संत अवगुणों पर पर्दा डाल कर दूसरों के गुणों से लाभ प्राप्त करते है : सुदीक्षा जी महाराज
संत सदैव दूसरों के गुणों से लाभ उठाते हुए उसके अवगुणों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं न कि उन्हें उछालने का।
जागरण टीम, होशियारपुर
संत सदैव दूसरों के गुणों से लाभ उठाते हुए उसके अवगुणों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं न कि उन्हें उछालने का। आनलाईन वर्चुअल समागम के दौरान प्रवचन करते हुए निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने फरमाया कि ब्रह्मज्ञान के उपरांत भक्त इस निरंकार प्रभु के रंग में रंगा रहता है। वह स्वयं से भी प्रेम करता है और सबके साथ प्रेम से जीते हुए इस जीवन को खूबसूरत बना लेता है। मानवीय गुणों से युक्त होकर वह स्वयं के लिए तथा संसार के लिए वरदान बनता है। एक ब्रह्मज्ञानी इस संसार में मौजूद विविधता का भी उत्सव मनाता है। यदि हम प्राकृतिक सौंदर्य की एक तस्वीर किसी सोशल ग्रुप में भेजें और सभी से पूछें कि उन्हें उसमें क्या सुंदर लगा? तब कोई पहाड़ को सुंदर कहेगा और कोई नदी या वृक्षों को। वास्तव में तस्वीर तो एक ही है परन्तु सबकी पसंद उसमें भिन्न है। ऐसे ही संसार में विविधता है और हमारी निजी पसंद अलग हो सकती है परन्तु समस्त संसार ही इस परमात्मा की बनाई हुई एक सुंदर तस्वीर है; ब्रह्मज्ञानी इसी भाव से सबसे प्रीत करता है। एक व्यक्ति के स्वभाव में भी अनेक पहलू होते हैं। हो सकता है हमें एक पहलू अच्छा लगे, और दूसरा पहलू नहीं। ज्ञान और विवेक की ²ष्टि रखने वाले गुणों पर केंद्रित रहते हैं और वह दूसरों की कमियों को नहीं देखते। हमें अपने मन को निरंकार द्वारा बक्शे ज्ञान, विवेक और चेतनता के सांचे में ढालना है जिससे हमारा चुनाव सही दिशा प्राप्त कर सके। हम सभी ने सेवा, सिमरन व सत्संग करना है। अपने दिल को बड़ा करते हुए दूसरों की गलतियों को नजरंदाज और क्षमा करते हुए हमने सभी के साथ आदर और सत्कार से रहना है।