लंबे इंतजार के बाद बना ली छोटी सरकार

लंबे इंतजार के बाद छोटी सरकार बनाने की कुर्सी हाथ में आई है। भाजपा की रणनीति के आगे स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का हाथ कमजोर हो जाता था मगर इस बार कैबिनेट मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा के नेतृत्व में कांग्रेस ने सभी राजनीतिक पार्टियों को मुट्टी में दबा लिया।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 07:15 AM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 07:15 AM (IST)
लंबे इंतजार के बाद बना ली छोटी सरकार
लंबे इंतजार के बाद बना ली छोटी सरकार

हजारी लाल, होशियारपुर

लंबे इंतजार के बाद छोटी सरकार बनाने की कुर्सी हाथ में आई है। भाजपा की रणनीति के आगे स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का हाथ कमजोर हो जाता था, मगर इस बार कैबिनेट मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा के नेतृत्व में कांग्रेस ने सभी राजनीतिक पार्टियों को मुट्टी में दबा लिया। पचास में 41 सीटें जीतकर इतिहास रच डाला। हालांकि इससे पहले 2004 के स्थानीय चुनाव में कांग्रेस ने विजयी पताका फहराया था। हाईकमान ने बृज मोहन बतरा को नगर परिषद का प्रधान बनाने की बिसात बिछाई थी। लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस से बगावत करके अजय मोहन बब्बी ने भाजपा की मदद से प्रधान की कुर्सी पर कब्जा कर लिया था। बब्बी के राजनीतिक दांव से कांग्रेस हाथ मलती रह गई थी। भाजपा के आशीर्वाद से बब्बी ने कार्यकाल के अंतिम दिन तक सुख भोगा था, लेकिन अंतिम साल में बृज मोहन बतरा ने भाजपा में शामिल होकर बब्बी का खेल खराब किया था। इसके बाद बतरा नगर परिषद के प्रधान की कुर्सी पर विराजमान हो गए थे।

..जब गोपी की गोपनीयता नहीं चली

2009 के नगर परिषद चुनाव में कांग्रेस भाजपा से फिर पीछे रह गई थी। अकाली-भाजपा ने झंडे गाड़ दिए थे। भाजपा ने शिव सूद को प्रधान बनाने की बिसात बिछाई थी। हालांकि भाजपा के ही गोपी चंद कपूर ने शिव सूद को राजनीतिक पटखनी देकर खुद कुर्सी पर काबिज होने के लिए राजनीतिक तीर छोड़ दिया। कांग्रेस भी अंदरखाते गोपी का ही साथ देने के मूड में थी, लेकिन उस समय कैबिनेट मंत्री की पावर होने की वजह से तीक्ष्ण सूद ने गोपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। काफी उठापटक के बाद शिव को कुर्सी मिल गई थी। हाथ को फिर से शांत होकर बैठना पड़ गया।

पिछले चुनाव में 17 सीटों पर करना पड़ा था संतोष

2013 में नगर परिषद से होशियारपुर नगर निगम बन गया। 2015 में चुनाव हुआ। कांग्रेस ने उस समय विधायक रहे सुंदर शाम अरोड़ा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, जबकि भाजपा की लीडिग उस समय बतौर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के राजनीतिक सलाहकार रहे तीक्ष्ण सूद कर रहे थे। कांग्रेस चुनावी मैदान में हार गई। कांग्रेस को महज 17 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेरते हुए भाजपा ने शिव सूद को पहला मेयर बना दिया था।

शिअद का खाता हुई सीज

अगर यूं कहें कि कांग्रेस को तीसरी बार झटका लगा था तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। मगर, कांग्रेस ने इस बार का चुनाव पूरी मुस्तैदी से लड़ा। पचास में से 41 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। भाजपा को महज चार सीटों पर संतोष करना पड़ा। अकाली दल बादल का खाता नहीं खुला। आप को दो सीटें मिली हैं। बतौर आजाद तीन पार्षद जीते हैं।

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