चुनाव करीब आते देख बदलने लगते हैं राजनीतिक मुखौटे
चुनाव के चक्कर में यहां पर राजनीतिक मुखौटे बदल जाते हैं।
हजारी लाल, होशियारपुर
चुनाव के चक्कर में यहां पर राजनीतिक मुखौटे बदल जाते हैं। एक चुनाव में कुछेक नेताओं के चेहरे किसी और राजनीतिक मंच पर विराजमान होते हैं और दूसरे चुनावी साल में वही चेहरे कोई और मुखौटा पहन लेते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वसूलों की राजनीति नहीं, बल्कि समय के नजाकत की राजनीति हावी है तो शायद कुछ गलत नहीं होगा।
पिछले विधानसभा चुनाव में होशियारपुर की राजनीति में पैठ रखने वाले पूर्व राज्यसभा सदस्य वरिदर सिंह बाजवा ने शिरोमणि अकाली दल बादल को अलविदा कहते हुए कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। साढ़े चार साल में ही बाजवा ने हाथ छोड़कर फिर से शिरोमणि अकाली दल बादल में शामिल हो गए। यही नहीं, पूर्व कैबिनेट मंत्री चौधरी बलवीर सिंह मियाणी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल बादल का दामन छोड़कर कांग्रेस के पाले में आ गए थे, लेकिन मियाणी का भी साढ़े चार साल में ही कांग्रेस को अलविदा कहकर फिर से शिरोमणि अकाली दल बादल में चले गए। वरिदर सिंह बाजवा कई बार बदल चुके हैं दल
अगर बात करें वरिदर सिंह बाजवा की तो उन्होंने राजनीतिक जीवन में कई उलटफेर किए हैं। युवा अवस्था में बाजवा कांग्रेस में सक्रिय राजनीति करते थे। मगर सन 1984 के दंगे के बाद कांग्रेस से खफा होकर बाजवा ने शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए थे। काफी समय तक पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ राजनीति किए। वफादारी के बदले में बादल ने उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया था। मगर, सन 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले मनप्रीत सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल बादल से नाता तोड़ा और पंजाब पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) बनाई तो बाजवा ने शिअद से नाता तोड़ कर पीपीपी में शामिल हो गए थे। कुछ समय में पीपीपी का राजनीतिक खात्मा होने पर मनप्रीत सिंह बादल ने कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। इसके बाद बाजवा शांत रहे और फिर एक बार पलटी मारते हुए शिअद का दामन थाम लिया। न जाने क्यों बाजवा का फिर से शिअद से मन भरा और सन 2017 से पहले बाजवा ने कैप्टन अमरिदर सिंह की मौजूदगी में चंडीगढ़ में जाकर साथियों समेत कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर दी। राजनीतिक गलियारों में चचा छिड़ी की शायद अब बाजवा उम्र की लिहाज से कांग्रेस में ही राजनीतिक सफर तय करेंगे, लेकिन बाजवा ने फिर से उस समय झटका देने का काम किया, जब हाल में ही उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़कर फिर से शिरोमणि अकाली बादल के तकड़ी पर सवार हो गए। समय-समय पर बाजवा की राजनीतिक पारी बदलना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी रहती है। बलवीर चौधरी भी छोड़ चुके थे शिअद
अगर हम बात करें पूर्व कैबिनेट मंत्री बलवीर चौधरी की तो उन्होंने भी नाराजगी की वजह से ही शिरोमणि अकाली दल बादल को टाटा किया था। दरअसल, सन 2007 के विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली बादल की टिकट पर उड़मुड़ से मियाणी चुनाव लड़े थे, लेकिन वह चुनावी बाजी हार गए थे। चुनावी बाजी क्या हारे कि मियाणी पर अवनिदर सिंह रसूलपुरी हावी हो गए। सन 2012 के विधानसभा चुनाव में मियाणी की टिकट पर कैंची चलवाकर रसूलपुरी ने टिकट की बाजी मार ली। मगर, चुनावी मैदान में वह कांग्रेस के संगत सिंह गिलजियां से हार गए। ऐसे में मियाणी को लगा कि शायद 2017 के विधानसभा चुनाव में शिअद हाईकमान उन्हें उड़मुड़ से उम्मीदवार बनाए। मगर, हाईकमान ने रसूलपुरी को ही अपना चुनावी घोड़ा बनाया। इस पर मियाणी ने नाराज होकर शिअद को टाटा कहते हुए कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। चुनावी रण में कांग्रेस के संगत सिंह गिलजियां से रसूलपुरी को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी में शामिल करवाने के लिए सुखबीर काफी समय से थे प्रयासरत
कांग्रेस खेमे से शिअद के पाले में लाने के लिए अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल काफी समय से जोर लगा रहे थे। उन्हें कामयाबी भी मिली, क्योंकि बाजवा और मियाणी को वह शिअद में शामिल करवाने में कामयाब भी हुए। अब देखना है कि इन दोनों का राजनीतिक सफर शिअद में कब तक रहता है।