अब गाड़ी में गगन जी के टीले पर शिव मंदिर के दर्शन कर सकेंगे असमर्थ लोग
पंजाब के सबसे ऊंचाई पर स्थित गगन जी के टीले पर शिव मंदिर में दर्शनों के उत्सुक श्रद्धालु जो बुजुर्ग बीमार असमर्थ और 762 सीढि़यां चढ़ने में असक्षम हैं की भक्ति की राह रविवार से सुगम हो गई है।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : पंजाब के सबसे ऊंचाई पर स्थित गगन जी के टीले पर शिव मंदिर में दर्शनों के उत्सुक श्रद्धालु जो बुजुर्ग, बीमार, असमर्थ और 762 सीढि़यां चढ़ने में असक्षम हैं की भक्ति की राह रविवार से सुगम हो गई है। परमशिव भक्त मुकेश रंजन व पंकज रत्ती ने बताया कि मंदिर प्रबंधक कमेटी ने ऐसे असहाय लोगों की सुविधा के लिए नई बोलैरो गाड़ी मुहैया करवाई है। उन्होंने कहा, इतनी ऊंचाई पर पहुंच पाना बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए बहुत कठिन था इसलिए अब गाड़ी से पात्र लोगों को कमेटी की तरफ से बनाए गए वैकल्पिक मार्ग से सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इस अवसर पर प्रधान गुरदीप पठानियां, हैप्पी रंजन, सुशील कुमार सरपंच, सुरजीत कौशल, शाम लाल सलगोत्रा, बंसी लाल, गोपाल देव शर्मा, बाबा शिव गिरी, एडवोकेट विवेक भल्ला मौजूद रहे। वहीं बुजुर्गों राम लाल, सुरजीत, सुदर्शन कुमार, राजिदर ने इस व्यवस्था भूरि भूरि प्रशंसा की।
सभी के लिए वरदाता हैं शिव : जिंदा बाबा
संवाद सहयोगी, दातारपुर : भगवान शिव भोले सूर्य के समान दीप्तिमान हैं। इनके ललाट पर चंद्रमा शोभायमान है। तीन नेत्रों वाले शिव महाकाल भी हैं। कमल के समान सुंदर नयनों वाले अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर पुरुष हैं। यदि क्रोधित हो जाएं तो त्रिलोक को भस्म करने की शक्ति रखते हैं और किसी पर दया कर दें तो त्रिलोक का स्वामी भी बना सकते हैं। यह भयावह भवसागर पार कराने वाले समर्थ प्रभु हैं। दुर्गा माता मंदिर बड़ी दलवाली में आध्यात्मिक विभूति राजिदर सिंह जिदा बाबा ने शिव की महिमा बताई। उन्होंने बताया, श्रावन मास के प्रत्येक सोमवार को श्रावन सोमवार कहा जाता है। श्रद्धालु पवित्र जल से शिवलिग का स्नान करते हैं। फूल, मालाओं से मूर्ति या शिवलिग को पूजते हैं। मंदिर में 24 घंटे दीप जलते रहते हैं। उत्तर भारत के विभिन्न प्रांतों से इस महीने शिवभक्त गंगाजल लेने यानी कांवड का पवित्र जल लेने हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी और गंगासागर की यात्रा पैदल करके श्रावण कृष्ण चतुदर्शी को शिवलिग का अभिषेक करके पुण्य अर्जित करते हैं। कांवड लाकर रुद्राभिषेक करना बहुत ही कष्टसाध्य तप है जिसे देवगण, मानव, दानव सहित यक्ष और साधू आदि काल से करते आ रहे हैं। शिव सभी के लिए वरदाता है जो जैसा मांगें उसे वैसी ही संपदा दे देते हैं।