ने कहा पितृ का अर्थ-पितृ का अर्थ है पिता, किंतु पित्र शब्द जो दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। व्यक्ति के आगे के तीन शरीर चुके पूर्वज, मानव जाति के प्रारंभ या प्राचीन पूर्वज जो एक पृथक लोक के अधिवासी के रूप में कल्पित हैं।

पूजन के उपरांत किया जाता है तर्पण

उन्होंने कहा आवाहन, पूजन, नमस्कार के उपरांत तर्पण किया जाता है। जल में दूध, जौ, चावल, चंदन डाल कर तर्पण कार्य में प्रयुक्त करते हैं। मिल सके तो गंगा जल भी डाल देना चाहिए। तृप्ति के लिए तर्पण किया जाता है। स्वर्गस्थ आत्माओं की तृप्ति किसी पदार्थ से, खाने-पहनने आदि की वस्तु से नहीं होती। क्योंकि स्थूल शरीर के लिए ही भौतिक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। मरने के बाद स्थूल शरीर समाप्त होकर, केवल सूक्ष्म शरीर ही रह जाता है। सूक्ष्म शरीर को भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि की आवश्यकता नहीं रहती। उसकी तृप्ति का विषय कोई खाद्य पदार्थ या हाड़-मांस वाले शरीर के लिए उपयुक्त उपकरण नहीं हो सकते। सूक्ष्म शरीर में विचारणा, चेतना और भावना की प्रधानता रहती है। इसलिए उसमें उत्कृष्ट भावनाओं से बना अंत: करण या वातावरण ही शांतिदायक होता है।

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