पाप से नहीं, पुण्य से संवारे जीवन: महंत राज गिरी

जीवन में तप जरूरी है इससे ही मनुष्य का जीवन संवरता है। भले ही वह किसी भी रूप में हो। किसान की तरफ से कृषि करना माता-पिता की सेवा और दीन दुखियों की सेवा सब तप के ही रूप हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 04:18 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 05:12 AM (IST)
पाप से नहीं, पुण्य से संवारे जीवन: महंत राज गिरी
पाप से नहीं, पुण्य से संवारे जीवन: महंत राज गिरी

संवाद सहयोगी, दातारपुर : जीवन में तप जरूरी है, इससे ही मनुष्य का जीवन संवरता है। भले ही वह किसी भी रूप में हो। किसान की तरफ से कृषि करना, माता-पिता की सेवा और दीन दुखियों की सेवा सब तप के ही रूप हैं। आज मनुष्य भंवरे की तरह हो गया है जो पांच इंद्रियों के वश में आकर सत्कर्म के मार्ग से भटक जाता है और ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। परमात्मा तो कण-कण में विद्यमान है, लेकिन उस ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को इंद्रियों पर नियंत्रण करना जरूरी है। यह बात तपोमूर्ति महंत राज गिरी महाराज ने मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में शुक्रवार को दुर्गाष्टमी के अवसर पर कोविड नियमों का पालन करते हुए केवल नौ भक्तों को उपदेश देते हुए कही। उन्होंने आगे कहा कि संसार में मनुष्य पाप के बजाय पुण्य कर जीवन का कल्याण करे। स्नान से शरीर, भागवत चर्चा से आत्मा और मन पवित्र होता है। यदि हम सुख में भगवान को याद करें तो दुख नहीं आते। संतान जब रोती है तो मां की ममता प्रकट हो जाती है, आत्मा ने मां को सहारा दिया तो अमर हो गई। परमात्मा में मां लगा तो परमात्मा बना। कथा वह जो जीवन में संघर्ष के साथ जीवन जीना सिखा दें। महंत ने कहा, अभाव को आदत बना ले तो जीवन में सुख ही सुख मिल जाएगा। ज्ञान भक्ति वैराग्य को छोड़कर संसार सुख चाहता है जो संभव नहीं है। सत्संग में उपस्थित श्रद्धालु स्वर्ग के बिदु से कम नहीं है, कथा श्रावक केवल सुने ही नहीं उस पर आत्मचितन करें। मानव से झूठ, धोखा, अवगुण हो जाए तो कथा इसके विरोध में रहती है। घबराएं नहीं, लेकिन यह आदत न बन जाए, अवगुण को शीघ्रता से भुला या त्याग दें। इस अवसर पर डा. रविद्र सिंह, कवि राजेंद्र मेहता, रमन गोल्डी, अजय शास्त्री उपस्थित थे।

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