धर्म के नाम पर द्वेष पालने वाले होते हैं अज्ञानी
दातारपुर ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप दिया गया वेद का ज्ञान ही मानव के कल्याण का सच्चा परम धर्म है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर: ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप दिया गया वेद का ज्ञान ही मानव के कल्याण का सच्चा परम धर्म है। जो वेद को नहीं मानता या जान सकता, वह कभी ईश्वर के स्वरूप को भी नहीं पहचान सकता। उक्त विचार शिव मंदिर फतेहपुर में स्वामी महेश पुरी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वेद में ही ईश्वर ने अपने यथार्थ स्वरूप का वर्णन किया है। धर्म उसे कहते है जो अपरिवर्तनशील हो। स्वामी ने कहा इसको जान लेने से मनुष्य आत्मा एवं परमात्मा के चेतन दिव्य गुणों को जानकर मृत्यु आदि के दुखों से छूटकर आत्मिक अमरता को प्राप्त कर लेता है। मानव जीवन का परम लक्ष्य संपूर्ण दुखों से छूटकर मोक्ष रूपी आनंद प्राप्त करना है। जो मनुष्य पापों और दुर्व्यसनों से मुक्त हो जाता है ,वह परम पुरुष के साथ मिलकर परम पुरुष में ही मिल जाता है। वन्य पशु-पक्षी कभी आपस में घृणा नहीं करते, यह मनुष्य के लिए बहुत बड़ी सीख है। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य से प्रेम नहीं कर सकता, वह भगवान से कैसे प्रेम कर सकता है। प्रभु चरणों में स्थान पाने का सबसे अच्छा मार्ग है कि मनुष्य अपने कर्तव्यों को पूरा करने के साथ-साथ कुछ समय समाज की भलाई में भी लगाए, जिससे जहां मानसिक शक्ति प्राप्त होगी, वहीं समाज का भी स्वस्थ विकास होगा। धर्म के नाम पर द्वेष पालने व लड़ने वाले महामूर्ख हैं, क्योंकि किसी भी धार्मिक ग्रंथ में द्वेष व घृणा की भावना को कोई स्थान नहीं दिया गया। चाहे वह धर्म के ही कारण मनुष्य में क्यों न उपजे। इस अवसर पर रविंद्र ठाकुर मुन्ना, नंबरदार अनंत राम, वीरेंद्र शास्त्री, सुरिंदर कुमार, दलजीत सिंह, करतार सिंह व सचिन आदि उपस्थित रहे।