भारत-पाक बंटवारे के दौरान हुए कत्लेआम को याद करके कांप उठती है रुह : बलवंत कौर

देश को आजाद हुए भले ही सात दशक हो चुके हैं मगर जिन बुजुर्गो ने भारत-पाक विभाजन के दौरान हुए कत्लेआम को देखा है वे आज भी बंटवारे की दास्तां सुनाते हुए अपनी आंखें आंसुओं से भर लेते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 03:56 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 03:56 PM (IST)
भारत-पाक बंटवारे के दौरान हुए कत्लेआम को याद करके कांप उठती है रुह : बलवंत कौर
भारत-पाक बंटवारे के दौरान हुए कत्लेआम को याद करके कांप उठती है रुह : बलवंत कौर

संवाद सहयोगी, कलानौर : देश को आजाद हुए भले ही सात दशक हो चुके हैं, मगर जिन बुजुर्गो ने भारत-पाक विभाजन के दौरान हुए कत्लेआम को देखा है वे आज भी बंटवारे की दास्तां सुनाते हुए अपनी आंखें आंसुओं से भर लेते हैं। इसकी ताजा मिसाल कस्बा कलानौर के भारत-पाक बंटवारे का संताप देख चुकी बुजुर्ग बलवंत कौर से मिलती है, जो आज भी बंटवारे के दौरान सिखों व मुसलमानों द्वारा एक-दूसरे के कत्लेआम को याद करके गमगीन हो जाती है।

बुजुर्ग महिला बलवंत कौर ने बताया कि उसका जन्म पिता वीर सिंह व मां अमर कौर की कोख से गांव खारा तहसील नारोवाल जिला स्यालकोट पाकिस्तान में 1932 में हुआ। वे तीन बहनें व तीन भाई थे। उसने बताया कि भारत-पाक विभाजन से करीब दो साल पहले उसकी शादी संपूर्ण सिंह पुत्र जवाहर सिंह निवासी गंगोहर तहसील नारोवाल पाकिस्तान के साथ हुई थी। शादी के बाद कुछ महीने मायके रहने के बाद जब उसकी डोली ससुराल पहुंची थी कि कुछ दिनों के बाद ही भारत-पाक का बंटवारा हो गया। अचानक से दोनों देशों में हुए बंटवारे से उसने अपने हाथ से तैयार किया हुआ दहेज व घर का सारा सामान दरवाजे खुले छोड़कर घर को छोड़ना पड़ा था। उसने बताया कि बंटवारे से पहले वह मुस्लिम की लड़की बशीरा उसकी सहेली थी। वे दोनों खेतों में कपास, मूंगी इकट्ठी तोड़ती थीं। वह अपनी शादी व घर के अन्य गहने साथ लगते मुसलमान परिवार को देकर आ गए थे। वह घर के खुले दरवाजे और खाली पेट घर से निकले थे। डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा में पहुंच कर लंगर को ग्रहण किया था। देश की आजाद के 74 साल बीत जाने के बावजूद भी बंटवारे की याद से रुह कांप उठती है। बलवंत कौर के बेटे सुखदेव पाल सिंह व बहू जसबीर कौर का कहना है कि उनकी मां की आयु लंबी हो चुकी है, मगर इसके बावजूद भी वह बंटवारे की बातों को अभी तक नहीं भूली है।

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