नरसेवा ही नारायण सेवा : महंत जी
सभी शास्त्रों और ऋषियों-मुनियों का यह मत है कि मनुष्य की जिदगी महत्वपूर्ण है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर :
सभी शास्त्रों और ऋषियों-मुनियों का यह मत है कि मनुष्य की जिदगी पानी के बुलबुले के समान है। कब यह फूट जाए, कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए, यह वक्त तय नहीं है। यहां तक कि बाहर निकली हुई सांस दोबारा लौटेगी या नहीं, इसका भी कोई भरोसा नहीं है। यह बात बाबा लाल दयाल आश्रम दातारपुर में प्रवचन में महंत श्री रमेश दास ने कही।
उन्होंने कहा कि इस क्षण भंगुर जीवन पर भी इंसान इतना घमंड करता है कि भला-बुरा, धर्म-अधर्म का ख्याल तक नहीं कर पाता और अपने ही ओछे कर्मों से अपना लोक-परलोक खराब कर लेता है।
ऐसी हालत न हो, इसी मकसद से भजन, कीर्तन, सतसंग आदि को जीवन से जोड़ने की कोशिश की गई है। उपासना से अटूट विश्वास रखने पर जोर दिया गया है। सबसे बेहतर तरीका है इस संसार की सेवा में ही अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना। नर सेवा ही नारायण सेवा, यह सिर्फ कहने वाली बात नहीं है। यदि इसे सही तरीके से जीवन में उतार लिया जाए, तो अपने आप सुख प्राप्त हो जाता है।
उन्होंने कहा भजन, कीर्तन व सत्संग की अपनी महिमा है, लेकिन सेवा की महिमा सबसे बढ़कर है। दरअसल सेवा ही सच्ची पूजा है। इसके बाद अलग से और कुछ भी करने की जरूरत नहीं रह जाती। हर इंसान के रूप में परमात्मा साक्षात हमारे सामने मौजूद है। इसलिए तन से, मन से, धन से, जो कुछ भी बन पाता है, बिना किसी स्वार्थ के सबको सुख पहुंचाने की चेष्टा करो। इसलिए इंसान को चाहिए कि वह भगवान की पूजा-अर्चना करते हुए अपने बच्चों को संस्कारवान बनाए। जिससे धर्म और समाज का कल्याण हो सके। महंत जी ने कहा इंसान को ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे उसका जीवन साकार हो जाए। समाज में ऐसे कार्य करें, जिससे दूसरों का भला हो और समाज सेवा भी हो सके। नर सेवा से बढ़कर कोई दूसरी और सेवा नहीं हो सकती।
इस अवसर पर सुदर्शन, गुलाटी, तरसेम लाल, भोली देवी, गोपाल शर्मा, दरमेश सिंह, शीला, ओम प्रकाश, जयशंकर, शीला, सरिता, मौजूद रहे।